पराली जलाने में सबसे आगे रहने वाले पंजाब ने वर्तमान धान कटाई सीजन के लिए पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) को राज्य के एक्शन प्लान की जानकारी दी है. सरकार ने 2022 की तुलना में इस वर्ष धान की पराली जलाने की घटनाओं में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी लाने का लक्ष्य रखा है. यही नहीं एक्शन प्लान में पंजाब के छह जिलों में ऐसी घटनाओं को समाप्त करने का भी लक्ष्य रख गया है. साल 2023 के दौरान पंजाब में लगभग 20 मिलियन टन धान की पराली का अनुमान है, जिसमें 3.3 मिलियन टन बासमती पराली भी शामिल है. जलाने की बजाय दूसरी तरह से इस समस्या का निस्तारण करने के लिए पंजाब में वर्तमान में 1,17,672 मशीनें मौजूद हैं. जबकि लगभग 23,000 मशीनों की खरीद की प्रक्रिया चल रही है. इन मशीनों को तकनीकी तौर पर क्रॉप रेजीड्यू मैनेजमेंट (CRM) कहते हैं.
दरअसल, सीआरएम मशीनरी के प्रभावी उपयोग और दूसरे तौर तरीकों से पंजाब में धान की पराली जलाने की घटनाओं में महत्वपूर्ण कमी लाने के उद्देश्य से, एनसीआर और आस-पास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने पंजाब सरकार की तैयारियों की व्यापक समीक्षा की है. समीक्षा के दौरान पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी), जिला कलेक्टरों और संबंधित विभागों के के सचिवों ने आयोग को वर्तमान धान कटाई सीजन के दौरान पराली जलाने की घटनाओं में कमी लाने का आश्वासन दिया. कोशिश यह है कि इस बार दिल्ली में पराली से प्रदूषण बढ़ने का मुद्दा न बने.
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आप सोचेंगे कि पराली तो धान उत्पादक सभी प्रमुख सूबों में जलती है तो फिर अकेले पंजाब की ही बात क्यों? इसका जवाब आपको आंकड़ों से मिल जाएगा. केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल यानी 2022 में 15 सितंबर से 30 नवंबर के बीच देश के छह राज्यों में पराली जलाने के कुल 69,615 मामले आए थे. जिनमें से 49,922 अकेले पंजाब के थे. पिछले वर्ष के आंकड़ों के अनुसार, पंजाब के पांच जिले जहां सबसे अधिक फसल जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं, वे संगरूर, बठिंडा, फिरोजपुर, मुक्तसर और मोगा थे. राज्य में हुई पराली जलाने की कुल घटनाओं का लगभग 44 प्रतिशत इन्हीं जिलों का हिस्सा है.
एक्शन प्लान में जिन छह जिलों में पराली जलाने की घटनाओं को समाप्त करने के लिए राज्य सरकार ने दावा किया है उनमें होशियारपुर, मलेरकोटला, पठानकोट, रूपनगर, एसएएस नगर (मोहाली) और एसबीएस नगर शामिल हैं. पंजाब के एक्शन प्लान के मुताबिक इस वर्ष धान के तहत कुल क्षेत्र लगभग 31 लाख हेक्टेयर होने का अनुमान है. धान की पराली लगभग 20 मिलियन टन होने की उम्मीद है. विभिन्न औद्योगिक और ऊर्जा उत्पादन परियोजनाओं के लिए धान की पराली का उपयोग करने का प्रयास किया जा रहा है.
यह अनुमान लगाया गया है कि 2023 में, राज्य सरकार मशीन के माध्यम से लगभग 11.5 मीट्रिक टन और अन्य माध्यमों से 4.67 मीट्रिक टन धान की पराली का मैनेजमेंट होगा. बड़ी मात्रा में इसके भूसे का उपयोग मवेशियों के चारे के रूप में भी किया जाएगा. राज्य में इस समय 23,792 कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) स्थापित किए गए हैं. जिनकी मदद से किसान सीआरएम मशीन ले सकते हैं. पराली मैनेजमेंट के लिए राज्य सरकार ने 8,000 एकड़ धान क्षेत्र में बायो डीकंपोजर डालने की योजना भी बनाई है.
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पंजाब सरकार ने इस साल 1 मई से ईंट भट्ठों में धान की पराली से बने गोलों के साथ 20 प्रतिशत कोयले को अनिवार्य रूप से जलाने के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम की धारा 5 के तहत नोटिफिकेशन जारी किया है. जैव-इथेनॉल प्लांट, बायोमास आधारित बिजली संयंत्र, कंप्रेस्ड बायोगैस प्लांटों और कार्डबोर्ड कारखानें भीइ पराली का ईंधन के रूप में इस्तेमाल करेंगे. वर्तमान धान कटाई मौसम के लिए पराली मैनेजमेंट को लेकर चार बैठकें पहले ही की जा चुकी हैं.
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