लोकसभा चुनाव से पहले एक अहम फैसला लेते हुए हरियाणा सरकार ने फल और सब्जी विक्रेताओं के लिए एचआरडीएफ (हरियाणा रूरल डेवलपमेंट फंड) फीस खत्म कर दी है. राज्य की मंडियों में अब फल व सब्जी विक्रेताओं को एचआरडीएफ फीस नहीं देनी होगी. सीएम मनोहरलाल ने कहा कि पहले मंडियों में 1 प्रतिशत एचआरडीएफ तथा 1 प्रतिशत मार्केट फीस लगती थी. अब प्रदेश में सब्जी मंडी पर लगने वाले 1 प्रतिशत एचआरडीएफ फीस को खत्म कर दिया गया है. आढ़तियों के साथ सहमति बन चुकी है और उन्हें इस 1 प्रतिशत मार्केट फीस की बजाय अब पिछले 2 सालों यानि वर्ष 2022-23 और 2023-24 के दौरान वास्तविक मार्केट फीस के औसत का एकमुश्त भुगतान करना होगा. इसके अलावा, यदि कोई 1 प्रतिशत के हिसाब से ही भुगतान करना चाहता है, तो वो भी कर सकता है.
सरकार इस फंड का इस्तेहमाल ग्रामीण विकास के लिए करती है. लेकिन सब्जिेयों पर इसकी वसूली का आढ़ती और व्यागपारी विरोध कर रहे थे. एचआरडीएफ को हटाने की मांग को लेकर हरियाणा प्रदेश व्यापार मंडल से जुड़े पदाधिकारी सरकार पर दबाव बना रहे थे. इसके बाद आखिरकार सरकार ने इसे हटा लिया है. बताया गया है कि धान और गेहूं पर 2 फीसदी एचआरडीएफ फीस अब भी लगती रहेगी. मार्केट फीस इससे अलग है. एचआरडीएफ के जरिए कई गांवों में काम करवाए गए हैं.
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उधर, हरियाणा प्रदेश व्यापार मंडल के प्रांतीय अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने कहा कि हरियाणा सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान आर्थिक सहयोग के लिए सब्जी व फलों पर मार्केट फीस व एचआरडीएफ लगाया था. अब सब्जी व फलों पर 1 प्रतिशत एचआरडीएफ को तो खत्म कर दिया गया है. मार्केट फीस को भी माफ करनी चाहिए. पिछली सरकार ने सब्जी व फलों पर से पूरी तरह से मार्केट फीस व एचआरडीएफ हटा रखी थी. लेकिन मनोहरलाल खट्टर सरकार ने सब्जी व फलों पर टैक्स लगाने का काम किया है.
गर्ग ने कहा कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल और कृषि मंत्री जेपी दलाल ने सब्जी व फलों पर मार्केट फीस हटाने की घोषणा 11 जनवरी 2022 को ही कर रखी थी. तब बोला गया था कि मार्केट फीस व एचआरडीएफ हटाने से आढ़ती व किसानों को 30 करोड़ रुपये का लाभ होगा. ऐसे में अब सरकार को मार्केट फीस भी हटा देनी चाहिए. ताकि जनता पर महंगाई का बोझ कम हो.
राजकीय पशुधन फार्म, हिसार के 4 गांवों ढंढूर, पीरावांली, बीड़ बबरान और झिड़ी में खेती के लिए आवंटित की गई जमीन पर 1954 से मकान बनाकर रह रहे लोगों को अब मालिकाना हक दिया जाएगा. यहां 2719 घर हैं. इनमें से 1831 मकान ऐसे हैं, जो 250 वर्ग गज में बने हैं. ऐसे मकान मालिकों को अब 2000 रुपये प्रति वर्ग गज के अनुसार भुगतान करना होगा.
इसी प्रकार, 250 वर्ग गज से 1 कनाल तक के 742 घर हैं, उन्हें 3000 रुपये प्रति वर्ग गज, 1 कनाल से 4 कनाल तक के 146 परिवार हैं, उन्हें 4000 रुपये प्रति वर्ग गज का भुगतान करना होगा. इसके अलावा, जो घर 4 कनाल से अधिक क्षेत्र में बने हैं, उन्हें 4 कनाल तक सीमित रखा जाएगा और शेष भूमि को आम उपयोग के लिए गांव की भूमि में शामिल किया जाएगा.
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