क्या है बुग्याल और इसकी विशेषता?देवभूमि में कोई देवपूजा हो या त्यौहार, उसे हमेशा प्रकृति से जोड़ कर मनाया जाता है. ऐसा ही एक त्यौहार उत्तरकाशी के ऊंचाई वाले गांव के बुग्यालों (पहाड़ों की ऊंचाई पर स्थित घांस के मैदान) में मनाया जाता है. जिमसें दूध, दही, मक्खन की होली के साथ अढूड़ी त्यौहार मनाया जाता है. जिसे 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बुग्याल में धूमधाम से मनाया गया. इस त्यौहार को बटर फेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है. इस त्यौहार को यहां के ग्रामीण दशकों से मनाते आ रहे हैं. सावन के महीने में पहाडों में ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ बुग्यालों में आ जाते हैं. करीब एक माह यहां पर रहने के बाद जब ऊंचे बुग्यालों में ठंड शुरू हो जाती है तो ग्रामीण अपने गांव की और लौटने लगते हैं.
इससे पूर्व दयारा बुग्याल में भाद्रपद की संक्राति को ग्रामीणों अपने ईस्ट देवी देवताओं और वन देवताओं को सावन में मवेशियों से हुए दूध, दही और मक्खन का भोग लगाते हैं. इसे स्थानीय भाषा मे अढूड़ी का त्यौहार कहा जाता है. साथ ही समय के साथ दयारा बुग्याल में पर्यटन को बढ़ावा देने बटर फेस्टिवल का नाम देकर इसे शुरू किया गया है.
ऐसे में आज 11 हजार फीट की ऊंचाई पर दयारा बुग्याल में दूध दही और मक्खन की होली खेली गई. वहीं उसके बाद ग्रामीणों ने ढोल दमाऊ के साथ रासो तांदी नृत्य का आयोजन किया गया. सावन के महीने में बुग्यालों में अच्छी घास होने के कारण मवेशी अच्छा दूध का उत्पादन करते हैं. इसलिए ग्रामीण बुग्यालों से लौटने से पहले अपने देवी-देवताओं को दूध दही मक्खन की भेंट चढ़ाना नहीं भूलते.
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बुग्याल शब्द का अर्थ है पहाड़ों की ऊंचाई पर स्थित घास के मैदान। भूगोल के शब्दों में इन्हें सवाना भी कहा जाता है। जहां चारों तरफ घास से भरे मैदान ही नजर आते हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो किसी ने इन पहाड़ों पर घास के गद्दे बिछा दिए हों.
पिछले दो दशकों में यारसा गंबू के दोहन के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित बुग्यालों में लोगों की आवाजाही बढ़ी है. यारसा गंबू काटने के लिए लोग मार्च-अप्रैल तक बुग्यालों में जाते हैं और करीब दो से तीन महीने तक तंबू में रहते हैं. इस दौरान ये लोग खाना पकाने के लिए दुर्लभ माने जाने वाले सफेद बुरांश, भोजपत्र और बिल्व के पेड़ों को काटते और जलाते हैं. जिस वजह से यहां की स्थिति दिन प्रति दिन खराब होती जा रही है.
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