उद्योग एवं घरेलू उपयोग में जरूरत से ज्यादा पानी के इस्तेमाल तथा कृषि एवं विकास कार्यों में पानी की पूर्ति के लिए भूजल पर निर्भरता ने उत्तर प्रदेश के तमाम इलाकों में भूजल स्तर को चिंताजनक स्थिति में पहुंचा दिया है. सूबे के 47 जिले भूजल के दोहन के मामले में गंभीर हालात वाली सूची में शामिल हो गए हैं. इनमें 15 जिले भूजल का अति दोहन होने के कारण संकटग्रस्त स्थिति में पहुंच गए हैं. इस श्रेणी में अधिकांश जिले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं. यह स्थिति उप्र सरकार के भूगर्भ जल विभाग की एक रिपोर्ट में उजागर हुई है.
भूजल के दोहन से जुड़े एक मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष भूगर्भ जल विभाग की ओर से पेश रिपोर्ट में ये चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए हैं। विभाग के निदेशक वी के उपाध्याय की ओर से एनजीटी में पेश रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 75 जिलों के कुल 826 विकासखंडों में से 47 जिलों के 269 विकासखंड में भूजल का जरूरत से ज्यादा दोहन हुआ है. भूगर्भीय जल के दोहन के मानकों के मुताबिक इस सूची में उन विकासखंडों को शामिल किया गया है, जिनमें मानसून की बारिश के बाद मैदानी क्षेत्र में भूजल का स्तर 08 मीटर और पाठारी क्षेत्र में 05 मीटर से नीचे चला गया हो. इन जिलों को तीन श्रेणियों (सेमी क्रिटिकल, क्रिटिकल और ओवर एक्सप्लॉयटेड यानि अतिदोहन) में बांटा गया है.
पूरे प्रदेश में भूजल स्तर की स्थिति को दर्शाने वाली 'भूजल संसाधन आकलन रिपोर्ट 2022' के मुताबिक जिन 15 जिलाें के 54 विकासखंडों में जमीन के पानी का अतिदोहन हुआ है, उनमें अधिकांश जिले पश्चिमी क्षेत्र के हैं. इनमें सर्वाधिक 09 विकासखंड आगरा जिले (एत्मादपुर, फतेहाबाद, बिचपुरी, खंदौली, सैंया, फतेहपुर सीकरी, बरौली अहीर, अकोला और शम्साबाद) के हैं. इनता नही नहीं आगरा जिले के बाह और जैतपुर कलां विकासखंड को क्रिटिकल एवं 04 विकासखंडों (पिनहट, अछनेरा, खैरागढ़ और जगनेर) को सेमीक्रिटिकल श्रेणी में शामिल किया गया है. पानी के अतिदोहन के संकट से प्रभावित प्रदेश के अन्य जिलों में बुलंदशहर के 06, फिरोजाबाद के 05, सहारनपुर के 04 तथा बागपत, हाथरस, गाजियाबाद और शामली के 03-03 विकासखंड, शामिल हैं.
प्रदेश के 26 जिलों के 46 विकासखंड क्रिटिकल श्रेणी में रखे गये हैं. इस श्रेणी में भी पश्चिमी उप्र आगे है. इनमें बुलंदशहर और संभल जिले के 04 विकासखंडों के अलावा हापुड़, हाथरस, अमरोहा, मथुरा, मेरठ, मुजफ्फरनगर और बदायूं के 02-02 विकासखंड शामिल हैं.
भूजल दोहन के मामले में पूर्वी उप्र में तुलनात्मक रूप से हालात कुछ हद तक संतोषजनक कहे जा सकते हैं। इनमें सिर्फ वाराणसी और कौशांबी जिलों के दो दो विकासखंड पानी के अतिदोहन वाली श्रेणी में शामिल किये गये हैं. इसके अलावा प्रतापगढ़ जिले के 04, प्रयागराज और वाराणसी के 02-02 और कानपुर नगर का 01 विकासखंड क्रिटिकल श्रेणी में शुमार है. हालांकि प्रयागराज और प्रतापगढ़ जिले के 09-09, जौनपुर के 08, कानपुर देहात के 07, संतरविदास नगर एवं कानपुर नगर के 06-06 तथा कौशांबी के 04 विकासखंड सेमी क्रिटिकल श्रेणी में हैं.
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जलसंकट के लिए बदनाम हो चुके बुंदेलखंड इलाके में भूजल के दोहन के लिहाज से रिपोर्ट में स्थिति को सुरक्षित बताया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक बुंदेलखंड के 07 जिलों में कुल 47 विकासखंडों में से 05 जिलों के 21 विकासखंड पूरी तरह से सुरक्षित श्रेणी में हैं. जबकि 06 जिलों के 26 विकासखंड सेमी क्रिटिकल और क्रिटिकल श्रेणी में हैं. बुंदेलखंड महोबा जिले के पनवाड़ी और जैतपुुर को छोड़ कर कोई अन्य विकासखंड भूजल के अतिदोहन वाली श्रेणी में शामिल नहीं है. वहीं चित्रकूट जिले में कर्बी विकासखंड क्रिटिकल श्रेणी में है.
बुंदेलखंड में सबसे बेहतर स्थिति में जालौन जिला है. इसके सभी 09 विकासखंड सुरक्षित श्रेणी में पाये गये हैं. इनके अलावा झांसी, बांदा के 04-04 विकासखंड, हमीरपुर के 03 और चित्रकूट का 01 विकासखंड भूजल दोहन के मानकों पर खरे उतरे हैं. इस इलाके के ललितपुर जिले के सभी 06 विकासखंड, बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर और झांसी के 04-04 और महोबा के 02 विकासखंड सेमी क्रिटिकल श्रेणी में हैं।
भूगर्भ जल विभाग के निदेशक वीके अग्रवाल ने रिपोर्ट में कहा कि भूजल दोहन के तीन प्रमुख कारक कृषि, उद्योग एवं दैनिक उपभोग हैं. राज्य में उप्र भूगर्भ जल (प्रबंधन एवं विनियमन) कानून 2019 के तहत कृषि एवं घरेलू उपयोग के लिये भूजल निकालने की छूट है. ऐसे में इन हालात से निपटने के लिए अनियंत्रित जल दोहन पर काबू पाने और छोटे बड़े तालाबों का निर्माण करने जैसे जल संरक्षण के उपायों को यथाशीघ्र अमल में लाने का सुझाव सभी संबद्ध एजेंसियों को दिया गया है. उन्होंने कहा कि इस समस्या का यही तात्कालिक उपाय है.
पर्यावरणविदों ने पश्चिमी उप्र में यमुना के तटवर्ती इलाकों में पानी के अत्यधिक दोहन की वजह से भूजल स्तर नीचे जाने पर हैरानी जताई है. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में खेत पर तालाब बनाने का सफल अभियान चलाने वाले पुष्पेन्द्र 'भाईजी' का कहना है कि पठारी इलाकों में भूजल के अनियंत्रिति दोहन से जलस्तर नीचे जाने की बात ताे समझ में आती है, लेकिन यमुना जैसी बड़ी नदी के तटवर्ती मैदानी इलाकों में यह स्थिति उत्पन्न होना चिंता की बात है।
उन्होंने कहा कि पश्चिमी उप्र के इन संकटग्रस्त इलाकों में साल भर पानी को सहेजने की क्षमता वाले छोटे बड़े तालाब बनाने होंगे. यही इस समस्या का एकमात्र उपाय है. गौरतलब है कि पुष्पेन्द्र 'भाईजी' को बुंदेलखंड में 'अपना तालाब अभियान' सफलतापूर्वक चलाकर 25 हजार तालाब बनवाने के लिये हाल ही में जलशक्ति मंत्रालय द्वारा सम्मानित कयिा गया था. वह पिछले कुछ सालों से बुंदेलखंड के बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट और खजुराहो, पन्ना एवं छतरपुर जिलों में किसानों को खेत पर तालाब बनाने के लिए प्रेरित करने का सफल अभियान चला रहे हैं.
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