पिछले कुछ दशक में अंडे और मांस का कारोबार देश में तेजी से बढ़ रहा है, जिसमें पोल्ट्री फार्मिंग का महत्वपूर्ण योगदान है. केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान बरेली ने इस विकास में अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने पोल्ट्री नस्लों को उन्नत करने के लिए कई अहम काम किए हैं. इस संस्थान ने लेयर, ब्रॉयलर, बत्तख, बटेर, टर्की, और गिनी फाउल (Guineafowls) जैसी अनेक प्रजातियों का विकास किया है. गिनी फाउल या तीतर को पालकर कम खर्च में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है. अफ्रीका और यूरोप में पाई जाने वाली इस प्रजाति को अपने देश में पाला जा रहा है क्योंकि भारतीय कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हैं. इसीलिए इसे बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिग के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है.
केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान बरेली संस्थान के विशेषज्ञों के अनुसार गिनिया फाउल या तीतर पक्षी में लेयर और ब्रॉयलर मुर्गियों की अपेक्षा बीमारी कम लगती है. इसके टीकाकरण की जरूरत भी कम होती है. गिनिया फाउल पोल्ट्री की तरह एक अच्छा आय का स्रोत बन सकता है. गिनिया फाउल को पालने से पहले इसकी विभिन्न प्रजातियों के बारे में जानकारी हासिल करना जरूरी है. अपने देश में तीन प्रजातियां को व्यवसायिक रूप से पाला जाता हैं, जिनमें कादम्बरी, चिताम्बरी, और श्वेताम्बरी प्रमुख हैं. यह सफेद, भूरे और काले रंग के होते हैं.
गिनिया फाउल स्वतंत्र रूप से घूमने वाला पक्षी है. इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि इनमें बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है. मतलब दवाई पर होने वाला खर्च ना के बराबर ही होता है. सख्त शरीर का यह पक्षी किसी भी जलवायु के अनुकूल होता और इसे खर्चीले आवास की जरूरत नहीं होती है. इसके भोजन में मुख्य रूप से बाहर गिरे दानों और अनाज होते हैं. इसलिए इन्हें दिन में चुगने के लिए छोड़ देते हैं. ये अपना भोजन स्वंय से हरे भरे घास के मैदान से लेते हैं और झाड़ियों में रहते हैं. ये झुंड में रहना पसंद नही करते चरने के बाद शाम के समय इनको आवास में ले आते हैं, जिससे इन्हें दिन में एक बार ही दाना देने की जरूरत पड़ती है. दाने में भी घर के बचे अनाजों को मिलाकर दिया जाता है. इस प्रकार से तीतर कम खर्च में ही तैयार हो जाते हैं.
गिनिया फाउल को अंडा और मांस दोनों के लिए पाला जाता है. इससे मिलने वाले अण्डे और मांस को बेचकर भी लाभ कमाया जा सकता है. इसके अण्डे का छिलका कठोर और मजबूत होने के कारण अण्डे कम टूटते हैं. यही वजह है कि इनके अण्डों को लम्बे समय तक रखा जा सकता है. गिनी फाउल के मांस में विटामिन की मात्रा अधिक तथा कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है. पुराने समय से आज तक के समय में तीतर की उपयोगिता खास है क्योंकि इसका मांस खाने वालों के लिए बेहतरीन पौष्टिकता से भरा होता है.
गिनी फाउल में टीकाकरण की कोई जरुरत नहीं होती है. इनमें बीमारियां ना के बराबर होती हैं. ये 230 से 250 दिन में अंडे देना शुरू कर देती हैं. गिनिया फाउल को खुले में भी पाला जा सकता है. यह बहुत तेजी से उड़ने वाला पक्षी है. ये 8 सप्ताह की आयु पर 500 ग्राम तथा 12 सप्ताह की आयु पर 1 किलो शरीर भार के हो जाते हैं. इसका मीट मुर्गे की अपेक्षा ज्यादा महंगा बिकता है. आज गिनिया फाउल के मीट की मांग बाजार में बढ़ी है. इस तरह अगर आप भी तीतर यानि गिनी फाउल का पालन करें. तो खेती के साथ-साथ कर सकते हैं. व्यवसायिक रूप से गिनिया फाउल पालने के लिए केंद्रीय पंक्षी अनुसंधान केंद्र बरेली से संपर्क करें या फिर अपने नजदीक के केवीके से संपर्क करके इसके पालन संबधित पूरी जानकारी ली जा सकती है.
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