World Food Day : अमेरिका की ब्लैकमेलिंग और अनाज की कमी से कैसे बाहर निकला भारत?

World Food Day : अमेरिका की ब्लैकमेलिंग और अनाज की कमी से कैसे बाहर निकला भारत?

16 सितंबर को हर साल विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है. खाद्य दिवस मनाने का कारण दुनिया भर में भूख, कुपोषण और खाद्य असुरक्षा जैसी समस्याओं के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना है. इस खबर में भुखमरी की कगार से अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर और ग्लोबल मार्केट के सबसे बड़े चावल निर्यातक बनने की कहानी है.

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World Food Day : अमेरिका की ब्लैकमेलिंग और अनाज की कमी से कैसे बाहर निकला भारत?अनाज उत्पादन में कैसे आत्मनिर्भर बना भारत

आज भारत अनाजों के निर्यात में ग्लोबल मार्केट में अपनी धाक रखता है लेकिन ये सब इतना आसान नहीं था. करीब 80 साल पहले भारत भुखमरी की कगार पर खड़ा था. देश की बहुत बड़ी आबादी के पास पेट भरने तो दूर जीवित रहने तक के लिए दाने-दाने का संघर्ष था. 1950-51 में भारत की जनसंख्या महज 36 करोड़ ही थी इसके बावजूद जनता को भरपेट भोजन नहीं मिल रहा था, इसलिए अमेरिका जैसे देश अनाज देने के बदले तरह-तरह की ब्लैकमेलिंग कर रहे थे. लेकिन 60 के दशक में तब की सरकार ने ये तय किया कि हमें इस मुल्क को आयातक से अनाज में आत्मनिर्भर बनाना है. और इसके लिए किसान, विज्ञान और तब के नेताओं ने मिलकर हरित क्रांति की शुरुआत की. और इस क्रांति ने भारत की तस्वीर बदल कर रख दी. 

1950 के बाद आज के हालात

केंद्रीय कृषि मंत्रालय के एक डेटा के अनुसार 1950-51 में हम मुश्क‍िल से 50 म‍िल‍ियन टन खाद्यान्न उत्पादन करते थे लेक‍िन अब यह बढ़कर  353.96 लाख टन हो गया है. साल 2023 के आंकड़े के अनुसार बागवानी फसलों का 10.5 गुना, दूध उत्पादन 10.4 गुना, मछली उत्पादन 16.8 गुना और अंडा उत्पादन 10.4 गुना बढ़ा है. इतना ही नहीं आज हम अनाजों के निर्यात के मामले में भी शीर्ष देशों में गिने जाने लगे हैं. 

हरित क्रांति को लेकर दूरगामी सोच

साल 1950-51 में भारत में 97.32 हेक्टेयर खेती का एरिया था जिसमें 50.82 मिलियन टन का उत्पादन होता है. 1965 में भारत में गेहूं का उत्पादन 12 टन मिलियन था. एक तरफ खाद्य संकट का सामना कर रहा था तो दूसरी ओर पाकिस्तान से युद्ध भी जारी था. भारत में खाद्य की आपूर्ति के लिए अमेरिका कई तरह की ब्लैकमेलिंग कर रहा था. इन तमाम समस्याओं के बीच 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और कृषि मंत्री सी सुब्रमण्यम के नेतृत्व में मैक्सिको से बौने किस्मों के गेहूं के 18,000 टन बीज का आयात किया गया था. इसका परिणाम यह हुआ कि जिस गेहूं का उत्पादन 1965 में सिर्फ 12 मिलियन टन था वो 1968 में बढ़कर 17 मिलियन टन तक हो गया था.

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आज की मौजूदा स्थिति

जो भारत 1950-51 में महज 36 करोड़ की आबादी के बावजूद भी हर व्यक्ति का पेट भरना मुश्किल हो गया था, वही भारत आज करीब 150 करोड़ की आबादी वाला देश हो गया है. आज हम ना सिर्फ देश का पेट भर रहे हैं बल्कि दुनिया के कई देशों में अपना खाद्यान्न निर्यात भी कर रहे हैं. 2024-25 में भारत में अनाज का कुल उत्पादन 2024-25 में 353.96 मिलियन टन हो गया है. आज दुनिया के कुल चावल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी लगभग 35 फीसदी है, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश हैं. आज भारत करीब साढ़े चार लाख करोड़ रुपये के अनाज निर्यात करता है.

80 करोड़ लोगों को फ्री अनाज

जो भारत भुखमरी की कगार पर खड़ा था आज वो अनाज उत्पादन के मामले में ना सिर्फ आत्मनिर्भर बना है, बल्कि दुनिया के कई देशों का भी पेट भर रहे हैं. जो भारत देश में खाद्यान्न की चुनौतियों से निपटने के लिए एक दिन उपवास की अपील करता था आज की तारीख में वो भारत करीब 81 करोड़ लोगों मुफ्त का अनाज दे रहा है. 

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