
गेहूं के लिए यूरिया मीटर बचाएगा हजारों की लागतअक्सर किसान यह सोचते हैं कि खेत में जितना ज्यादा यूरिया डालेंगे, फसल उतनी ही बंपर होगी. लेकिन हकीकत इसके उलट है. कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि 'अच्छी उपज' के लालच में जरूरत से ज्यादा रासायनिक खाद का इस्तेमाल, फसल को फायदे की जगह नुकसान पहुंचा रहा है. इससे न केवल गेहूं, धान और मक्का जैसी फसलों में कीड़े और बीमारियों का हमला बढ़ता है, बल्कि किसान की लागत भी बेवजह बढ़ जाती है. इसी समस्या का पक्का इलाज करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक बहुत ही सस्ती और सटीक तकनीक खोजी है, जिसे 'कस्टमाइज्ड लीफ कलर चार्ट' (CLCC) सीएलसीसी कहते हैं. यह 50-60 रुपये का एक साधारण सा चार्ट किसान को यह बता देता है कि उसकी फसल को कब और कितनी यूरिया की जरूरात है.
यह तकनीक उतनी ही आसान है जितना किसी मरीज का बुखार नापना. इस तकनीक का आधार यह है कि पौधे की पत्तियों का रंग उसकी सेहत का राज खोलता है. सीएलसीसी एक प्लास्टिक की शीट होती है जिस पर हल्के पीले-हरे से लेकर गहरे हरे रंग तक 6 अलग-अलग कॉलम बने होते हैं. अगर पत्ती का रंग गहरा हरा है, तो मतलब पौधे में नाइट्रोजन भरपूर है और उसे यूरिया की जरूरत नहीं है. अगर रंग हल्का या पीला है, तो पौधे को यूरिया चाहिए. इस चार्ट की मदद से किसान अंधेरे में तीर चलाने के बजाय बिल्कुल सटीक मात्रा में खाद यूरिया सकते हैं.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), पूसा के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह के अनुसार,
बुवाई के समय सामान्य गेहूं में 40 किलो प्रति एकड़ डालें
देर से बोई गई गेहूं में 25 किलो यूरिया प्रति एकड़ डालना चाहिए
दूसरी सिंचाई के बाद सीएएलसीसी तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए
इसके लिए खेत में 10 स्वस्थ पौधे चुनें और उनकी पत्तियों का रंग चार्ट से मिलाएं
अगर गेहूं की पत्ती का रंग कॉलम 5 या 6 गहरा हरा जैसा है, तो सिर्फ 15 किलो यूरिया डालें
अगर रंग कॉलम 4 से 4.5 के बीच है, तो 40 किलो यूरिया डालें
अगर रंग कॉलम 4 से कम यानी हल्का है, तो 55 किलो यूरिया प्रति एकड़ डालें
इसे हर 10 दिन में चेक करते रहें.
डॉ. राजीव बताते हैं कि सही परिणाम पाने के लिए चार्ट का इस्तेमाल सही तरीके से करना जरूरी है. पत्तियों के रंग का मिलान हमेशा सुबह 8 से 10 बजे या शाम 2 से 4 बजे के बीच ही करें. तेज धूप में रंग सही नहीं दिखता, इसलिए अपनी परछाई (छांव) बनाकर पत्ती को चार्ट पर रखें ताकि उस पर सीधी धूप न पड़े. ध्यान रखें कि जिस पत्ती की आप जांच कर रहे हैं, उसमें कोई बीमारी या दाग न हो. साथ ही, अगर खेत में पानी भरा हुआ है, तो उस समय यूरिया का छिड़काव न करें.
इस तकनीक को अपनाने का सबसे बड़ा फायदा किसान की जेब को होता है. अनुमान है कि सीएलसीसी के इस्तेमाल से किसान प्रति एकड़ 20 से 30 किलो यूरिया बचा सकते हैं. जब यूरिया कम डलेगा, तो फसल पर कीड़ों का प्रकोप कम होगा और मिट्टी की सेहत भी बनी रहेगी. सबसे बड़ी बात, इससे हमारा जमीन का पानी जहरीला होने से बच जाएगा. संक्षेप में कहें तो, 50-60 रुपये का यह छोटा सा चार्ट किसानों की हजारों रुपये की लागत बचा सकता है और पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए बंपर पैदावार की गारंटी दे सकता है.
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