बिहार के गुलशन टमाटर, सोनाचूर चावल सहित 54 प्रोडक्ट को भौगोलिक संकेत यानी (GI) टैग मिल सकते हैं. इसके लिए बिहार कृषि विभाग जोर-शोर से लगा हुआ है. इसके लिए कृषि विभाग भागलपुर में बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU) के साथ सहयोग कर रहा है, जिसमें पांच प्रमुख वस्तुओं पर रिसर्च पहले से ही बेहतर स्टेज में है. ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के मुताबिक बिहार कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक एके सिंह ने गुरुवार को बताया कि 54 उत्पादों की एक सूची राज्य कृषि विभाग को सौंपी है, जिसमें मधुबनी पेंटिंग और अलग-अलग कई मिठाइयां और गैर-कृषि वस्तुएं शामिल हैं.
एके सिंह ने कहा कि जीआई टैग के लिए 54 कृषि और गैर-कृषि उत्पादों की पहचान की गई है. उन सभी के लिए रिसर्च जारी है, लेकिन पांच उत्पाद प्रमुख तौर पर इसमें शामिल हैं. इसमें लिट्टी चोखा' (बिहार का मुख्य व्यंजन), रोहतास से सोनाचूर चावल, गुलशन टमाटर, पटना से 'सिंघाड़ा' (पानी फल) और दीघा के मालदा आम पर काम अंतिम चरणों में है.
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कृषि विभाग इस तरह के प्रोडक्ट को सहेजने में लगा है ताकि अगली पीढ़ियों को इसके बारे में पता चल सके. बिहार के ये उत्पाद राज्य में ही नहीं बल्कि पूरे देश में मशूहर हैं. इससे किसानों की कमाई बढ़ती है और उनकी आय सुनिश्चित होती है. इन उत्पादों को खास पहचान दिलाने के लिए जीआई टैग की कोशिश जारी है. कृषि विभाग का मानना है कि बिहार को जीआई टैग की संख्या के मामले में शीर्ष राज्यों में स्थान दिलाना है.
वर्तमान में, सबसे अधिक जीआई टैग वाले राज्य उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल हैं. वहीं, बिहार में छह जीआई-टैग वाली वस्तुएं हैं. इसमें शाही लीची, भागलपुरी जर्दालू आम, कतरनी चावल, मरीचा चावल, मगही पान और मखाना शामिल है. जीआई टैग परंपरा, उत्पादन विधियों और किसी उत्पाद के बारे में स्थानीय ज्ञान को सहेजने में मदद करता है. साथ ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी मांग को भी बढ़ाता है. जैसे, रसगुल्ला या रसगोला के लिए जीआई टैग को लेकर राज्यों के बीच मुकाबला देखने को मिलता है. रसगुल्ला या रसगोला पारंपरिक रूप से पश्चिम बंगाल से जुड़ा हुआ है, लेकिन ओडिशा भी इसका दावा करता है, जिसने इसकी उत्पत्ति पुरी में भगवान जगन्नाथ मंदिर से मानी है.
किसी भी उत्पादन को भौगोलिक सांकेतिक यानी जीआई टैग मिलने से विश्वव्यापी पहचान मिल जाती है. लोग जीआई टैग उत्पादों को क्वालिटी में बेस्ट मानते हैं, इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी मार्केटिंग के ज्यादा आसार होते हैं. एक तरीके से देखा जाए तो स्थान विशेष से ताल्लुक रखने वाले उत्पादों को जीआई टैग मिलने से न सिर्फ उत्पाद का निर्यात बढ़ जाता है, बल्कि इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आता है.
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