भारत... दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत... दुनिया की सबसे अधिक 28 फीसदी उपजाऊ भूमि वाला देश भारत...खाद्यान्न उत्पादन के मामले में दुनिया के शीर्ष देशों की सूची में शुमार भारत...भारत की ये तीन पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का कद बढ़ाती हैं, लेकिन इन्हीं तीन उपलब्धियों के बीच भारत में बढ़ती कुपोषण की समस्या चिंता का विषय बन कर कर उभरी है. इसकी एक बानगी ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 है. इस इंडेक्स में भारत दुनिया के 122 देशों की सूची में 107वें स्थान पर है. इससे पहले हंगर इंडेक्स में भारत 116 देशों की सूची में 101वें स्थान पर था. मसलन, भारत इस इंडेक्स में पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लोदश से भी नीचे है. इसके पीछे की वजह ये है कि इस इंडेक्स में भूख और कुपोषण के आधार पर गणना की जाती है.
वहीं एक दूसरी रिपोर्ट कहती है कि भारत में कुपोषितों की संख्या दुनिया की एक चौथाई है. कुल मिलाकर कुपोषण की समस्या भारत के लिए एक बड़ी चिंता बन कर उभरी है. इस बीच भारत सरकार ने कुपोषण के खिलाफ जंग भी छेड़ी हुई है. जिसके प्रमुख हथियार फोर्टिफाइड चावल और बायो फोर्टिफाइड फसलें हैं, लेकिन कुपोषण के खिलाफ शुरू हुई इस जंग का देश के कई राज्यों में विरोध भी हो रहा है. इसी बहाने फोर्टिफाइड और बायो फोर्टिफाइड फसलों की पूरी पड़ताल...
असल में किसी भी व्यक्ति के लिए भोजन दो मायनों में विशेष होता है. एक तरफ भोजन से पेट भरता है और शरीर को ऊर्जा मिलती है, तो वहीं दूसरी तरफ भोजन शरीर को जरूरी पोषण युक्त खुराक उपलब्ध कराता है, लेकिन देश में हरित क्रांति के बाद खाद्यान्न उत्पादन के नए रिकाॅर्ड तो स्थापित हुए और इससे भूख मिटाने के लिए पर्याप्त अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकी. तो वहीं दूसरी तरफ अधिक उर्वरकों के बढ़ते प्रयोग से मिट्टी का स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ. नतीजतन मिट्टी से फसलों को पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिल सके और पर्याप्त भोजन उपलब्धता के बाद भी देश की आबादी को पोषण युक्त अनाज उपलब्ध नहीं हो सका. यहीं से शुरू होती है कुपोषण की कहानी, जिनके खिलाफ बायोफोर्टिफाइड फसलें हथियार बनी हैं.
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असल में अनाज में कई तरह के पोषक तत्व होते हैं, लेकिन मौजूदा समय में कई अनाजों में पोषक तत्वों की कमी दर्ज की गई है. इसी के अनुरूप बायोफोर्टिफाइड फसलें विकसित की गई हैं, जिनमें विटामिन बी-1, विटामिन बी-6, विटामिन ई, नियासिन, आयरन, जिंक, फोलिक एसिड, विटामिन बी-12 और विटामिन ए जैसे तत्व मिलाए गए हैं.
बायोफोर्टिफाइड अनाजों की इस पूरी पड़ताल में आगे बढ़ने से पहले जरूरी है कि पहले बायोफोर्टिफाइड और फोर्टिफाइड अनाज के अंतर को समझा जाए. असल में बायोफोर्टिफाइड अनाजों के बीज वैज्ञानिक तैयार करते हैं. इसके बीजों को इस तरह के तैयार किया जाता है कि उनसे से उत्पादित होने वाली फसल में अधिक पोषक तत्व हों. वहीं फोर्टिफाइड अनाज का मतलब अनाज में बाहर से पोषक तत्वों का मिलाने की प्रक्रिया से है. असल में मौजूदा समय में फोर्टिफाइड चावल को पीडीएस में बंटवाया जा रहा है. माना जाता है कि मिलिंग और प्रोसेसिंग के समय सामान्य चावल का छिलका जब उतारा जाता है तो उसके पोषक तत्व कम हो जाते हैं. ऐसे में इसे फोर्टिफाइड करते हुए प्रोसिंगिग के बाद चावल के दाने में पोषक तत्वों काे मिश्रिण किया जाता है. इसकी अपनी एक पूरी प्रक्रिया है, जो राइस मिल में की जाती है.
भारत के कृषि वैज्ञानिकों ने कुपाेषण के खिलाफ इस लड़ाई में अहम जिम्मेदारियां संभाली हैं. जिसके तहत कृषि वैज्ञानिक बायोफोर्टिफाइड फसलें विकसित करने में जुटे हुए हैं. इसकी कड़ी में अभी तक देश में कुल 17 बायोफोर्टिफाइड फसलें विकसित की जा चुकी हैं, जिनकी 85 किस्में मौजूदा समय में बाजार में उपलब्ध हैं. 17 बायोफोर्टिफाइड फसलों की बात कहीं जाए तो इसमें शकरकंद, अलसी, गाजर, गेहूं, मक्का प्रमुख हैं.
असल में देश की बड़ी आबादी को पाेषण युक्त अनाज उपलब्ध कराने के उद्देश्य से फोर्टिफाइड चावल का वितरण PDS से किया जा रहा है. इसके लिए राइस फोर्टिफिकेशन स्कीम भी चलाई जा रही है, लेकिन झारखंड समेत कुछ राज्याें में फोर्टिफाइड चावल का विरोध हो रहा है. असल में सामाजिक कार्यकर्ता फोर्टिफाइड चावल का इस तर्क के आधार पर विरोध कर रहे हैं कि देश के सभी राज्यों की भौगौलिक संरचना अलग है और मानव शरीर की जरूरत भी अलग-अलग हैं, ऐसे में सभी के लिए एक तरह का फोर्टिफाइड चावल गैर जरूरी माना जा रहा है. मसलन, झारखंड के लोगों में आयरन की मात्रा अन्य राज्यों के निवासियों की तुलना में अधिक है तो ऐसे में अधिक आयरन वाला फोर्टिफाइड चावल झारखंड के लिए गैर जरूरी है. वहीं मोटे अनाजों और प्राकृतिक खेती से उपजे अनाजों को भी बायोफोर्टिफाइड अनाजों का विकल्प माना जा रहा है.
बायो फोर्टिफाइड अनाज की जरूरतों को लेकर ICAR IIRR हैदाराबाद की वरिष्ठ वैज्ञानिक और बायो फोर्टिफाइड अनाज की नेशनल कोर्डिनेटर डॉ सीएन नीरजा कहती हैं कि बायोफोर्टिफाइड अनाज के बीज तैयार करने में किसी भी तरह की इंजीनियरिंग नहीं की जाती है. इन बीजों को सामान्य ब्रीडिंंग तकनीक से विकसित किया गया है. इनमें से कुछ बीज हाइब्रिड हैं तो कुछ सामान्य देशी बीज हैं.
दुनिया भारत की पहल पर इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स मना रही है. वहीं मोटे अनाजों को सूखे का सामना करने वाली फसल माना जाता है तो वहीं मोटे अनाजों में कई तरह के पोषणों की खान भी होती है. कुपोषण के खिलाफ जंग में मोटे अनाजों की मौजूदगी के बीच बायो फोर्टिफाइड अनाजों की जरूरतों को लेकर ICAR IARI के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एसपी सिंह कहती हैं कि बाजार, ज्वारा, रागी की भी बायोफोर्टिफाइड विकसित की गई हैं, जिनमें आयरन और जिंक की मात्रा बढ़ाई गई हैं. डॉ सिंह कहते हैं सामान्य बाजरे में 50 से 60 पीपीएम तक आयरन की मात्रा होती है, जबकि बाजरे की बायोफोर्टिफाइड किस्म में 80 पीपीएम तक आयरन है, इस तरह बाजरे की बायो फोर्टिफाइड किस्म में 20 फीसदी आयरन की मात्रा बढ़ाई गई हैं. वह उदाहरण देकर कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति बेहतर पोषक तत्व वाली बायो फाेर्टिफाइड अनाज का आहार लेते हैं तो उन्हें जिंंक, आयरन और कैल्सियम की मात्रा बढ़ाने के लिए दवाओं की आवश्यकता नहीं बढ़ेगी.
देश में कई तरह की विविधताएं हैं. विभिन्न राज्यों के नागरिकों के शरीर में अलग तरह के गुण भी हैं. ऐसे में एक तरह के बायोफोर्टिफाइड अनाज कितने जरूरी है संबंधी सवाल के जवाब में ICAR IIRR हैदाराबाद की वरिष्ठ वैज्ञानिक और बायो फोर्टिफाइड अनाजों की नेशनल कोर्डिनेटर डॉ सीएन नीरजा कहती हैं कि बायोफोर्टिफाइड अनाज प्राकृतिक अनाज हैं, जिससे टॉक्सिस नहीं बनता है. ऐसे में बायोफोर्टिफाइड अनाज से किसी भी तरह से नुकसानदेह नहीं है. वहीं डॉ नीरजा कहती हैं कि फोर्टिफाइड अनाज को क्षेत्र विशेष के हिसाब से तैयार करवाया जा सकता है.
ICAR IIRR हैदाराबाद की वरिष्ठ वैज्ञानिक और बायो फोर्टिफाइड अनाजाें की नेशनल कोर्डिनेटर डॉ सीएन नीरजा कहती हैं बायोफोर्टिफाइड फसलें पूरी तरह प्राकृतिक हैं. उन्होंने कहा कि बायोफोर्टिफाइड फसलों को जब तैयार किया जाता है, उस दौरान उनकी उपज और गुणवत्ता का पूरा ध्यान दिया जाता है. वहीं उनकी कीमत भी सामान्य बीजों की तरह ही होती है. जबकि उनकी प्रकृति भी सामान्य बीजों की तरह होती है. उन्होंने कहा कि बायोफोर्टिफाइड किस्मों की बीजों की विशेषताएं ये होती हैं कि वह मिट्टी से पोषक तत्वों को ग्रहण कर अनाज के दानों में उन्हें भेजने में सक्षम होती हैं, जबकि सामान्य बीज पोषक तत्व मिट्टी से ग्रहण कर अनाज के दानों में नहीं भेज सकते हैं. बायो फोर्टिफाइड फसलें पूरी तरह से प्राकृतिक हैं.
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