चारे की कमी का मिल गया समाधानदेश में मवेशियों के लिए चारे की घोर कमी देखी जा रही है. यह समस्या पहले से बढ़ी है क्योंकि देश में पशुधन की तादाद तेजी से बढ़ रही है. जिस रफ्तार से पशुधन बढ़ रहे हैं, उस रफ्तार से चारे का इंतजाम नहीं हो पा रहा है. लिहाजा, हरे और सूखे दोनों चारे की कमी देखी जा रही है. सरकार ने भी इस बात को माना है कि चारे की कमी है जिससे किसान और मवेशी जूझ रहे हैं. इस समस्या से निपटने के लिए आईसीएआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेज रिसर्च, लुधियाना (ICAR-IIMR) ने बड़ी पहल की है. यह पहल साइलेज बनाने की है जिससे मवेशियों के लिए हर सीजन में चारा उपलब्ध कराया जा सकेगा.
आईसीएआर ने बताया है कि डेयरी किसानों के सामने चारे की कमी गंभीर समस्या है. एक आंकड़े के मुताबिक, देश में 32 फीसद हरा चारा और 23 फीसद सूखा चारा की कमी है. दूसरी ओर, अधिक दुधारों पशुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है जिनके लिए अधिक चारे की जरूरत होती है.
चारे की कमी के बीच किसानों को महंगे आहार खरीदने की जरूरत पड़ रही है जिससे पशुपालन की लागत बढ़ रही है. इसका असर महंगे दूध उत्पादन पर देखा जा रहा है. अंत में खरीदारों को महंगा दूध मिल रहा है. इसका बड़ा समाधान यही है कि मवेशियों के लिए चारे की उपलब्धता आसान हो जिससे दूध के दाम भी कम होंगे.
चारे की कमी दूर करने के लिए ICAR-IIMR ने मक्के से साइलेज बनाने की सलाह दी है. इसे मेज साइलेज का नाम दिया गया है. इस साइलेज को अपने घर पर बना सकते हैं जिसमें कुट्टी (कटा हुआ हरा चारा) को कुछ दिनों तक सही वातावरण में रखना होता है. बाद में इसे पशु चारे के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. मक्के के सीजन में इस साइलेज को बना कर रख लिया जाता है जब गर्मियों में चारे की कमी होती है तो इसे इस्तेमाल किया जा सकता है.
मेज साइलेज यानी मक्के का चारा स्टार्च के मामले में बहुत अच्छा होता है जिसमें 14 से 20 परसेंट तक स्टार्च होता है, जबकि प्रोटीन की मात्रा भी 8-10 परसेंट होता है. हरे मक्के के पत्ते से इस साइलेज को 40-45 दिनों में तैयार किया जा सकता है. फिर इसे कई महीनों तक स्टोर किया जा सकता है जो बाद में इमरजेंसी के वक्त पशु आहार के रूप में काम आ सकता है. यह चारा हाई एनर्जी वाला, पचाने में आसान और खर्च घटाने वाला है.
मेज साइलेज बनाने की यह तकनीक किसानों के बीच में मशहूर हो रही है. ICAR-IIMR ने इसके लिए साइलेज मेज हाइब्रिड भी तैयार किया है जो साइलेज के लिए ही खास तौर पर बनाया गया है. इसके लिए ICAR-IIMR किसानों को ट्रेनिंग भी दे रहा है जिसकी मदद से वे साइलेज बना सकते हैं. इस संस्थान ने अभी तक 1000 से अधिक किसानों को ट्रेंड किया है. इस पहल से पंजाब और हरियाणा के अधिसंख्य किसान लाभान्वित हो रहे हैं.
ICAR-IIMR ने बताया है कि इस नई तकनीक से 15 परसेंट अधिक चारा तैयार किया जा सकता है. इसे पशुओं को खिलाने से 10-20 परसेंट तक दूध की मात्रा बढ़ सकती है. इसमें मक्के के उन हिस्सों को भी मिलाया जाता है जिसे अक्सर फेंक दिया जाता है. इस चारे को बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न के कचरे के साथ फीड को मिलाकर बनाया जाता है. इस पहल से देश में नए उद्यमियों को 1.3 करोड़ साइलेज हब बनाने का काम मिला और हर साल लगभग 3000 से अधिक किसान परिवार लाभान्वित हो रहे हैं.
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