उत्तर प्रदेश के कृषि मंंत्री सूर्य प्रताप शाही दाल पर दिए अपने एक रिएक्शन को लेकर ट्रोल हो रहे हैं. उन्होंने मंगलवार को एक प्रेस क्रांफ्रेस में दाल के दाम 100 रुपये से अधिक होने की बात को सिरे से खारिज कर दिया था और इसके बाद वह अपने अंदाज में मुस्कुरा दिए थे. इसके बाद से यूपी के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही सोशल मीडिया पर ट्रोल हो रहे हैं. तो वहीं नेशनल मीडिया में उनके इस बयान काे लेकर चर्चा हो रही है. कारण ये है कि दालों के बढ़े हुए दामों में आम आदमी का बजट बिगाड़ा हुआ है और मंंत्रीजी इससे बेखबर हैं.
ये बेहतर है, राजनेताओं को आमआदमी और उनकी परेशानियों को लेकर संंजीदा होना चाहिए. अगर नेताजी संजीदा ना हो तो सोशल मीडिया से लेकर नेशनल मीडिया के पुराेधाओं को उनकी खिंचाई भी करनी चाहिए, लेकिन सिर्फ आम आदमी के मामलों में ही राजनेताओं से संजीदगी की उम्मीद रखने काे न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता है. साथ ही किसानों के मामले में सोशल मीडिया के पुरोधाओं की चुप्पी भी कई सवाल खड़े करती है.
दालों पर दूसरा मामला भी किसानों से ही जुड़ा हुआ है, जिसमें मूंग के साथ राज्य सरकारें मक्कारी करते हुए दिखाई दे रही है. आलम ये है कि जब देश दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए जोर लगा रहा हो, उस वक्त मूंग के साथ राज्य सरकारों की ये लाचारी कई सवाल खड़े करती है.
आइए मूंग के साथ हो रहे इस अत्याचार की पूरी कहानी समझते हैं, जिसमें मूंग किसानों के हिस्से सिर्फ नुकसान आ रहा है. साथ ही समझेंगे कि मूंग ने कैसे दालों की बेहाली झेल रहे भारत की लाज बचा कर रखी है. साथ ही ये भी जानेंगे कि कैसे मूंग की खेती सरकारी एजेंडे को आगे बढ़ा रही है.
दालों के उत्पादन के मामले में भारत ग्लोबली नंबर वन है. भारत दुनिया के कुल उत्पादन का अकेले 25 फीसदी उत्पादित करता है, लेकिन भारत में दालों की खपत इससे अधिक है. कुल खपत की 27 फीसदी अकेले भारत में है. मांग और आपूर्ति के इस दो फीसदी अंंतर को पाटने के लिए भारत दालों का इंपोर्ट करता है, जिसके लिए भारत 4 से 5 मिलियन मीट्रिक टन तक दाल का इंपाेर्ट करता है, जिसमें अरहर, मसूर, उड़द का इंपोर्ट होता है, जबकि मूंग और चना का उत्पादन कर देश के किसानों ने आर्पूति बनाई रखी है.
दालों की इस बेहाली को खत्म करने के लिए भारत सरकार ने 2027 तक दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य रखा है. जिसका मतलब ये है कि भारत दालों से जुड़ी अपनी जरूरतें घरेलू उत्पादन से ही पूरी करेगा. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने तय किया है कि किसानों से 100 फीसदी अरहर, उड़द और मसूर की खरीदारी MSP पर की जाएगी. यानी जितनी पैदावार दालों की होगी, वह सभी MSP पर खरीदी जाएगी. ये पूरी कोशिश किसानों को दालों की खेती के लिए प्रेरित करने की है.
भारत सरकार दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनने की राह पर आगे बढ़ रही है, लेकिन देश के कई राज्यों में मूंग के साथ मक्कारी की जा रही है. इस वजह से किसानों को फसल बेचने में नुकसान उठाना पड़ रहा है. आइए जायज सीजन में उगाई जाने वाली मूंग के साथ हो रही मक्कारी और किसानों को हो रहे नुकसान की कहानी समझते हैं.
1- मध्य प्रदेश- मध्य प्रदेश सरकार ने मूंग खरीद को लेकर बीत दिनों नया नियम जारी किया है. जिसके तहत अब किसान प्रति हेक्टेयर 8 क्विंटल मूंग ही MSP पर बेच सकेंगे. इस आदेश से पहले तक किसान प्रति हेक्टेयर 14 क्विंटल मूंग MSP पर बेच सकते थे, जबकि प्रति हेक्टेयर उत्पादन 16 से 18 क्विंटल है.
नए आदेश के बाद सीधे तौर पर 6 क्विंटल मूंग MSP के दायरे से बाहर हो गई है. मूंग का MSP 8682 रुपये क्विंटल तय है, जबकि बाजार में 7000 से 7500 रुपये क्विंटल के दाम चल रहे हैं. बाजार में फसल बेचने पर किसानों काे अगर 1000 रुपये का नुकसान भी माना जाए तो इस अनुपात से पिछले साल की तुलना में किसानों को प्रति हेक्टेयर 6 हजार रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है.
पंजाब- पंजाब में मूंग किसानों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. मध्य प्रदेश से चार कदम आगे बढ़ते हुए पंजाब सरकार ने इस बार MSP पर मूंग खरीद का कोई नियम नहीं बनाया. रिपोर्ट्स के अनुसार पंजाब सरकार की इस नीति की वजह से निजी व्यापारियों ने MSP से कम भाव में किसानों से मूंग की खरीद ली.
रिपोर्ट के अनुसार पंंजाब में निजी व्यापारियों ने 26000 मीट्रिक टन मूंग की खरीदी की है, जो कुल उत्पादन का 90 फीसदी है. निजी व्यापारियों ने किसानों से MSP से 500 से 1000 रुपये कम भाव में मूंग की खरीदी की है.
मूंग किसानों को हो रहे नुकसान की कहानी को समझने के बाद मूंग की भूमिका को भी समझना जरूरी है. अगर भारत में दालों के उत्पादन में मूंग की हिस्सेदारी की बात करें ताे कहा जा सकता है कि मूंग ने ही दालों के मामले में भारत की लाच बचाई है. जब अन्य दालों का रकबा कम होता रहा, लेकिन मूंग के रकबे में तेजी रही. जबकि मूंग की खेती से फसल विविधिकरण को भी बढ़ावा मिला.
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