भारत के पास एक अपनी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति है, जिसे आयुर्वेद के रूप में जाना जाता है. आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने के लिए जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है. लेकिन इन जड़ी बूटियों का इस्तेमाल लोग घरेलू नुस्खों के रूप में भी करते हैं. इन नुस्खों से कई तरह की जटिल बीमारियां ठीक हो जाती हैं. खास बात यह है कि ये जड़ी बूटियां घर के आसपा ही खेत- खलिहानों या बगीचों में मिल जाती हैं. लेकिन आज हम एक ऐसी जड़ बूटी के बारे में बात करेंगे, जिसकों खाने से खांसी- जुकाम सहित कई तरह के रोगों में राहत मिलती है.
दरअसल, हम जिस जड़ी बुटी के बारे में बात करने जा रहे हैं, उसका नाम बहेड़ा है. यह एक ऐसी औषधी है, जो बड़ी-बड़ी अंग्रेजी दवाओं को मात देता है. यह हर किसी के किचन में मौजूद होता है. इसका दवा के रूप में सेवन करने पर कब्ज और दस्त में काफी फायदा होता है. साथ ही इसका बुखार की दवा के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. खास बात यह है कि बहेड़ा का चूर्ण नियमित रूप से खाने से पाचन क्रिया मजबूत रहती है. चिकित्सकों की माने तो बहेड़ा जैविक यौगिकों से भरपूर है. इसमें इसे रोगाणुरोधी, एंटीऑक्सीडेंट और प्रतिरक्षाविज्ञानी गुण प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं.
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बहेड़ा को संस्कृत में विभीतकी कहा जाता है, जबकि अंग्रेजी में इसका नाम फीयरलेस है. अगर आप बहेड़ा के साथ आंवला और हरड़ का चूर्ण बनाकर सेवन करते हैं, तो यह वात, पित्त और कफ को संतुलित करने में मदद करेगा. साथ ही यह वजन घटाने में सहायक होता है. इन तीनों के चूर्ण को खाने से पेट दर्द, कब्ज और ब्लड शुगर के स्तर को बनाए रखने में सहायक होता है. ऐसे बहेड़ा का वानस्पतिक नाम टर्मिनलिया बेलिरिका है. यह कॉम्ब्रेटेकिया परिवार से तालुक रखता है.पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बहेड़ा बड़े स्तर पर पाया जाता है.
आयुर्वेद के अनुसार बहेड़ा खून को डिटॉक्सीफाई करने में मदद करता है. यह खांसी और सर्दी से राहत देता है. इसका नियमित सेवन करने से आंखों की रोशनी ठीक रहती है. भारत में शोधकर्ताओं ने बहेड़ा पर शोध भी किया है. शोध में पाया गया है कि डायरिया के रोगियों को बहेड़ा फल के बायोएक्टिव अंश (मेथनॉल में निकाले गए) से बनी गोलियां दिए जाने पर उनमें दो सप्ताह में भी काफी फायदा होता है. वहीं, चूहे के ऊपर भी बहेड़ा का शोध किया गया है. अध्ययन में पता चला कि बहेड़ा के फलों के गूदे का एथनॉलिक और जलीय अर्क दस्त के उपचार में प्रभावी है. अध्ययन के अनुसार, इस अर्क में एंटी-डायरियल प्रभाव इसलिए हैं क्योंकि इसमें फ्लेवोनोइड्स, टैनिन और अल्कलॉइड्स मौजूद हैं.
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वहीं, श्रीलंका में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि बहेड़ा के फल का अर्क उन रोगाणुरोधी दवाओं के लिए एक अच्छा स्रोत हो सकता है, जिसका इस्तेमाल एमआरएसए (मेथिसिलिन रेजिस्टेंट स्टैफिलोकोकस ऑरियस) और एमडीआर स्यूडोमोनस एरुगिनोसा (जिसकी वजह से हॉस्पिटल या अन्य ऐसी जगह पर संक्रमण हो जाता है) सहित 'मल्टीपल ड्रग रेजिस्टेंट बैक्टीरिया' के खिलाफ किया जाता है.
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