विरोधियों ने बोला मान पर हमला कुछ दिनों पहले शुरू हुआ किसान विरोध प्रदर्शन कब खत्म होगा या कहां जाकर थमेगा, कोई नहीं जानता है. किसान लगातार केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के मकसद से प्रदर्शन में तेजी ला रहे हैं. इन सबके बीच ही पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी अब निशाने पर आ गए हैं. मान दो वजहों से आलोचकों के निशाने पर हैं. पहली तो यह कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आंसू गैस के प्रयोग पर भी वह खामोश हैं और दूसरा कि उन्होंने साल 2022 में एमएसपी को लेकर जो वादा किया था, उसके पूरा होने का इंतजार है. पिछले पांच दिनों से किसान आंदोलन जारी है. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को सुनिश्चित करने के लिए राज्य अधिनियम लाने के अपने चुनावी वादे को पूरा नहीं किया है. अब विपक्षी इस वजह से मान पर निशान साध रहे हैं.
हरियाणा और पंजाब के किसानों ने एमएसपी और पेंशन के कानूनी आश्वासन की मांग को लेकर मंगलवार को अपना 'दिल्ली चलो' मार्च फिर से शुरू किया. लेकिन उन्हें हरियाणा सीमा पर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जहां सुरक्षा बलों ने उनका रास्ता रोकने के लिए आंसू गैस, कीलें और कंटीले तार तैनात कर दिए. लगभग सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं ने मान के चुनाव पूर्व भाषणों और बयानों के वीडियो पोस्ट किए हैं. इसमें मान ने 20 से ज्यादा फसलों के एमएसपी को कानूनी रूप से समर्थन देने की कसम खाई थी.
मान को हरियाणा सरकार के साथ आंदोलनकारी किसानों पर पुलिस और अर्धसैनिक बलों द्वारा आंसू गैस का प्रयोग करने का मामला नहीं उठाने के लिए भी कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. विपक्ष के नेता (एलओपी) प्रताप सिंह बाजवा ने गुरुवार को मान पर किसानों के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया.
यह भी पढ़ें- किसान आंदोलन के बीच पशुपालकों को मिली खुशखबरी, दूध पर बढ़ाया गया MSP, नई कीमत भी जान लीजिए
बाजवा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'पिछले तीन दिनों से हरियाणा सरकार ने तानाशाही रवैया अपना रखा है. हरियाणा पुलिस पंजाब के अधिकार क्षेत्र में डेरा डाले किसानों पर आंसू गैस के गोले और रबर की गोलियां चला रही है. बताया जा रहा है कि इसमें करीब 130 पंजाबी किसान घायल हैं. हालांकि, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, जिनके पास गृह विभाग भी है, हरियाणा पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में बुरी तरह विफल रहे हैं'
उन्होंने यहां तक कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) के एक भी नेता ने पंजाबी किसानों पर हमले के लिए मनोहर लाल खट्टर सरकार की निंदा नहीं की. उनका कहना था कि इससे तो यही साबित होता है कि पंजाब के सीएम भगवंत मान हरियाणा के मुख्यमंत्री के साथ मिलकर काम कर रहे थे. यह पूरे किसान समुदाय की पीठ में छुरा घोंपने जैसा है. बाजवा ने दावा किया कि भाजपा की गुड बुक्स में बने रहने के लिए, पंजाब के सीएम ने किसान संघों और भाजपा सरकार के बीच मध्यस्थता करने का प्रयास किया.
बाजवा किसान नेताओं की पेंडिंग मांगों के समाधान के लिए किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच पिछले हफ्ते हुई पहले दौर की वार्ता का जिक्र कर रहे थे. मान ने बातचीत के दौरान दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता की थी लेकिन बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला. मंगलवार को दोनों पक्षों के बीच दूसरे दौर की बातचीत के दौरान पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप धालीवाल ने मध्यस्थता की थी. इस बीच, चंडीगढ़ में किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच तीसरे दौर की बातचीत हुई. इसके बाद गुरुवार देर रात जारी एक बयान में, सीएम को मीडियाकर्मियों को अपनी स्थिति समझाने में भी परेशानी हो रही थी जबकि वह इस मीटिंग का हिस्सा थे.
यह भी पढ़ें- किसान आंदोलन ने पंजाब की राजनीति को किया प्रभावित, इस तरह बिगड़ गया कई पार्टियों का खेल
उधर मान ने इस पर अपनी स्थिति को बयां किया. मान ने कहा, 'विपक्ष हमें भाजपा की 'बी' टीम करार दे रहा है. लेकिन सच्चाई यही है कि आप किसानों की 'ए' टीम है. मैंने किसानों और केंद्रीय मंत्रियों के बीच मीटिंग्स बैठकों में केवल इसलिए भाग लिया क्योंकि किसान ऐसा चाहते थे. शिरोमणि अकाली दल की नेता और पूर्व केंद्रीय कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने भी सीएम पर हमला बोला. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री हरियाणा सरकार से मिले हुए हैं.
इस बीच, कांग्रेस नेता सुखपाल सिंह खैरा ने कहा कि आप के मंत्री जो कर रहे हैं वह दिखावटीपन से ज्यादा कुछ नहीं है. खैरा ने मांग की है कि अगर मान किसानों के साथ हैं तो फिर उन्हें घग्गर नदी के पुल पर लगे बैरिकेडिंग को पंजाब क्षेत्र से हटाने के लिए दबाव डालना चाहिए. साथ ही 100 से ज्यादा किसानों को घायल करने वाली हरियाणा सरकार के पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करना चाहिए. जब तक मान ऐसा नहीं करेंगे तब तक तो यही लगेगा कि वह बीजेपी की बी टीम हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today