आमतौर पर नदियों में मीठे जल में बढ़ने वाली हिल्सा मछली को तालाबों में पालने और उनका तेज विकास कराने में वैज्ञानिकों को सफलता मिली है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रोजेक्ट के तहत हिल्सा मछली को तालाब में पालकर 689 ग्राम वजन हासिल किया गया है. इसके साथ ही यह पता चला है कि सही प्रबंधन से नदियों की तुलना में तालाब में भी हिल्सा मछली का विकास किया जा सकता है. बता दें कि भारत में यह मछली कुछ नदियों के पानी में ही होती है, जिसकी वजह से इसकी बाजार में कीमत 1200 रुपये से लेकर 2000 रुपये किलो तक होती है.
आईसीएआर सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट बैरकपुर की रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण पूर्व एशिया की सबसे अधिक पसंद की जाने वाली बेशकीमती मछली हिल्सा (तेनुआलोसा इलिशा) ने लंबे समय से हमेशा शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया है, जिसके कारण हाल ही में केंद्र सरकार ने कई रिसर्च प्रोजेक्ट के जरिए मछली को जलीय कृषि में लाने का प्रयास किया है. इसी कड़ी में आईसीएआर-एनएएसएफ प्रोजेक्ट के दूसरे चरण ( ICAR-NASF project phase II) के तहत हिल्सा मछली के पालन के लिए शोध किया गया है.
आईसीएआर-एनएएसएफ प्रोजेक्ट के दूसरे चरण में हिल्सा ब्रूडस्टॉक ग्रोथ प्रमुख उद्देश्य था. इसके लिए हिल्सा के बीज को विभिन्न स्थानों पर तालाबों में पाला गया. इनमें राहरा में मीठे पानी का क्षेत्र (ICAR- केंद्रीय मीठा पानी जलीय कृषि संस्थान), काकद्वीप में खारा जल क्षेत्र (ICAR- केंद्रीय खारा जल जल कृषि संस्थान) और मध्यवर्ती क्षेत्र कोलाघाट के जामित्या गांव में, मिदनापुर पूर्व, पश्चिम बंगाल (ICAR- केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान में हिल्सा का पालन किया गया. ब्रूडस्टॉक तालाबों को कोलाघाट में गंगा नदी की सहायक नदी रूपनारायण से पानी दिया जाता है. वहां सभी दो तालाब सुविधाओं में अच्छी बढ़ोत्तरी और मछलियों का विकास दर्ज किया गया.
आईसीएआर की रिपोर्ट के अनुसार निगरानी के दौरान कोलाघाट में 689 ग्राम वजन (43.6 सेमी) की एक हिल्सा मछली दर्ज की गई. मछली की यह ग्रोथ 3 साल के पालन के दौरान देखी गई है. वैज्ञानिकों ने कहा है कि हिल्सा मछली का यह आकार और वजन अब तक किए गए प्रयासों में सबसे बढ़िया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि तालाब में पाली गई हिल्सा का विकास खुले पानी की तुलना में बेहतर है, जिससे पता चलता है कि हिल्सा की जलीय कृषि की संभावना यानी यानी एक्वाकल्चर के लिए सही है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि मछलियों को विशेष रूप से तैयार किए गए भोजन के अलावा जीवित ज़ूप्लांकटन का उनका पसंदीदा भोजन खिलाया गया. पानी की क्वालिटी लगभग 0.4-0.5 पीपीटी का खारापन और लगभग 800-1000 सेमी मीठे पानी की रखी गई है. पानी की क्षारीय स्थिति पीएच 7.4-7.5 रही और इसमें उचित ऑक्सीजन दर 7.4-7.5 मिलीग्राम प्रति लीटर रखी गई.
आईसीएआर सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट बैरकपुर की यह सफलता की कहानी एक सफल कैप्टिव हिल्सा कल्चर की संभावनाओं को साबित करती है अगर तालाबों का उचित प्रबंधन किया जाए.
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