Blue Pinkgill Mushroom: तेलंगाना के जंगलों में दिखे दुर्लभ नीले मशरूम

Blue Pinkgill Mushroom: तेलंगाना के जंगलों में दिखे दुर्लभ नीले मशरूम

इस मशरूम को आमतौर पर “स्काई-ब्लू मशरूम” कहा जाता है. इसकी चमकदार नीली टोपी और गुलाबी से बैंगनी रंग की गिल्स इसे बेहद खास बनाती हैं.

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Blue Pinkgill Mushroom: तेलंगाना के जंगलों में दिखे दुर्लभ नीले मशरूमBlue Pinkgill Mushroom (Photo: Wikipedia)

तेलंगाना के जंगलों में मानसून के दौरान दुर्लभ और रंग-बिरंगे मशरूम की अनोखी झलक देखने को मिल रही है. पुलिगुंडला वन क्षेत्र (खम्मम डिवीजन) में वन विभाग की टीम ने पहली बार ब्लू पिंकगिल मशरूम (Entoloma hochstetteri) देखा है. इससे पहले इसकी झलक कोमराम भीम आसिफाबाद जिले के कागज़नगर जंगल में मिली थी.

इस मशरूम को आमतौर पर “स्काई-ब्लू मशरूम” कहा जाता है. इसकी चमकदार नीली टोपी और गुलाबी से बैंगनी रंग की गिल्स इसे बेहद खास बनाती हैं. यह मशरूम मूल रूप से न्यूज़ीलैंड में पाया जाता है, इसलिए भारत में इसकी मौजूदगी को बहुत ही दुर्लभ माना जा रहा है. 

जहरीले होते हैं इस प्रजाति की मशरूम
वैज्ञानिकों का कहना है कि Entoloma प्रजाति के कई मशरूम जहरीले होते हैं, इसलिए भारत में मिले इस मशरूम की खाने योग्य होने या न होने की पुष्टि नहीं है. इसकी नीली रंगत का रहस्य भी वैज्ञानिकों के लिए रिसर्च का विषय बना हुआ है. हाल ही में, कवाल टाइगर रिज़र्व में वैज्ञानिकों ने शटल कॉक मशरूम (Clathrus delicatus) भी देखा है. अब तक यह सिर्फ पश्चिमी घाट में ही पाया जाता था. 

विशेषज्ञों का कहना है कि मशरूम जंगलों की सेहत और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के अहम संकेतक हैं. मानसून की नमी और तापमान इनके उगने के लिए सबसे अनुकूल समय होता है. ये फंगस पोषक तत्वों की रिसायक्लिंग और डीकंपोजिंग (अपघटन) में अहम भूमिका निभाते हैं. 

संरक्षण की जरूरत
जिला वन अधिकारी सिद्धार्थ विक्रम सिंह ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “यह खोज हमारे वनों के पारिस्थितिक महत्व को दिखाती है. जैसे बड़े जानवरों और पेड़ों का संरक्षण जरूरी है, वैसे ही दुर्लभ फंगस का डॉक्यूमेंटेशन और सुरक्षा भी उतनी ही अहम है, क्योंकि ये सब जीवन के नाजुक संतुलन का हिस्सा हैं.”

वैज्ञानिकों का मानना है कि तेलंगाना में मिली इन खोजों ने यह साबित किया है कि राज्य के जंगल जैव विविधता से बेहद समृद्ध हैं. इसलिए इन वनों का संरक्षण करना बेहद जरूरी है ताकि ऐसी अनूठी प्रजातियां भविष्य में भी सुरक्षित रह सकें. 

 

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