आपने रॉकेट साग का नाम सुना है? हो सकता है इस नाम से उस साग को नहीं जानते हों. लेकिन इससे आपका वास्ता जरूर पड़ा होगा. दरअसल यह सरसों की तरह ही एक साग है जो सब्जी के ठेले और दुकानों पर मिल जाता है. इसका नाम अलग-अलग हो सकता है. पर सबका काम एक ही है. वह है सलाद. रॉकेट साग का इस्तेमाल सलाद के रूप में सबसे अधिक होता है. यहां तक कि बड़े-बड़े होटलों और रेस्तरां में खाने के टॉपिंग और ड्रेसिंग में भी इसका बहुत इस्तेमाल होता है. एक और खास बात. यह साग वर्जिश करने वाले यानी बॉडीबिल्डर के लिए बहुत ही उपयोगी है.
इस साग के बारे में कृषि राज्यमंत्री शोभा करंदलाजे ने भी जानकारी दी है. एक ट्वीट के माध्यम से उन्होंने बताया है कि यह साग कितना उपयोगी है और इसका सेहत पर कितना अच्छा असर है. शोभा करंदलाजे अपने वीडियो ट्वीट में लिखती हैं, रॉकेट साग सरसों की फैमिली से नाता रखता है और इसका सबसे अधिक इस्तेमाल सलाद में किया जाता है.
रॉकेट साग को उगाना बहुत ही आसान है और किसान इसे हर मौसम और हर जलवायु में देश के किसी भी कोने में उगा सकते हैं. रॉकेट साग की मांग पोषक तत्वों की भरपाई में तो है ही, दवा कंपनियों भी इस साग की बहुत मांग रखती हैं. इसके अलग-अलग नाम हैं जैसे तारामेरा, अरुगुला, रॉकेट और गारघिर. रॉकेट को विशेष सब्जी और सागों का दर्जा मिला हुआ है.
देश जैसे-जैसे विशेष सब्जियों की मांग बढ़ रही है, वैसे-वैसे किसान उन्हें बोने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. रॉकेट में मौजूद हल्का तीखापन और कड़वापन सलाद के स्वाद को बढ़ा देता है. आहार विशेषज्ञों का कहना है कि रॉकेट सलाद परिवार की सबसे पौष्टिक प्रजाति है. कमाल की बात ये है कि इसकी खेती साल में कभी भी की जा सकती है. बस ध्यान रखना है कि तापमान 13 से 22 डिग्री के आसपास होना चाहिए.
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तेज धूप और गर्म वातावरण वाले इलाकों में इसे सर्दियों के दौरान उगा सकते हैं. भारत के ज्यादातर हिस्सों में सितंबर से फरवरी के बीच इसकी खेती होती है. जिस खेत में रॉकेट बो रहे हैं उसमें मिट्टी का पीएच मान 6.5 से सात के बीच होना चाहिए. दूसरी सलाद सब्जियों की तरह की रॉकेट या तारामेरा की खेती खेतों की मेढ़ पर करते हैं. किसान चाहें तो सीधी इसकी बिजाई करें या चाहें तो पहले नर्सरी लगा सकते हैं.
रॉकेट को एक बार बोने के बाद कई बार इसकी कटाई की जा सकती है. हर कटाई के बाद 25-30 दिन बाद इसकी फसल फिर से तैयार हो जाती है. जहां तक पैदावार की बात है तो एक एकड़ में 8000 से 10000 तक फसल मिल जाती है. रॉकेट की जीवन अवधि कम होती है, इसलिए इसे थर्मोकॉल की ट्रे में रखकर प्लास्टिक से इसे पैक करते हैं जिससे इसे कुछ दिनों तक बचा कर रखा जा सकता है. इससे रॉकेट को बेचने में आसानी होती है.
रॉकेट में विटामिन ए, बी और सी के साथ-साथ विटामिन ई, आयरन, कैल्शियम और मैगनीज अच्छी मात्रा में पाया जाता है. यह गैस्ट्रिक अल्सर में कारगर है. इसकी पौष्टिकता को देखते हुए बॉडीबिल्डर इसका खूब इस्तेमाल करते हैं. उनके लिए यह साग किसी सुपरफूड से कम नहीं माना जाता. भारत और पाकिस्तान में तारामेरा तेल इसी रॉकेट के बीज से निकाला जाता है. यह तेल बालों को मजबूत बनाने और रूसी को खत्म करने में काम आता है.
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भारत में रॉकेट की खेती तेजी से बढ़ रही है. खासतौर पर सिक्किम, कर्नाटक, उत्तराखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में इसकी खेती अधिक होती है. महाराष्ट्र में इसका सलाद के रूप में सबसे अधिक सेवन होता है. इसकी सब्जी महंगी बिकती है जिससे किसानों को अधिक मुनाफा होता है. पिछले कुछ समय से पंजाब और हरियाणा में इसकी खेती बड़े पैमाने पर बढ़ी है क्योंकि सलाद के रूप में यहां से अधिक मांग निकल रही है.
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