
दिल्ली वालों को क्यों नहीं मिलती साफ हवा?दिल्ली में बढ़ती ठंड के बीच प्रदूषण पर सियासत गर्म है. पॉल्यूशन पॉलिटिक्स करने वाले नेता खुद को ऐसा साबित करने पर तुले हुए हैं कि जैसे उनसे बड़ा पर्यावरण प्रेमी कोई है ही नहीं. खैर राजनीतिक लोग हैं तो करेंगे तो राजनीति ही, लेकिन इसके इतर एक चिंता बढ़ाने वाला तथ्य सामने आया है. जिसमें पता चला है कि साल 2025 में एक दिन भी लोगों को साफ हवा नहीं मिली. ऐसा कोई दिन नहीं रहा, जब दिल्ली की हवा को ‘गुड क्वालिटी’ में रखा जा सके. पराली जले या न जले दिल्ली पूरे साल जहरीली गैस का चैंबर बनी रही. यकीन मानिए पिछले 6 साल में महज 9 दिन ही दिल्ली के लोगों को साफ हवा नसीब हुई है. इस सामूहिक विफलता के लिए दिल्ली वाले अगर किसानों को कोसने बी बजाय अपनी गलतियों को स्वीकार करेंगे तो शायद उसे सुधारने के रास्ते भी निकाले जा सकें, वरना हालात का बद से और बदतर होना तय है.
अब यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि दिल्ली के लोगों को पराली के लिए किसानों पर सवाल उठाने का कोई हक नहीं है. इस समय पराली न जलने और पटाखे न चलने के बावजूद एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 500 के पार है. हवा साफ रखने के लिए जो काम पूरे साल होने चाहिए थे वह अब किए जा रहे हैं. आग लगने पर कुआं खोदने जैसा काम हो रहा है. ऐसे में प्रदूषण पर दिल्ली वालों की चिंता सिर्फ दिखावा नजर आती है. बहरहाल, aqi.in ने साल 2025 के एक्यूआई का एनालिसिस किया तो पाया कि दिल्ली वालों को एक दिन भी 50 या उससे कम एक्यूआई वाली हवा नहीं मिली. मतलब साफ है कि प्रदूषण से बचाव की परीक्षा में दिल्ली को जीरो नंबर मिला है.

दिल्ली के लोग अपनी लाइफस्टाइल बदलने को तैयार नहीं हैं. बड़ी कारें बढ़ती जा रही हैं और दोष देते हैं किसानों को. जबकि धूल, ट्रांसपोर्ट, कंस्ट्रक्शन और पारंपरिक उद्योगों की वजह से दिल्ली की हवा पूरे साल खराब रहती है. लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि यहां के लोगों को चिंता सिर्फ उन 15 दिनों में होती है, जब यहां से काफी दूर पंजाब, हरियाणा में पराली जल रही होती है. असल में, दिल्ली वालों की चिंताएं उन स्थानीय कारणों पर ज्यादा होनी चाहिए जिनकी वजह से यहां की हवा साल भर तक जहरीली बनी रहती है.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय से जुड़ी एक संस्था है ‘सफर’ (SAFAR), जिसका काम वायु प्रदूषण की निगरानी करना है. इसने 2018 में दिल्ली के प्रदूषण पर एक रिपोर्ट दी थी. जिसमें ट्रांसपोर्ट, इंडस्ट्री और डस्ट को प्रदूषण का बड़ा कारण बताया गया था. रिपोर्ट के अनुसार उबर, ओला की हर टैक्सी सालाना औसतन 1.45 लाख किलोमीटर चलती हैं. यही नहीं, दिल्ली की प्रमुख सड़कों पर वाहनों की औसत गति मात्र 20 से 30 किलोमीटी प्रति घंटा ही रह गई है. वायु प्रदूषण बढ़ने की यह भी एक वजह है. इसी तरह दिल्ली की अपनी गाड़ियों के अलावा अन्य राज्यों से दिल्ली के आठ अलग-अलग एंट्री-पॉइंट से हर रोज करीब 11 लाख गाड़ियां यहां आती-जाती हैं.
एयर क्वालिटी इंडेक्स इंडेक्स यानी एक्यूआई प्रदूषण की समस्या मापने के लिए बनाया गया है. यह आठ प्रदूषकों से बनता है. यह इंडेक्स बताता है कि हवा में पीएम 10, 2.5, PM10, PM2.5, सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय किए गए मानकों के तहत है या फिर नहीं.
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