अनानास (Pineapple) की खेती करने वाले किसानों के लिए राहत की खबर है. भारतीय वैज्ञानिकों ने अनानास में एक ऐसे जीन की पहचान की है, जो इसे खतरनाक फफूंद से बचाने में मदद कर सकता है. यह खोज किसानों को भारी नुकसान से बचा सकती है और अनानास को ज्यादा भरोसेमंद फसल बना सकती है. अनानास एक बेहद पसंद किया जाने वाला फल है, जो स्वाद, ताजगी और पोषण से भरपूर होता है, लेकिन इसकी खेती को एक फंगल डिसीज़ यानी फफूंदजनित बीमारी "फ्यूजेरियोसिस" से सबसे ज्यादा नुकसान होता है. यह रोग "फ्यूजेरियम मोनिलिफॉर्म" नाम के फफूंद के कारण होता है, जो पौधे के तने को कमजोर करता है और पत्तियों को काला कर फल को अंदर से सड़ा देता है.
इस चुनौती से निपटने के लिए कोलकाता स्थित बोस इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने बड़ी सफलता हासिल की है. यहां के प्रोफेसर गौरव गंगोपाध्याय और उनकी पीएचडी छात्रा डॉ. सौमिली पाल ने अनानास में ACSERK3 नामक जीन की पहचान की है. यह जीन पौधे की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और फफूंद से लड़ने में मदद करता है. वैज्ञानिकों ने इस जीन को "अति-अभिव्यक्त" किया यानी इसकी सक्रियता को बढ़ाया, जिससे पौधा ज्यादा ताकतवर हो गया.
इस रिसर्च के मुताबिक, जिन पौधों में यह जीन सक्रिय किया गया, वे फंगस के हमले के बाद भी हरे-भरे और स्वस्थ बने रहे, जबकि सामान्य अनानास के पौधे मुरझा गए. इन पौधों में ऐसे रसायन और एंजाइम बनने लगे जो फंगस को मारने में असरदार होते हैं. यह अध्ययन मशहूर वैज्ञानिक पत्रिका इन विट्रो सेल्युलर एंड डेवलपमेंटल बायोलॉजी-प्लांट्स में प्रकाशित हुआ है. यह पहली बार है जब अनानास के किसी स्वदेशी जीन को फंगस प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अति-अभिव्यक्त किया गया है.
अगर दीर्घकालिक फील्ड ट्रायल्स सफल रहते हैं तो आने वाले समय में किसानों को ऐसी अनानास की नई किस्में मिल सकती हैं, जो कई प्रकार के फंगल रोगों से खुद ही लड़ने में सक्षम होंगी. इन पौधों की टहनियों से नई फसल तैयार की जा सकेगी, जिससे उत्पादन भी बढ़ेगा और नुकसान भी कम होगा. यह शोध भारतीय बागवानी क्षेत्र में एक नई उम्मीद लेकर आया है.
बता दें कि भारत में कई राज्यों में अनानास की खेती होती है, इसका सबसे ज्यादा उत्पादन पश्चिम बंगाल, नॉर्थ ईस्ट राज्यों में असम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, नगालैंड और दक्षिण में केरल, कनार्टक में होता है. इसके अलावा बिहार में भी अच्छा उत्पादन होता है. वहीं, कई अन्य राज्यों में भी इसकी खेती होती है. यह परीक्षण सफल होने पर देश के हजारों-लाखों किसानों को इससे फायदा होगा.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today