National Mango Day: सिर्फ स्‍वाद नहीं, दोस्‍ती का भी राजा है आम, नेहरू ने पौधे भेज चीन के सामने बढ़ाया था दोस्‍ती का हाथ

National Mango Day: सिर्फ स्‍वाद नहीं, दोस्‍ती का भी राजा है आम, नेहरू ने पौधे भेज चीन के सामने बढ़ाया था दोस्‍ती का हाथ

भारत में 22 जुलाई को राष्‍ट्रीय आम दिवस मनाया जाता है. आम सिर्फ स्‍वाद ही नहीं, दोस्‍ती और कूटनीति का प्रतीक भी है. पंडित नेहरू ने 1955 में चीन को आम के पौधे भेजे थे, जानिए वो किस्‍सा...

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सिर्फ स्‍वाद नहीं, दोस्‍ती का भी राजा है आम, नेहरू ने पौधे भेज चीन के सामने बढ़ाया था दोस्‍ती का हाथपंडित नेहरू ने चीन भेजे थे आम के पौधे (File Photo)

फलों का राजा आम दुनियाभर में लोगों के दिल में खास जगह रखता है. हर कोई इसे चाव से खाता है. देश-दुनियाभर में इसकी हजारों किस्‍में उपलब्‍ध है. कई देश आम के फल के महत्‍व और इसकी खूबियों को सेलिब्रेट करने के लिए इसका दिन आम दिवस के रूप में मनाते हैं. ठीक इसी तरह भारत में आज यानी 22 जुलाई को राष्‍ट्रीय आम दिवस मनाया जाता है. लेकिन, आम सिर्फ किसी दिवस तक सीमि‍त नहीं है, यह दोस्‍ती का हाथ बढ़ाने और दोस्‍ती के रिश्‍ते को और गहरा बनाने के काम भी आता है. इसी कदम के चलते ‘मैंगाे डिप्‍लोमेसी’ नामक नया कूटनीतिक शब्‍द प्रकाश में आया.

भारत में एक राज्‍य सरकार, दूसरे राज्‍य की सरकार को और केंद्र सरकार, राष्‍ट्रपति, उप राष्‍ट्रपति को अपने राज्‍य की प्रसिद्ध और खास किस्‍में भेंट करते हैं. यह चलन सिर्फ देश के अंदर राज्‍यों के बीच रिश्‍तों को मजबूत करने नहीं, बल्कि अन्‍य देशों से भी संबंधों को नए आयाम देने में अहम माना जाता है. ऐसे में जानिए वो किस्‍से जब भारत ने चीन और पाकिस्‍तान ने भारत को मैंगो डिप्‍लोमेसी के तहत आम के पौधे/आम भेजे थे…

पंडि‍त नेहरू ने चीन को भेजे थे आम के पौधे

1950 के दशक में जब भारत वैश्विक मंच पर अपनी पहचान गढ़ रहा था, तब तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आम को केवल स्वाद का प्रतीक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और कूटनीतिक सेतु के रूप में इस्तेमाल किया. उन्होंने आम को विदेशी मेहमानों के लिए भारत की मिट्टी की मिठास और गर्मजोशी भरी मेहमाननवाज़ी का प्रतीक बना दिया. 

‘इंडियन एक्‍सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, 1955 में चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई को दशहरी और लंगड़ा किस्म के आम के आठ पौधे उपहार में देकर नेहरू ने न सिर्फ दोस्ती की एक नई शाखा बोई, बल्कि यह भी दिखाया कि भारत की कूटनीति में भावनाओं और परंपराओं को कितनी अहमियत दी जाती है. सोवियत नेता ख्रुश्चेव को भी आम उपहार में देना इस ‘मैंगो डिप्लोमेसी’ की एक और मिसाल बना. नेहरू की इस पहल ने आम को सिर्फ ‘फलों का राजा’ नहीं, बल्कि भारतीय सौम्यता और सॉफ्ट पावर का राजदूत बना दिया.

पाकिस्‍तान ने आम भेजे तो खड़ा हुआ नया विवाद

वहीं, सन् 1981 में पाकिस्‍तान के सैन्य शासक ज़िया उल-हक ने पीएम इंदिरा गांधी को सद्भावना के तौर पर ‘अनवर रटौल’ आम भेजे थे. पहले तो इंदिरा ने पाकिस्‍तान के इस उपहार की सराहना की, लेकिन जल्‍द ही इस आम के ओरिजिन को लेकर विवाद खड़ा हो गया.

दरअसल, उत्‍तर प्रदेश के रटौल गांव से आए लोगों ने दावा किया कि इस आम की खेती उनके गांव में होती है और इस किस्‍म को यहीं विकसित किया गया है. इसके बाद भारत ने आम की किस्‍म पर दावा किया और लंबे समय तक इसपर दावेदारी को लेकर विवाद चलता रहा. हालांकि, कुछ साल पहले भारत सरकार ने रटौल आम को यही उत्‍पत्‍त मानते हुए GI टैग दे दिया.

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