कच्चे केले, विशेष रूप से सब्जियों वाले केले न केवल स्वादिष्ट होते हैं बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बेहद लाभकारी होते हैं. इसकी खेती करने से हमें पोषण और आर्थिक दोनों लाभ मिलते हैं. बरसात के समय जब ताजी हरी सब्जियां मिलना कठिन होता है या उनकी कीमतें बहुत अधिक होती हैं, तो सब्जियों वाले केले एक उत्कृष्ट विकल्प होते हैं. खासकर शाकाहारी लोगों के लिए, जिनके पास विकल्प सीमित होते हैं. कच्चे केले का सेवन न केवल आयरन की कमी को पूरा करता है, बल्कि यह पेट की बीमारियों में भी लाभकारी होता है. कच्चे केले, पके केले से ज्यादा फायदेमंद होते हैं. इसकी खेती इस समय करके किसान आन वाले समय में बेहतर लाभ ले सकते हैं.
कच्चे केले में मीठे पके केले की तुलना में अधिक स्वास्थ्य लाभ और पोषण तत्व मिलता है. इनमें पोटैशियम, विटामिन सी, विटामिन बी 6 और आहार फाइबर की महत्वपूर्ण मात्रा होती है. इसके अलावा, कच्चे केले प्रतिरोधी स्टार्च का भी एक अच्छा स्रोत होते हैं. इनमें प्रतिरोधी स्टार्च आंत में लाभकारी बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा देता है. कच्चे केले में पके केले की तुलना में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है. यह मधुमेह वाले लोगों के लिए एक बेहतर विकल्प बनता है. कच्चे केले का फाइबर और प्रतिरोधी स्टार्च शरीर का वजन कंट्रोल करने में मदद करता है. कच्चे केले एंटीऑक्सीडेंट का अच्छा स्रोत हैं, जो ऑक्सीडेटिव तनाव से शरीर को बचाते हैं. केले में सूक्ष्म पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं, जो हमारे शरीर की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करते हैं. इसकी खेती इस समय करके किसान आन वाले समय में बेहतर लाभ ले सकते हैं.
डॉ.राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा, समस्तीपूर के डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी के हेड डॉ एस.के. सिंह ने कहा कि कच्चे केले की सब्जियां बनाकर उपयोग किया जाता है और इसकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है. इसके आलवा कच्चे केले को उबाला, तला या बेक किया जा सकता है. उन्हें अक्सर नमकीन व्यंजनों में इस्तेमाल किया जाता है. उसकी स्टार्ची बनावट व्यंजनों में आलू का एक बेहतर विकल्प है. कच्चे केले को स्नैक्स रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि कच्चे केले डालने से बहुत अधिक मिठास डाले बिना स्नैक्स की पोषण सामग्री बढ़ सकती है. उन्हें काटकर नाश्ते के रूप में भी खाया जा सकता है, जो एक स्वस्थ और पेट भरने वाला विकल्प प्रदान करता है. कच्चे केले को सुखाकर केले का आटा बनाया जा सकता है. इस ग्लूटेन-मुक्त आटे का उपयोग बेकिंग और खाना पकाने में किया जा सकता है, जो पारंपरिक गेहूं के आटे का पौष्टिक विकल्प प्रदान करता है.
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डॉ एस.के. सिंह ने बताया कि भारत में लगभग 500 से अधिक केले की किस्में उगाई जाती हैं. केले की सभी किस्में न तो पका कर खाने के योग्य होती हैं और न ही उनकी सब्जी अच्छी बनती है. इसलिए यह जानना जरूरी है कि कौन सी केले की प्रजाति सब्जी के लिए बेहतर होती है. सामान्य तौर पर केले की जीनोमिक संरचना जिसमें B (Musa balbisiana) जीनोम ज्यादा होता है, वे केले सब्जियों के लिए बेहतर होते हैं. वहीं, जिन केलों में A जीनोम (Musa acuminata) ज्यादा होता है, वे पका कर खाने के योग्य होते हैं.
दक्षिण भारत, विशेष रूप से केरल की यह एक प्रमुख किस्म है. इस केले के बने उत्पाद जैसे चिप्स, पाउडर आदि खाड़ी के देशों में निर्यात किए जाते हैं. इसे मुख्यतः सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसका पौधा 2.7-3.6 मीटर लंबा होता है. फलों का गुच्छा छोटा होता है. इसके गुच्छे का वजन 8-15 किलोग्राम और घौद में 30-50 फल लगते हैं. फल लंबे, 22.5-25 से.मी. आकार वाले, छाल मोटी, गूदा कड़ा और स्टार्ची लेकिन मीठा होता है. फलों को उबालकर नमक और काली मिर्च के साथ खाया जाता है.
मोंथन किस्म में कचकेल, बनकेल, बौंथा, कारीबेल, बथीरा, कोठिया, मुठिया, गौरिया कनबौंथ, मान्नन केले आते हैं. यह सब्जी वाली किस्म बिहार, केरल (मालाबार), तमिलनाडु (मदुराई, तंजावुर, कोयम्बटूर, तिरुचिरापल्ली) और मुंबई (ठाणे जिले) में मुख्यतया पाई जाती है. इसका पौधा लंबा और मजबूत होता है. केलों का गुच्छा और फल बड़े, सीधे और एंगुलर होते हैं. छाल बहुत मोटी और पीली होती है. गूदा नम, मुलायम और कुछ मीठापन लिए होता है. इसका मध्य भाग कड़ा होता है. कच्चे फल का उपयोग सब्जी और पके फल का उपयोग खाने में किया जाता है. फलों के गुच्छे का वजन 18-22.5 किलोग्राम होता है. एक पौध में आमतौर पर 100-112 फल लगते हैं. बिहार में इसको कोठिया के नाम से जाना जाता है.
यह तमिलनाडु की एक लोकप्रिय प्रजाति है. इसका पौधा बहुत ही सख्त होता है जो हवा,सूखा, पानी, ऊंची-नीची जमीन, पीएच मान में बेहतर उत्पादन देता है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता है विषम परिस्थितियों के प्रति सहिष्णुता. अन्य केले की प्रजाति की तुलना में यह कुछ ज्यादा समय लेती है. गुच्छे का औसत वजन 20-25 किलोग्राम होता है. यह मुख्य रूप से सब्जी के लिए प्रयोग में लाई जाती है. इसका फल पकने के बाद भी गुच्छे से अलग नहीं होता है. इसमें कीड़े और बीमारियों का प्रकोप कम होता है.
इस किस्म की खेती पहले फिलीपींस में होती थी लेकिन अब इसकी खेती सभी प्रमुख केला उत्पादक देशों में हो रही है. साबा केले में बहुत बड़े, मजबूत छद्म तने होते हैं जो 20 से 30 फीट (6.1 से 9.1 मीटर) की ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं. केले की अन्य किस्मों की तुलना में फल फूल आने के 150 से 180 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. प्रत्येक पौधे से लगभग 26 से 38 किलोग्राम केला मिलता है. एक घौद में 180 से 200 केले मिलते हैं.
फिया सब्जी वाले केले की दूसरी संकर किस्म है. इसके फल को सब्जी के रूप में और पका कर खाने में प्रयोग होता है. इसके पौधे की ऊंचाई 2.5-3.5 मीटर होती है. फसल की अवधि 13-14 महीने की होती है. इस प्रजाति से 40 किलोग्राम के गुच्छे को प्राप्त किया गया है. प्रति घौद में 200-230 फल मिलते हैं. प्रत्येक फल का वजन 150-180 ग्राम का होता है. यह किस्म भी पानामा विल्ट, काला सिगाटोका और सूत्रकृमि के प्रति प्रतिरोधी होती है.
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सब्जी वाले केले की उचित किस्मों का चयन और सही समय पर खेती करके हम अपने स्वास्थ्य और आय दोनों को बढ़ा सकते हैं. केले को चिप्स, आटा और अन्य उत्पादों में संसाधित करने से आय में वृद्धि हो सकती है और कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है. निर्यात क्षमता में सुधार हो सकता है जिससे मध्य पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में निर्यात के अवसरों का विस्तार हो सकता है.
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