Kangra Tea: यहां लगे हैं 150 साल पुराने चाय के पौधे, अरब-यूरोप देशों को होती है एक्सपोर्ट, जानें डिटेल

Kangra Tea: यहां लगे हैं 150 साल पुराने चाय के पौधे, अरब-यूरोप देशों को होती है एक्सपोर्ट, जानें डिटेल

आज भी कांगड़ा के पालमपुर में 150 साल पुराने कांगड़ा टी के पौधे लगे हुए हैं. इसके प्रोडक्ट‍ की बात करें तो कांगड़ा टी के अलावा और भी प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं.पत्तियों से चाय के अलावा टी कोल्ड ड्रिंक्स और टी वाइन भी बनाई है. कांगड़ा टी से ही कॉस्मेटिक प्रोडक्ट भी बनाए गए हैं. कोरोना के खतरनाक दौर में संस्थान ने कांगड़ा टी से हैंड सेनेटाइजर भी बनाया था.

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Kangra Tea: यहां लगे हैं 150 साल पुराने चाय के पौधे, अरब-यूरोप देशों को होती है एक्सपोर्ट, जानें डिटेलपालमपुर में कांगड़ा टी के बाग. फोटो क्रेडिट-किसान तक

नाम और स्वाद के मामले में किसी भी दूसरी चाय से कम नहीं है. यही वजह है कि अरब और यूरोप देशों के साथ ही दूसरे देश भी इस चाय को बहुत पंसद करते हैं. इस चाय को जीआई टैग का दर्जा भी मिल चुका है. इस चाय की पहचान हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा टी के नाम से है. यहां 150 साल पुराने चाय के पौधे आज भी लगे हुए हैं. बेशक इसके मुकाबले उत्पादन और इस्तेमाल असम और दर्जीलिंग की चाय का ज्यादा है, लेकिन कांगड़ा टी की अपनी एक पहचान है. पहचान भी ऐसी कि देश से ज्यादा विदेशों में इसकी खासी डिमांड है. ये कांगड़ा जिले के कुछ ही इलाकों में होती है. कांगड़ा चाय का एक बड़ा हिस्सा एक्सपोर्ट हो जाता है. 

खासतौर पर यूरोपियन देशों में इसकी डिमांड रहती है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा टी पर लगातार रिसर्च चलती रहती है. इसी संस्थान ने कांगड़ा की चाय की पत्तियों से चाय के अलावा टी कोल्ड ड्रिंक्स और टी वाइन भी बनाई है. कांगड़ा टी का उत्पादन हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा और धर्मशाला के आसपास ही होता है. कांगड़ा में सबसे ज्यादा उत्पादन होता है.

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देश से ज्यादा विदेशों में पसंद की जाती है कांगड़ा टी 

आईएचबीटी के साइंटिस्ट डॉ. सनत सुजात सिंह ने किसान तक को बताया कि हिमाचल प्रदेश में खासतौर पर कांगड़ा और धर्मशाला में कांगड़ा टी का उत्पादन होता है. दो हजार हेक्टेनयर जमीन पर कांगड़ा टी उगाई जाती है. करीब 10 लाख किलो चाय का उत्पादन होता है. चाय के इन पौधों को 150 साल पहले अंग्रेजों ने लगाया था. खास बात ये है कि कांगड़ा टी का इस्तेमाल असम और दार्जिलिंग की चायपत्ती की तरह से नहीं होता है.

ये हर्बल और ब्लैक टी की तरह से इस्तेमाल होता है. अरब और यूरोप समेत कई और देशों में कांगड़ा टी एक्सपोर्ट की जाती है. उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा एक्सपोर्ट कर दिया जाता है. डिमांड को देखते हुए कांगड़ा का उत्पादन पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड में करने की कोशिश चल रही है. इसके लिए आईएचबीटी हर तरह की मदद किसानों को दे रही है. 

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मजदूरों की कमी दूर करने को मशीनों से तोड़ी जा रही है चाय 

डॉ. सनत ने बताया कि कांगड़ा टी का उत्पादन न बढ़ने के पीछे एक सबसे बड़ी वजह चाय बागान में काम करने वाले मजदूरों की कमी भी है. चाय की पत्तिीयां तोड़ने के लिए जरूरत की संख्या में मजदूर वक्त पर नहीं मिलते हैं. इसी परेशानी को देखते हुए आईएचबीटी ने चाय की पत्तियां तोड़ने के लिए दो तरह की मशीन बनाई हैं. इसमे एक मशीन ऐसी है जिसे एक ही आदमी आपरेट कर सकता है. इसके इस्तेमाल से हाथ से पत्ती तोड़ने के मुकाबले 10 गुना काम ज्यादा होता है. इसी तरह से दूसरी मशीन को दो आदमी आपरेट करते हैं और इससे 20 गुना काम ज्यादा होता है.    

 

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