
मॉनसून रूठा हुआ है. जिस मॉनसून को बारिश और ठंडक देनी थी, वही मॉनसून लोगों को तपिश और अगन दे रहा है. लोग दिन-रात आसमान तकते हैं कि अब आएंगे काले घनघोर बादल और अब होगी झमाझमा बारिश. लेकिन मॉनसून है कि लोगों की ख्वाहिशें तार-तार कर रहा है. आसमान तकने की हालत तब है जब दुनिया नई-नई टेक्नोलॉजी से अटी पड़ी है. आज हमारे पास सामर्थ्य बादल से लेकर पानी बनाने तक की है. इसके बावजूद लोगों की मुश्किलें कम नहीं हो रहीं. और एक जमाना वो भी था जब लोग बिना किसी तकनीक या मशीन के बारिश की सटीक जानकारी दे देते थे. लोक कहावतों और कविताओं में बता देते थे कि बारिश होने या नहीं होने के क्या संकेत हैं. ऐसे दूरदर्शी लोगों में एक नाम है घाघ का जिन्हें कृषि पंडित भी कहा जाता है. आज हम उनकी कहावतों के जरिये जानेंगे कि उन्होंने बारिश और मॉनसून के क्या-क्या संकेत दिए.
यहां घाघ का जिक्र इसलिए किया जा रहा है क्योंकि बारिश और खेती को जब जोड़कर चलना हो, तो घाघ से अच्छा कोई और वैज्ञानिक नहीं हो सकता. यूं तो घाघ पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन वे मौसम की नब्ज गहराई तक पकड़ते थे. वे कहावतों की चंद लाइनों में बता देते थे कि आपके गांव-देहात या नगर में कब बारिश होगी. वे बता देते थे कि हालात सामान्य न रहे तो बारिश के लिए लोग तरस जाएंगे. आइए कुछ ऐसे ही कहावतों पर गौर करते हैं.
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1- दिन में गर्मी रात में ओस, कहें घाघ बरखा सौ कोस
इन लाइनों में महाकवि घाघ कहते हैं, दिन की गर्मी से अगर बादल नहीं बने या रात में ओस पड़ने से पूरी नमी निकल जाए तो बारिश नहीं होगी. इस लाइन से स्पष्ट है कि दिन में गर्मी रहे, लेकिन रात में ओस गिरे तो मान कर चलें कि बारिश नहीं होगी.
2-सब दिन बरसो दखिना बाय, कभी न बरसो बरसा पाय
इन लाइन के माध्यम से महाकवि घाघ कहते हैं, जब हवा दक्षिणी यानी कि दक्षिण पश्चिम की तरफ से चले और बादलों को पूरब दिशा की ओर न ले जाए तो बारिश नहीं होगी. पूरब की ओर बादलों के जाने से पर्वत की चोटियों से टकराकर बारिश होती है. अगर बादल पूरब की ओर नहीं जाएंगे तो बारिश नहीं होगी.
3-जेठ मास जो तपै निरासा, तो जानों बरखा की आसा
जेठ महीने के बारे में कहा गया है कि जब इस माह में सबसे अधिक गर्मी पड़ती है तो बारिश भी सबसे अधिक होने की संभावना रहती है. जेठ महीने में गर्मी अधिक पड़ने से पानी वाष्प बनता है और इसी से बादल का निर्माण होता है जिससे बारिश आती है.
4-जै दिन जेठ बहे पुरवाई, तै दिन सावन धूरि उड़ाई
महाकवि घाघ कहते हैं, अगर जेठ महीने में अधिक दिनों तक पुरवा हवा चलेगी, तो सावन महीने में उतना ही अधिक सूखा पड़ेगा. यहां 'धूरि उड़ाई' का अर्थ धूल उड़ने से है और यह स्थिति तब होती है जब बारिश नहीं होती और मिट्टी पूरी तरह से सूखी रहती है. इसलिए जेठ महीने के संकेत से समझ सकते हैं कि सावन में बारिश होगी या नहीं.
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5-दिन के बद्दर, रात निबद्दर, बहे पुरवाई झब्बर-झब्बर, कहै घाघ कुछ होनी होई, कुआं खोदि के धोबी धोई
इस कहावत के जरिये घाघ लोगों को बताते हैं, अगर दिन में बादल छाए रहे और रात में आसमान बिल्कुल साफ हो. साथ ही पुरवा हवा जोर-जोर से चलती रहे तो उस साल सूखा पड़ना निश्चित है. ये कुछ ऐसे संकेत हैं जिनसे बारिश होने या नहीं होने के बारे में आसानी से समझा जा सकता है. ये संकेत महाकवि और कृषि पंडित घाक की कहावतों में मिलते हैं.
6- श्रावण शुक्ला सप्तमी, डूब के उगे भान, तब ले देव बरिसिहें, जब सो देव उठान
इस कहावत में घाघ कहते हैं कि सावन शुक्ल सप्तमी को सूर्य अगर बादलों में डूब कर फिर से उगता है तो कार्तिक महीने में देवोत्थान एकादशी तक जरूर बारिश होती है.
7-जब पुरवा, पुरवा रस पाई, तब गड़ही में नाव चलाई
इसका अर्थ हुआ कि अगर पुरवा नक्षत्र में पुरवा हवा चलेगी कि यह निश्चित है कि बहुत अधिक बारिश होगी. इतनी अधिक बारिश होगी कि छोटे गड्ढों में भी नाव चलने की स्थिति बन जाएगी.
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