यूपी में जालौन के किसानों को इस सीजन सिंचाई के पानी के लिए नहीं जूझना होगा. इसकी वजह है एक नदी जो पूरी तरह से सूख चुकी थी. मगर स्थानीय लोगों ने उसे अपने दम पर जिंदा कर दिया है. इस नदी का नाम है नून. पूर्व में यह नदी हजारों लोगों की खेती का सहारा थी. कई साल तक इसके पानी से सिंचाई का सिलसिला चला. बाद में लोग इस नदी के दोनों तरफ अतिक्रमण करते चले गए. बारिश का पानी कम होता गया. नतीजा हुआ कि नून नदी पूरी तरह से सूख गई. नदी के सूखते ही पूरे इलाके की खेती-बाड़ी चौपट हो गई. मगर अब इसमें हरियाली लौटने वाली है.
यह सबकुछ इसलिए हो रहा है क्योंकि जालौन के लोगों ने एक मृतप्राय नदी को पूरी तरह से जिंदा कर दिया है. 81 किलोमीटर लंबी अपनी लोकल नदी को फिर से हरा-भरा कर दिया है. यह नदी बहुत जल्द फिर से अपने पुराने दौर में लौटते हुए बहने वाली है. बस कुछ दिनों का और इंतजार है. जालौन के लोगों ने इस काम में 4 साल लगाए हैं और नदी को जिंदा किया है. इसका जिक्र खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने रेडियो प्रोग्राम मन की बात में कर चुके हैं. प्रधानमंत्री ने कहा था कि बुंदेलखंड के लोग जल्द अजूबा करेंगे.
इस नदी को जिंदा करने के लिए जालौन के लोगों ने सामुदायिक स्तर पर काम किया. नदी के मुहाने पर 14 किलोमीटर तक इसके बेसिन की मरम्मत कर पानी से भरने लायक बनाया. इसके बेसिन को ऐसे तैयार किया ताकि उसमें पानी प्रवेश कर सके. 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की एक रिपोर्ट बताती है, कम पानी और अतिक्रमण के चलते यह नदी पूरी तरह से सूख गई थी. बाद में लोकल लोगों ने इसे जिंदा करने की योजना बनाई और कई साल की उनकी मेहनत अब रंग लाती दिख रही है.
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2021 में इस नदी को फिर से बहने लायक बनाने का काम शुरू किया. जिले के लोगों ने समुदाय बनाकर काम करना शुरू किया. उनका यह काम अभी हाल में ही खत्म हुआ है. इसमें अपनी इच्छा के अनुसार हजारों महिला और पुरुषों ने मजदूरी का काम किया. अधिकारी बताते हैं कि इस नून नदी के पूरे विस्तार में अगले पखवाड़े तक पानी बहना शुरू हो जाएगा. नून नदी 47 गांवों से बहते हुए जालौन के दूसरे हिस्से में यमुना नदी में मिल जाती है. इस दौरान हजारों एकड़ खेतों में सिंचाई का पानी देती है. लेकिन बीते कुछ साल से यह सिलसिला थम गया था क्योंकि नदी सूख गई थी.
नदी के जिंदा होते ही 2780 एकड़ खेत को फिर से पानी मिलने लगेगा. साथ ही, उन पशुओं का गला भी तर होगा जो सूखे क्षेत्रों में प्याज बुझाने के लिए इधर-उधर भटकते हैं. नदी किनारे के इलाकों में घास के मैदान भी बढ़ेंगे जिससे पशुओं को चारा मिलेगा. यहां के लोगों ने भी मान लिया कि बिना सोचे समझे नदियों का रास्ता रोकना, घाटों पर अतिक्रमण करना कई मायनों में खतरनाक है. इसका असर न केवल खेती पर पड़ता है बल्कि इसके दूरगामी परिणाम होते हैं. जालौन के लोगों ने इसे समझा और नून नदी को फिर से जिंदा कर दिया.
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