अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनियाभर के लगभग देशों से आयात-निर्यात में समान टैक्स वसूलने की राह पर चलते हुए रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने का निर्णय लिया है. इस क्रम में अमेरिका ने भारत पर भी 26 प्रतिशत का डिस्काउंटेड रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया है, जो कई अन्य देशों के मुकाबले थोड़ा कम है. इस पर कोई भारत सरकार की घेराबंदी कर रहा है तो किसी का कहना है कि इसका बहुत ज्यादा असर नहीं होगा. अब इस टैरिफ को लेकर प्रमुख कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने प्रतिक्रिया दी है.
कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी ने कहा कि नए अमेरिकी टैरिफ के बावजूद भारत USA को अपने कृषि निर्यात को पहले की तरह बनाए रख सकता है या इसे बढ़ा भी सकता है, क्योंकि भारत के प्रतिस्पर्धी देशों को और भी ज्यादा टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में भारत के उत्पाद उनसे थोड़े सस्ते ही होंगे.
गुलाटी ने कहा कि ट्रंप द्वारा भारतीय वस्तुओं पर लगाए गए 26 प्रतिशत "रियायती पारस्परिक टैरिफ" का क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धियों पर लगाए गए उच्च शुल्कों की तुलना में समुद्री खाद्य और चावल जैसे प्रमुख कृषि निर्यातों पर सीमित प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने कहा कि हमें बढ़े हुए टैरिफ को निरपेक्ष रूप से नहीं देखना चाहिए, बल्कि अपने प्रतिस्पर्धियों के साथ सापेक्ष टैरिफ बढ़ोतरी को देखना चाहिए.
उन्होंने कहा कि भारत को 26 प्रतिशत टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है, जबकि चीन को 34 प्रतिशत का सामना करना पड़ रहा है, जिससे भारतीय निर्यातकों को 8 प्रतिशत का अंतर लाभ मिल रहा है. अन्य प्रतिस्पर्धियों को और भी अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें वियतनाम को 46 प्रतिशत, बांग्लादेश को 37 प्रतिशत, थाईलैंड को 36 प्रतिशत और इंडोनेशिया को 32 प्रतिशत का सामना करना पड़ रहा है. समुद्री खाद्य निर्यात, विशेष रूप से झींगा के लिए, गुलाटी ने बताया कि भारत के सापेक्ष टैरिफ लाभ के साथ-साथ समग्र अमेरिकी खाद्य व्यय में झींगा की छोटी हिस्सेदारी का मतलब है कि मांग में उल्लेखनीय कमी आने की संभावना नहीं है.
भारतीय झींगा फ़ीड निर्माता संघ के महासचिव गुलरेज आलम ने कहा कि भारत अमेरिका को झींगा का एक प्रमुख निर्यातक है, जो देश के कुल वार्षिक निर्यात 9 लाख टन का लगभग आधा हिस्सा अमेरिका को भेजता है. आलम ने कहा कि अल्पावधि में थोड़ा झटका लगेगा, क्योंकि इक्वाडोर पर 10 प्रतिशत का कम टैरिफ लगाया गया है, जो अमेरिका को झींगा निर्यात करने वाले प्रमुख देशों में से एक है.
इसलिए यह भारतीय झींगा उत्पादन के लिए चिंता का विषय होगा. आलम ने आगे कहा कि अमेरिका के करीब स्थित होने के कारण इक्वाडोर के पास लॉजिस्टिक लाभ है. हालांकि, भारत के पास थोक हैंडलिंग क्षमता और बेहतर गुणवत्ता वाली पैकिंग है. अल्पावधि में, व्यापार में बदलाव देखने को मिलेगा. हालांकि, दीर्घावधि में, व्यापार कोई चुनौती नहीं होगी.
इसी तरह, चावल निर्यात के लिए, जहां वर्तमान अमेरिकी टैरिफ 9 प्रतिशत है, भारत 26 प्रतिशत तक की वृद्धि के बावजूद वियतनाम और थाईलैंड के मुकाबले प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त बनाए रखता है. अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के पूर्व अध्यक्ष विजय सेठिया ने कहा कि भारत सालाना 250,000 से 300,000 टन चावल अमेरिका को निर्यात करता है. सेठिया ने कहा कि चावल की सभी किस्मों पर 26 प्रतिशत टैरिफ निश्चित रूप से अल्पावधि में हमारे निर्यात को धीमा कर देगा, लेकिन दीर्घावधि में इसकी जगह ले लेगा.
उन्होंने कहा कि शुल्क वृद्धि अंततः अमेरिकी उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाएगी. वर्तमान में भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) में कृषि के लिए चेयर प्रोफेसर गुलाटी ने सुझाव दिया कि भारत उच्च कर वाले प्रतिस्पर्धियों द्वारा खाली किए गए स्थानों में संभावित रूप से बाजार हिस्सेदारी हासिल कर सकता है. (पीटीआई)
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