
किसानों की इनकम को लेकर नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन (NSSO) ने जो सबसे ताजा रिपोर्ट तैयार की है उसके मुताबिक भारत के किसान परिवारों की औसत मासिक आय 10,218 रुपये तक पहुंच चुकी है. लेकिन, इसमें फसलों से होने वाली आय का योगदान महज 3,798 रुपये ही है. इसमें से भी 2,959 रुपये तो वो फसल उत्पादन पर ही खर्च कर देता है. यानी खेती से उसकी शुद्ध आय सिर्फ 839 रुपये प्रतिमाह है. प्रतिदिन का हिसाब लगाएं तो लगभग 28 रुपये. अब आप खुद अंदाजा लगाइए कि किसानों की दशा कैसी है. कुछ बड़े किसान फायदे में हो सकते हैं, लेकिन 86 फीसदी छोटे किसानों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है. उनकी आय सरकारी चपरासी जितनी भी नहीं है.
मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था. नीति आयोग ने स्ट्रेटजी फॉर न्यू इंडिया@75 नामक अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 3.31 प्रतिशत की वार्षिक कृषि वृद्धि पर किसानों की इनकम डबल करने में देश को 22 साल (1993-1994 से 2015-2016 ) लगे. इस हिसाब से 2015-16 से 2022-23 तक आय दोगुनी करने के लिए 10.4 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर की जरूरत होगी. लेकिन, एग्रीकल्चर सेक्टर इसकी आधी ग्रोथ पर ही अटका हुआ है. साल 2022-23 में तो कृषि विकास दर सिर्फ 3.5 फीसदी ही रहने का अनुमान है. यानी कृषि क्षेत्र की विकास दर भी निराश करने वाली है. ऐसे में सवाल यह है कि आखिर किसानों की इनकम कैसे और कब तक डबल होगी?
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किसानों की इनकम डबल करना अब एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. क्योंकि मोदी सरकार 2016 से कृषि से जुड़े हर मंच पर इसका वादा करती रही है. अब उस वादे का समय पूरा हो चुका है. किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट कहते हैं कि अब 2022 खत्म हो चुका है, इसलिए केंद्र को यह बताना चाहिए कि किसानों की आय दोगुनी हुई या नहीं. लेकिन, सरकार ने इस मुद्दे पर अब चुप्पी साध रखी है. संसद में भी वो इस मुद्दे पर गोलमोल जवाब दे रही है. इससे पता चलता है कि किसानों की इनकम डबल नहीं हुई है.
जाट कहते हैं कि किसानों के लिए पॉलिसी बनाने वाले ज्यादातर लोगों का माइंडसेट एंटी फार्मर है. वो विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी संस्थाओं की नीति पर चलते हैं, जिससे न तो फसलों का सही दाम मिलता और न दाम मिलने की गारंटी. डब्ल्यूटीओ भारत के किसानों का बड़ा विरोधी है. वो यह नहीं चाहता है कि यहां के किसानों को सरकार सपोर्ट करे.
कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना है कि किसानों की आय डबल करने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा फसलों का उचित दाम न मिलना है. सरकार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी दे दे तो स्थिति बदल जाएगी. साथ में पीएम किसान सम्मान निधि स्कीम की रकम डबल करके 12 हजार रुपये सालाना करनी होगी. जब सरकार चीनी मिलों को घाटे से बचाने के लिए यह तय कर सकती है कि घरेलू खपत के लिए मिल से 31 रुपये प्रति किलो से कम दाम पर चीनी नहीं बिकेगी तो फिर किसानों के लिए ऐसी व्यवस्था लागू करने से परहेज क्यों?
ओईसीडी यानी आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से 2016-17 के बीच भारतीय किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम न मिलने की वजह से लगभग 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. किसानों को उनके हक का यह पैसा मिलता तो वह स्विस बैंक में नहीं जाता. वह बाजार में खर्च होता और हमारी इकोनॉमी के लिए बूस्टर डोज का काम करता.
आमतौर पर कोई सरकार या नेता किसानों की आय डबल करने पर बात ही नहीं करता था. लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 फरवरी 2016 को बरेली (उत्तर प्रदेश) की एक रैली के दौरान पहली बार किसानों से उनकी इनकम डबल करने का वादा किया. उन्होंने कहा था कि 2022 में जब देश अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा होगा तब किसानों की आय दोगुनी हो चुकी होगी.
इसके बाद 1984 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. अशोक दलवाई की अगुवाई में 13 अप्रैल 2016 को डबलिंग फार्मर्स इनकम कमेटी का गठन कर दिया गया. इसमें किसान प्रतिनिधि भी शामिल किए गए. दलवई कमेटी ने सितंबर 2018 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. आज पीएम किसान स्कीम के तौर पर जो 6000 रुपये मिल रहे हैं उनमें इस कमेटी की भी भूमिका है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए जून 2018 में राज्यपालों की हाई पावर कमेटी भी गठित की थी. यूपी के तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक इसके अध्यक्ष बनाए गए थे. कमेटी ने अक्टूबर 2018 में अपनी रिपोर्ट तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंप दी थी. रिपोर्ट में 21 सिफारिशें की गईं थीं.
इसमें मनरेगा को कृषि से जोड़ने की बात भी थी, जिसकी किसान संगठन लंबे समय से मांग कर रहे हैं. साथ ही जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को देखते हुए विशेष कृषि जोन बनाकर वहां की जलवायु के मुताबिक खेती को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया था. बताया गया है कि केंद्रीय योजनाओं में केंद्र की सहायता का अनुपात बढ़ाने और कुछ दूसरी फसलों को एमएसपी के दायरे में लाने की सिफारिश हुई थी. लेकिन यह रिपोर्ट अब तक लागू नहीं हुई.
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम को शुरू होने के बाद किसानों की आय पर कितना सकारात्मक असर पड़ा है इसका कोई सर्वे नहीं आया है. जबकि इसके तहत सरकार 12 किस्तों में 2.2 लाख करोड़ रुपये सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर चुकी है. इससे छोटे किसानों को बड़ा सहारा मिला है.
किसानों स्थिति और ज्यादा न खराब हो इसके लिए सरकार सचेत दिखाई दे रही है. इसलिए उर्वरकों पर किसानों का खर्च नहीं बढ़ने दिया है. यानी खाद की महंगाई किसानों की बजाय सरकार झेल रही है. यूं ही नहीं हमारी उर्वरक सब्सिडी 80 हजार करोड़ से बढ़कर 2.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने वाली है. हालांकि, कीटनाशकों, बीजों और डीजल के दाम में बेतहाशा वृद्धि के हिसाब से कृषि उपज के दाम नहीं बढ़े हैं. ऐसे में आय को लेकर सरकार और किसानों दोनों के सामने चुनौती खड़ी है.
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