भारत के ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कृषि क्षेत्र की भूमिका को अहम बताया गया है. नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद का कहना है कि अगर कृषि क्षेत्र में 5 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर हासिल नहीं होती है तो देश 8 प्रतिशत की जरूरी आर्थिक विकास दर तक नहीं पहुंच पाएगा और विकसित भारत का सपना अधूरा रह जाएगा. वे बुधवार को नाबार्ड और समुन्नति द्वारा आयोजित दो दिवसीय एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे.
सम्मेलन के पांचवें संस्करण में एफपीओ को एंटरप्राइज-रेडी बनाने, जलवायु-स्मार्ट कृषि तकनीक अपनाने और अनौपचारिक क्षेत्र को पेंशन के दायरे में लाने जैसे विषयों पर चर्चा का कार्यक्रम है. बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, रमेश चंद ने कहा कि जैसे जापान, कोरिया और चीन ने मध्य आय वर्ग से उच्च आय वर्ग की अर्थव्यवस्था बनने के दौरान 25-30 वर्षों तक कृषि में 5 प्रतिशत की सतत वृद्धि दर्ज की, वैसे ही भारत को भी इस राह पर चलना होगा. यह वृद्धि न केवल आर्थिक मजबूती बल्कि ‘सबका विकास’ यानी समावेशी विकास के लक्ष्य को भी सुनिश्चित करेगी.
रमेश चंद ने छोटे किसानों के भविष्य पर उठ रहे सवालों को खारिज करते हुए कहा कि एशिया का अनुभव पश्चिमी सोच से अलग है. उन्होंने कहा कि यह धारणा गलत है कि बड़े किसान छोटे किसानों को निगल जाएंगे. एशिया में छोटे किसान आगे भी रहेंगे. हमें इन्हें कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत मानकर आगे बढ़ना चाहिए.
चंद ने एफपीओ को कृषि वृद्धि का इंजन बनाने पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि सिर्फ एफपीओ का गठन करना पर्याप्त नहीं है. हमें यह देखना होगा कि इसके लिए वित्त कहां से आएगा, क्षमता कैसे बढ़ेगी और इसमें किन हितधारकों की भूमिका होगी. अकेले एफपीओ हर समस्या का समाधान नहीं कर सकते.
इस मौके पर विशेषज्ञों ने भी माना कि अगर कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 5 प्रतिशत तक पहुंचती है तो यह न केवल किसानों की आय में सुधार लाएगी, बल्कि ग्रामीण भारत की सामाजिक-आर्थिक तस्वीर को भी बदल सकती है.
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