पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों का सपोर्ट करने के लिए 22 अप्रैल को दुनिया भर में पृथ्वी दिवस मनाया जाता है. यह पहली बार 1970 में सांता बारबरा में बड़े पैमाने पर तेल रिसाव के महीनों बाद अमेरिकी कॉलेजों में मनाया गया था. उस वक्त इसे आंदोलन के रूप में लिया गया था. तब से इस आंदोलन ने 192 से अधिक देशों में एक अरब से अधिक लोगों को एकजुट किया है. इसका वार्षिक कार्यक्रम सोमवार को वैश्विक थीम 'प्लैनेट बनाम प्लास्टिक' के साथ मनाया जा रहा है. इस खास दिन को साल 2016 में संयुक्त राष्ट्र ने 22 अप्रैल को पेरिस समझौते की तारीख के रूप में चुना, जिसे आमतौर पर जलवायु और पर्यावरण आंदोलन के इतिहास में महत्वपूर्ण समझौता माना जाता है.
ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि को अपनाने के लिए उस वर्ष 22 अप्रैल को 196 देशों के नेता एक साथ आए. वैश्विक समझौते में इस बात पर जोर दिया जाता है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का प्रयास किया जाएगा, जबकि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 2030 तक 43 परसेंट की गिरावट होनी चाहिए.
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पृथ्वी दिवस का कॉन्सेप्ट 1960 में शुरू हुआ था जब पर्यावरण के मुद्दे पर लोगों में बड़ी बहस छिड़ी. उस वक्त दो घटनाएं सामने आई थीं जिसमें रैचेल कार्सन की किताब साइलेंट स्प्रिंग ने लोगों के बीच इस मुद्दे पर बहस छेड़ दी. साथ ही उसी वक्त (1969) सांता बारबरा में तेल रिसाव हुआ था जिससे पर्यावरण के नुकसान को लेकर लोगों में चिंता बढ़ गई थी. हालांकि 1972 में संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को आधिकारिक तौर पर पृथ्वी दिवस के रूप में घोषित किया. 1969 के यूएएन कॉन्फ्रेंस में सामाजिक कार्यकर्ता मैक कॉनल ने पृथ्वी दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा जिसे मान लिया गया. इसें सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन ने भी बड़ी भूमिका निभाई.
इस दिन की शुरुआत के साथ ही पूरी दुनिया में पृथ्वी दिवस को लेकर जागरुकता बढ़ी है. लोग अब पर्यावरण को बचाने और संभालने की बात करते हैं. इस मुद्दे पर गंभीर बहस होती है. पृथ्वी को प्लास्टिक के कचरे से बचाने के लिए खास मुहिम छेड़ी गई है. दिनों दिन प्राकृतिक संसाधनों के तेजी से घटने और क्लाइमेट चेंज का खतरा पृथ्वी दिवस पर लोगों को आगाह करता है. यह दिन लोगों को याद दिलाता है कि पर्यावरण को बचाने के लिए जल्दी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो आगे चलकर परेशानी बढ़ सकती है.
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