बेमौसम बारिश, फसलों के दाम गिरने से कृषि आय में भारी गिरावट, रिपोर्ट में चौंकाने वाले दावे, पढ़ें डिटेल

बेमौसम बारिश, फसलों के दाम गिरने से कृषि आय में भारी गिरावट, रिपोर्ट में चौंकाने वाले दावे, पढ़ें डिटेल

एलारा सिक्योरिटीज की रिपोर्ट के अनुसार बेमौसम बारिश, फसल नुकसान और मंडियों में दाम टूटने से किसानों की खेती से होने वाली आय महामारी के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है. उड़द, कपास, सोयाबीन और मक्का जैसे प्रमुख फसलों के भाव MSP से काफी नीचे रहे, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा है. पढ़ें रिपोर्ट में क्‍या-क्‍या बात कही गई है.

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बेमौसम बारिश, फसलों के दाम गिरने से कृषि आय में भारी गिरावट, रिपोर्ट में चौंकाने वाले दावे, पढ़ें डिटेलकृषि आय को लेकर रिपोर्ट में कई दावे (सांकेतिक तस्‍वीर)

इस सीजन में देश के किसानों की खेती से होने वाली कमाई तेजी से घट रही है. अनियमित और बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि, फसल खराब होने और खरीफ फसलों के बाजार दामों में भारी गिरावट ने गांवों में किसानों की आय पर सीधा असर डाला है. यह बातें एलारा सिक्योरिटीज की एक ताजा रिपोर्ट में कही गई हैं. रिपोर्ट में कहा है कि ग्रामीण इलाकों में खेती से होने वाली आय लगभग टूट रही है और इससे किसानों की आर्थिक मजबूती कमजोर पड़ने लगी है.

खरीफ फसलों को हुआ भारी नुकसान

रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष कई राज्यों में अचानक हुई अतिरिक्त बारिश ने धान, सोयाबीन, दालों और कपास जैसी मुख्य खरीफ फसलों को नुकसान पहुंचाया. इसके साथ ही जब फसलें बाजार में आईं तो कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP से काफी नीचे चली गईं. इससे किसानों के हाथ में मिलने वाली शुद्ध आमदनी में तेज गिरावट दर्ज की गई.

कुल आय कोरोना काल के मुकाबले भी कमजोर

रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के तीन बड़े धान उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ इस नुकसान का सबसे बड़ा उदाहरण हैं. इन राज्यों में धान उगाने वाले किसानों की नेट खेती आय FY26 में लगभग 10 प्रतिशत तक नीचे चली गई है. यह कोविड-19 के दौर के बाद से सबसे कमजोर कमाई मानी जा रही है.

सरकारी योजनाओं से किसानों को मिल रही राहत

हालांकि, कुछ राज्य स्तरीय योजनाएं, जैसे नकद सहायता, मुफ्त बिजली और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिर मजदूरी दर, किसानों को हल्की राहत दे रही हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि फसलों के व्यापक नुकसान और दामों में ‘अभूतपूर्व गिरावट’ ने आने वाले महीनों में ग्रामीण मांग कमजोर पड़ने की आशंका बढ़ा दी है.

इस खरीफ सीजन में, जिसका अधिकांश उत्पादन अक्टूबर से नवंबर के बीच बाजारों में आता है, किसानों को खराब गुणवत्ता, देर से कटाई और मंडियों में एक साथ भारी आवक जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा. दूसरी ओर सरकार की सीमित खरीद और बाजार हस्तक्षेप न होने से भी दाम टिक नहीं पाए.

फसलों के दाम MSP से इतने कम

रिपोर्ट में कहा गया है कि कई प्रमुख फसलों की कीमतें नवंबर 2025 तक MSP से काफी नीचे रहीं. उदाहरण के तौर पर उड़द की कीमत MSP से 19 प्रतिशत कम रही. कपास MSP से 8 प्रतिशत नीचे. सोयाबीन 18 प्रतिशत नीचे और मक्का लगभग 27 प्रतिशत कम दाम पर बिका. ऐसे दामों पर फसल बेचने से किसानों की लागत भी मुश्किल से निकल रही है. इसके अलावा, कपास, तूर और उड़द जैसी फसलों के आयात को शुल्क-मुक्त कर दिया गया है.

'बेसिक कस्टम ड्यूटी घटने का भी असर'

साथ ही कच्चे पाम, सोया और सूरजमुखी तेल पर बेसिक कस्टम ड्यूटी को 20 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया. इससे भी घरेलू मंडियों में भाव गिरावट जारी रही. रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि प्रस्तावित भारत-अमेरिका व्यापार समझौते के चलते मक्का और सोयाबीन जैसी फसलों के आयात की संभावना बनी हुई है, जिससे इन फसलों की कीमतों पर दबाव और बढ़ गया है.

पॉलिसी के मोर्चे पर भी स्थिति बहुत मजबूत नहीं दिखती. केंद्रीय ग्रामीण विकास बजट का अप्रैल से अक्टूबर के बीच केवल 45 प्रतिशत हिस्सा ही खर्च हो पाया है, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह आंकड़ा 52 प्रतिशत था. रिपोर्ट में कहा गया है कि टैक्स कलेक्‍शन में सुस्ती और अनुमान से कम नाममात्र जीडीपी वृद्धि के कारण सरकार का ग्रामीण खर्च निकट भविष्य में ज्यादा नहीं बढ़ पाएगा. (एएनआई)

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