घर के बने खाने का स्वाद ही कुछ और होता है. सिर्फ स्वाद ही नहीं, ये सेहत से भी भरपूर होता है. लेकिन कई बार खाना बनाने की मेहनत से बचने और बाहर के खाने का स्वाद लेने के लिए लोग बाहर से खाना मंगवाना या खाना पसंद करते हैं. जिसका हमारी सेहत पर बुरा असर पड़ता है. खासकर अगर बात मिठाई की करें तो लोग इसे बाहर से मंगवाकर खाना पसंद करते हैं. लेकिन आपको बता दें कि आप इसे घर पर भी बेहद आसानी से बना सकते हैं वो भी बेहद कम मेहनत में. आज की मिलेट रेसिपी में हम बात करेंगे सांवा के काले जामुन की और जानेंगे इसे घर पर आसानी से कैसे बनाया जाता है.
कोई खास त्यौहार हो या हमारे घर कोई आने वाला हो तो सबसे पहले हमारे दिमाग में मिठाई का ख्याल आता है. मिठाई को खुशियों का प्रतीक भी माना जाता है. इसलिए हम हर अच्छे काम में मिठाई खाते या खाते हैं. लेकिन कई बार जब हम बाहर से मिठाई मंगवाते हैं तो वो ऐसी सामग्री से बनी होती है जिसका हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. जिससे हमारा स्वास्थ्य धीरे-धीरे खराब होने लगता है. ऐसे में स्वाद और सेहत दोनों को बरकरार रखने के लिए हम घर पर ही आसानी से सांवा का काला जामुन बना सकते हैं. इसकी रेसिपी जानने से पहले आइए जानते हैं सांवा क्या है और इसके फायदे क्या हैं.
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सांवा बाजरा या बार्नयार्ड बाजरा एक छोटा सफेद अनाज है जिसे सांवा चावल के नाम से भी जाना जाता है. ये अनाज बाजरा परिवार से संबंधित हैं. भारत में, उपवास के दौरान अनाज नहीं खाया जाता है, इसलिए कई लोग मिलेट्स खाना पसंद करते हैं. इसमें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, उच्च फाइबर, बी-विटामिन और उपयोगी खनिज होते हैं. स्वास्थ्य लाभ पाने के लिए इसे आसानी से आहार में शामिल किया जा सकता है. सांवा प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है. प्रोटीन शरीर के निर्माण, वृद्धि, विकास, मरम्मत और एंटीबॉडी के रूप में शरीर को प्रतिरक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण है.
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इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बहुत कम होती है और पाचन क्रिया धीमी होती है, जिसके कारण सांवा कम सक्रिय जीवनशैली और मोटापे से ग्रस्त लोगों के लिए बहुत उपयोगी है.
सांवा में ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, यह ब्लड शुगर और लिपिड के स्तर को कम करने में बहुत प्रभावी है, इसलिए यह शुगर और हृदय रोग से पीड़ित लोगों के लिए एक आदर्श आहार बन सकता है.
सांवा में ग्लूटेन प्रोटीन नहीं होता है, इसलिए यह ग्लूटेन के कारण होने वाली सीलिएक बीमारी से पीड़ित रोगियों के लिए प्रकृति का वरदान है. इसका उपयोग गेहूं, बाजरा और सूजी की जगह किया जा सकता है.
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