भारतीयों की थाली और ग्लास से कहीं नहीं जा रहा दूध, सर्वे में कई दिलचस्प खुलासे चाय और दूध भारत में इनका चोली दामन का साथ है. भले ही घर में कोई दूध न पीता हो लेकिन चाय के कितने कप गटक जाता है, उसे भी तभी पता लगता होगा जब दूध खत्म हो जाता होगा. कई स्टडीज में यह बात सामने आई है कि दूध वाली चाय जहर की तरह है और वेटलॉस में कारगर नहीं है और पता नहीं क्या-क्या, लेकिन मजाल है कि चाय का जलवा कम हुआ हो. कुछ ऐसी ही कहानी दूध की भी है. घर में नाक-भौं सिकोड़ते बच्चे दूध पी ही लेते हैं और अब तो एडल्ट्स भी दूध को दही और स्मूदी और पता नहीं किस-किस अंदाज में कंज्यूम करने लगे हैं. एक सर्वे में भी अब इस बात पर मुहर लगा दी गई है. एक ताजा स्टडी में यह राज खुल चुका है कि 71 फीसदी भारतीयों ने आज भी दूध को अपने रेगुलर रूटीन का हिस्सा बनाकर रखा हुआ है. वो रोजाना दूध और दूध से बने उत्पादों का लुत्फ उठा रहे हैं. यह बात और है कि दूध पीने का तरीका समय के साथ बदल गया है.
गोदरेज जर्सी ने ‘गोदरेज जर्सी इंडिया का लैक्टोग्राफ फाइंडिंग्स FY25-26’ का लॉन्च किया है. इस स्टडी में भारत में दूध उपभोग के पैटर्न से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण इनसाइट्स साझा किए गए हैं. रिसर्च पार्टनर YouGov ने यह स्टडी भारत के आठ शहरों में की. स्टडी के अनुसार, पारंपरिक दूध का गिलास अब कोल्ड ब्रू, स्मूदी, बादाम दूध, सीरियल बाउल और प्रोटीन शेक्स के रूप में बदल गया है. दूध का सेवन करने वालों में से 58 प्रतिशत का कहना है कि वे अधिकतर फ्लेवर्ड मिल्क जैसे केसर या बादाम दूध पीते हैं, जबकि 51 प्रतिशत लोग इसे स्मूदी में मिलाकर एक एनर्जी ड्रिंक की तरह लेते हैं.
इस स्टडी में यह बात पूरी तरह से साबित हो चुकी है कि दूध वाली चाय का सल्तनत फिलहाल कायम रहने वाली है. दूध अब भी भारत की सबसे पसंदीदा परंपरा चाय और कॉफी की रीढ़ बना हुआ है. 59 प्रतिशत उपभोक्ता अपनी दूध वाली चाय-कॉफी के जरिए ही दूध का सेवन करना पसंद करते हैं. त्योहारों के दौरान भी दूध एक उत्सवपूर्ण पेय में बदल जाता है क्योंकि 41 प्रतिशत भारतीय त्योहारों और खास मौकों पर ताजगी के लिए फ्लेवर्ड मिल्क को अपनी पहली पसंद मानते हैं.
बचपन की यादें अभी भी भारत के दूध से जुड़े संबंध को परिभाषित करती हैं. 52 फीसदी भारतीय बचपन वाले नॉस्टैल्जिया के चलते सादा दूध की तरफ आकर्षित होते हैं. स्टडी के अनुसार 49 प्रतिशत लोग दूध को स्कूल जाने से पहले लिए जाने वाले स्नैक्स से जोड़ते हैं. वहीं, 43 प्रतिशत को सोने से पहले की आदतें या देर रात फ्लेवर्ड मिल्क पीने की यादें ताजा होती हैं. 41 प्रतिशत लोग ‘दूध रोटी’ या चपाती के साथ दूध को याद करते हैं. वहीं 45 फीसदी को आज भी याद है कि जब घर के बड़े चाय पीते थे तो उनके लिए उस समय दूध एक ऑप्शन के तौर पर होता था.
स्टडी के बाकी नतीजे बच्चों में हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए दूध के सेवन को बढ़ाने की जरूरत पर जोर देते हैं. सर्वे किए गए भारतीय माता-पिता में से करीब 64 फीसदी का मानना है कि उनके बच्चे की हड्डियों की डेंसिटी उनके अपने बचपन की तुलना में कम दूध पीने के कारण कम हो सकती है. इनमें से 54 प्रतिशत माता-पिता यह भी महसूस करते हैं कि उनके बच्चे की शारीरिक वृद्धि उनकी उम्र में उनकी खुद की वृद्धि की तुलना में धीमी है, जिसका कारण कम दूध का सेवन हो सकता है.
माता-पिता में से जो अपने बच्चों को दूध देते हैं, उनमें 73 फीसदी का कहना है कि वो कैल्शियम के लिए दूध पर ही निर्भर रहते हैं. 62 फीसदी मानते हैं कि यह बच्चों की प्रोटीन की मात्रा बनाए रखने में मदद करता है. 60 फीसदी इसे फिटनेस और वेट कंट्रोल से जोड़ते है जबकि 62 फीसदी मानते हैं कि दूध उनके बच्चे को पूरे दिन ऊर्जा देता है. दूध को भले ही पेय के रूप में न पिया जाए, लेकिन डेयरी उत्पाद अब भी भारतीय प्लेट पर हावी हैं. अध्ययन में पाया गया कि दही (80 प्रतिशत), पनीर (76 प्रतिशत) और मक्खन (74 प्रतिशत) आज भी घर-घर में उपयोग किए जाने वाले मुख्य खाद्य पदार्थ हैं.
गोदरेज जर्सी के मार्केटिंग हेड, शांतनु राज की मानें तो इस स्टडी से साफ है कि दूध भारतीयों की थाली से जा नहीं रहा, बस उसका गिलास बदल रहा है. आंकड़े विरासत और बदलाव दोनों को दर्शाते हैं. 67 फीसदी भारतीय अब भी चाय के माध्यम से सबसे अधिक दूध का आनंद लेते हैं, जो दूध की गहरी सांस्कृतिक जड़ों की बयां करता है. वहीं 44 फीसदी लोग अब प्रोटीन शेक के जरिए दूध को अपने रूटीन में शामिल कर रहे हैं जो एक नई फिटनेस-प्रधान आदत की ओर संकेत करता है.
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