
दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए यहां के बाशिंदे और कुछ नेता किसानों को कसूरवार ठहरा रहे हैं. उनका मानना है कि पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में जलने वाली पराली का धुआं दिल्ली की हवा में जहर घोल रहा है. ये तो रही दिल्ली की बात. अब मुंबई का भी जिक्र कर लेते हैं. इस समय मायानगरी की हवा भी जहरीली हो गई है. तकनीकी भाषा में कहें तो दिल्ली में हवा 'बेहद खराब' तो मुंबई में 'खराब' कैटेगरी में है. अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर मुंबई की हवा में जहर किसने घोला है? मुंबई में तो किसान हैं नहीं. आसपास के जिलों में खेती होती है, लेकिन वहां के किसान पराली नहीं जलाते. फिर भी वहां प्रदूषण काफी बढ़ गया है. आखिर क्यों? कड़वा सच तो यह है कि चाहे दिल्ली हो या फिर मुंबई या कोई और शहर...वहां का प्रदूषण उस शहर की अपनी खेती है. उसके लिए किसान गुनहगार नहीं हैं. हमने तीन साल पहले एक वीडियो सीरीज में यही बात स्पष्ट की थी.
ऐसे में अब दिल्ली वालों और खासतौर पर यहां के नेताओं...दोनों को यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि इस समय वो प्रदूषण के जिस संकट काल का सामना कर रहे हैं, उसके जिम्मेदार वो खुद हैं. अब इन्हें प्रदूषण के लिए किसानों के कंधे पर बंदूक चलाना बंद कर देना चाहिए. किसानों को विलेन बनाने की बजाय अब प्रदूषण के सच का सामना करना चाहिए, ताकि हर साल आने वाली इस समस्या का सही मायने में समाधान खोजकर उस पर काम किया जा सके. राजनीति करने के सौ विषय हो सकते हैं. प्रदूषण को छोड़ दीजिए. वरना जब देश में पराली जलने की घटनाएं बिल्कुल बंद हो जाएगी तब आपके पास कोई जवाब नहीं होगा.
आंकड़े इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि पराली जलाने की घटनाएं साल दर साल कम हो रही हैं. लेकिन प्रदूषण घटने की बजाय बढ़ रहा है. इससे साफ है कि दिल्ली में प्रदूषण के लिए कम से कम किसान तो जिम्मेदार नहीं हैं. दिल्ली के प्रदूषण में पराली का योगदान 10 फीसदी से कम ही होता है. इसके बावजूद यहां के नेता किसानों को कोसते हैं, ताकि उनकी अपनी गलतियों पर परदा डाला जा सके. वो प्रदूषण के उन 90 फीसदी कारणों को छिपाने की कोशिश करते हैं, ताकि उनकी अपनी नाकामी जनता के सामने न आए.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2024 के मुकाबले 2025 में पराली जलाने की घटनाएं आधे से भी कम हो गई हैं. जबकि 2020 से तुलना की जाए तो ऐसी घटनाओं में करीब 85 फीसदी की कमी आई है. साल 2020 में 21 अक्टूबर तक देश में 11,320 जगहों पर पराली जली थी. यह 2024 में 21 अक्टूबर तक घटकर 3651 और इस साल यानी 2025 में महज 1729 रह गई है.
इसका मतलब यह है कि किसान जागरूक हो रहे हैं. वो पर्यावरण और अपनी खेती की उर्वरता बचाने के लिए आगे आ रहे हैं. इसके बावजूद कुछ लोग दिल्ली में प्रदूषण के लिए पराली और किसानों को ही जिम्मेदार मान रहे हैं तो उनकी सोच और समझ पर तरस भी आ रहा है और ताज्जुब भी हो रहा है. बहरहाल, सवाल यह है कि दिल्ली-एनसीआर के लोग किसानों को कब तक विलेन बताकर खुद को बचा पाएंगे?
दिल्ली के ज्ञानी लोग, नेता और नागरिक कंस्ट्रक्शन, रोड साइड की धूल, एसयूवी और कॅमर्शियल वाहनों को यहां के वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार क्यों नहीं मानते? जहां तक पंजाब की बात है तो यहां पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल के मुकाबले 70 फीसदी से ज्यादा की कमी आ चुकी है. साल 2024 में 21 अक्टूबर तक यहां 1510 जगहों पर पराली जलाई गई थी, जबकि इस साल अब तक महज 415 जगहों पर पराली जलाने की घटनाएं हुई हैं. अगर 2020 से तुलना करें तो पंजाब में 96 फीसदी से ज्यादा की कमी आ चुकी है. पंजाब में 2020 में 21 अक्टूबर तक पराली जलाने के 10,791 केस आए थे. ऐसे में पंजाब के किसानों की आलोचना नहीं बल्कि तारीफ होनी चाहिए.
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