देश के हर शहर का अपना एक इतिहास होता है और उसके साथ-साथ कुछ खास पहचान भी होती है. अगर आगरा की पहचान ताजमहल से जुड़ी है तो यहां का पेठा की यहां का प्रमुख पकवान है. कुछ इसी तरह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की पहचान गुलाब रेवड़ी से जुड़ी हुई है. लखनऊ में चिकनकारी के साथ-साथ गुलाब रेवड़ी की खास पहचान है. लखनऊ आने वाला व्यक्ति अपने साथ चिकन की पोशाक के साथ-साथ रेवड़ी को ले जाना नहीं भूलता है. रेवड़ी बनाने वाले दुकानदार इस खास मिठाई को नवाबी काल से जोड़कर देखते हैं. प्रदेश की राजधानी को प्राचीन समय में लखनपुरी पुकारा जाता था जो बाद में लखनऊ हो गया. जानकार बताते हैं कि समय के साथ साथ कुछ इसी तरह लखनऊ की रेवड़ी के आकार और स्वाद में भी कई तरह के बदलाव होते गए. प्राचीन समय से लखनऊ की गुलाब रेवड़ी मशहूर रही है, जो अब नए अवतार में आने लगी है. गुड़ के साथ-साथ चॉकलेट, ऑरेंज, पाइन एप्पल और पॉपकॉर्न की शक्ल में बनने लगी है जो लोगों को खूब पसंद आती है. सर्दियों के मौसम में रेवड़ी की खपत बढ़ जाती है क्योंकि इसे तिल के साथ बनाया जाता है. तिल शरीर को गर्म रखने का काम करती है.
लखनऊ के ऊपर नवाबों ने लंबे समय तक शासन किया है. नवाबों ने लखनऊ को एक से बढ़कर एक ऐतिहासिक इमारतों की सौगात दी है. तो नवाबी दौर में ही चिकनकारी के साथ-साथ खानपान में भी कई तरह के प्रयोग किए गए. नवाबों के दौर में ही लखनऊ के मशहूर गुलाब रेवड़ी का भी जन्म हुआ. 200 सालों से आज तक गुलाब रेवड़ी की ना तो महक कम हुई है और ना स्वाद कम हुआ है. आज भी लखनऊ आने वाला कोई भी व्यक्ति अपने साथ यहां की मशहूर रेवड़ी को ले जाना नहीं भूलता है. रेवड़ी के बिना उसकी लखनऊ की यात्रा अधूरी मानी जाती है.
लखनऊ के चारबाग स्तिथ गुरुनानक मार्केट की गलियों में रेवड़ी बनाने के कई कारखाने हैं. यहां आज भी केवड़े और गुलाब की खुशबू लोगों को आकर्षित करती है. रेवड़ी बनाने वाले त्रिलोचन सिंह बॉबी बताते हैं कि नवाबों के समय से रेवड़ी बन रही है. पहले जब गुलाब रेवड़ी मशहूर हुई. अब रेवड़ी को गुड़ के साथ भी बनाया जाने लगा है. वहीं रेवड़ी में अब अलग-अलग फ्लेवर भी ग्राहकों को उपलब्ध है. चॉकलेट, पाइनएप्पल, ऑरेंज और पॉपकॉर्न फ्लेवर में रेवड़ी उपलब्ध है. रेवड़ी का दाम तिल के दाम के ऊपर निर्भर रहता है. 2 महीने पहले तिल का दाम कम था वहीं अब प्रति किलो तिल ₹200 से ज्यादा है. इसी वजह से रेवड़ी भी ₹100 किलो बिक रही है.
लखनऊ की मशहूर रेवड़ी बनाने के लिए सबसे पहले चीनी की चाशनी तैयार की जाती है फिर उसको अरारोट पाउडर डालकर ठंडा करने के बाद आधे घंटे तक खींचा जाता है. इसके बाद पतले और लंबे डंडे बनाने के बाद गट्टे काटकर कड़ाही में गर्म करके तिल मिलाकर तैयार किया जाता है. रेवड़ी में तिल का इस्तेमाल होने से सर्दियों के मौसम में इसकी बिक्री बढ़ जाती है क्योंकि तिल शरीर को गर्म रखने का काम करती है. लखनऊ की रेवड़ी आज भी हाथों से ही बनाई जाती है जिसके चलते इसका स्वाद विशेष होता है.
लखनऊ आने वाले हर यात्री की यात्रा रेवड़ी के बिना अधूरी मानी जाती है. रेवड़ी की दुकान पर महिला ग्राहक मीत ने बताया कि जब भी उनके यहां कोई रिश्तेदार आता है तो उसे रेवड़ी ही गिफ्ट की जाती है. वहीं मकर संक्रांति की पर भी लखनऊ की रेवड़ी का खूब प्रयोग होता है.
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