भारत में कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान 16 प्रतिशत से अधिक है और यह देश के लगभग 42.3 प्रतिशत कार्यबल को रोजगार प्रदान करता है. हालांकि, कृषि क्षेत्र के सामने एक बड़ी चुनौती है – किसानों को ऋण प्राप्त करने में कठिनाइयाँ. रिपोर्टों के अनुसार, 86 प्रतिशत भारतीय किसान छोटे और सीमांत होते हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है. इन किसानों के लिए बैंकों से ऋण प्राप्त करना बहुत मुश्किल होता है, और वे उच्च ब्याज दर वाले अनौपचारिक ऋण स्रोतों पर निर्भर रहते हैं.
संपार्श्विक की कमी: अधिकतर किसानों के पास छोटी या खंडित भूमि होती है, जो उन्हें पारंपरिक ऋण के लिए अयोग्य बना देती है.
प्रक्रियात्मक समस्याएँ: बैंकों की ऋण प्रक्रिया में लंबी और जटिल दस्तावेज़ीकरण और सत्यापन प्रक्रियाएँ होती हैं, जिससे किसानों को इनका लाभ उठाने में कठिनाई होती है.
ब्याज दर का अंतर: बैंकों से सस्ते ऋण के बजाय, किसान अनौपचारिक ऋणदाताओं से महंगे ब्याज दरों पर कर्ज लेते हैं, जिससे उनका आर्थिक बोझ बढ़ जाता है.
वित्तीय शिक्षा की कमी: कई किसान सरकारी ऋण योजनाओं के बारे में अनजान होते हैं, और उन्हें इन योजनाओं तक पहुँचने में कठिनाई होती है.
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गोदाम रसीद वित्तपोषण: किसानों को भूमि-आधारित संपार्श्विक की आवश्यकता के बिना उनके संग्रहीत कृषि उत्पादों के आधार पर ऋण मिल सकता है.
मूल्य श्रृंखला वित्तपोषण: कृषि आपूर्ति श्रृंखलाओं से जुड़े वित्तीय सेवाओं के माध्यम से किसानों को ऋण प्राप्त करने में मदद मिल सकती है.
प्रौद्योगिकी का उपयोग: डिजिटल प्लेटफार्म, एआई और डेटा विश्लेषण के माध्यम से किसानों को आसान ऋण प्राप्ति की सुविधा मिल सकती है. ये तकनीकी उपाय किसानों के लिए ऋण आवेदन और अनुमोदन प्रक्रिया को सरल बना सकते हैं.
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किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ): छोटे किसानों के लिए समूह ऋण और सामूहिक जिम्मेदारी के मॉडल को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिससे उनका ऋण प्राप्त करना आसान होगा.
भारत सरकार ने कृषि ऋण की पहुंच बढ़ाने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं. इनमें किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) और ई-एनडब्ल्यूआर-आधारित प्रतिज्ञा वित्तपोषण (CGS-NPF) शामिल हैं, जिनसे छोटे किसानों को आसान ऋण मिल सकेगा. साथ ही, महिला किसानों को सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं भी चल रही हैं.
कृषि क्षेत्र में ऋण की पहुंच बढ़ाने से किसानों को सशक्त किया जा सकता है और उनके आर्थिक स्थिरता में सुधार हो सकता है. अगर हम सभी मिलकर काम करें, तो एक ऐसा वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र बन सकता है जो भारतीय किसानों को स्थायी कृषि विकास और समृद्धि की ओर ले जाए.
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