आज 2 अक्टूबर का दिन भारतीय इतिहास में एक अहम स्थान रखता है क्योंकि इस दिन दो महान विभूतियों का जन्म हुआ, जिन्होंने देश, गांव और किसानों की प्राथमिकता को अपनी जीवन यात्रा का उद्देश्य बनाया. ये विभूतियां हैं - महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री. इन दोनों नेताओं ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में अपना अहम योगदान दिया,बल्कि आजाद भारत के निर्माण में भी गांवों और किसानों की भूमिका को सर्वोपरि रखा.महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक और लाल बहादुर शास्त्री आत्मनिर्भरता के प्रतीक माने जाते हैं.दोनों महान नेताओं ने गांव, किसान और कृषि को भारतीय समाज की रीढ़ माना. गांधी जी का मानना था कि भारत की असली आत्मा गांवों में बसती है,औरअगर देश को स्वतंत्र करना है, तो सबसे पहले गांवों और किसानों को सशक्त करना होगा.
गांधी जी के स्वतंत्रता संग्राम में किसान और गांव की भूमिका बेहद अहम थी. उनका विश्वास था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है, और इसलिए स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने ग्रामीण समाज और किसानों के सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया.स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया, जो उस समय आत्मनिर्भरता और प्रगति के लिए किसानों के महत्व को पहचानने का प्रतीक था. शास्त्री जी के कार्यकाल में किसानों को सशक्त करने और देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के कई प्रयास किए गए, जिससे हरित क्रांति की नींव पड़ी. इस क्रांति के माध्यम से देश खाद्यान्न संकट से उबर सका और किसानों की मेहनत से भारत ने कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की.
महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांव और किसानों को प्रमुख स्थान दिया.गांधी जी का सपना था कि भारत का विकास गांवों से शुरू हो,जहां आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन के माध्यम से देश प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सके. उनका मानना था कि अगर ग्रामीण भारत जागरूक हो जाए, तो देश की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो जाएगी.उन्होंने किसानों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खड़ा करने के लिए चंपारण सत्याग्रह,असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च और सत्याग्रह जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिससे देश के कोने-कोने में स्वराज की भावना फैल गई.
ये भी पढ़ें: Sugarcane farming: गन्ने की बुवाई में अपनाएं ये मॉडर्न तकनीकें, कम खर्च में पाएं बंपर पैदावार
गांधी जी के विचार में किसान केवल अन्नदाता नहीं थे, बल्कि भारत की आर्थिक और सामाजिक रीढ़ थे.उन्होंने सत्याग्रह और असहयोग आंदोलनों के माध्यम से किसानों को अंग्रेजी शासन के खिलाफ जागरूक किया. उनके लिए किसानों की स्थिति सुधारना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना एक अहम प्राथमिकता थी. गांधी जी का कहना था, "भारत का भविष्य गांवों में बसता है."इसी विचारधारा के तहत उन्होंने स्वदेशी आंदोलन की नींव रखी, जो विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर देश में बने वस्त्रों और उत्पादों को बढ़ावा देने पर आधारित था. किसानों को ब्रिटिश शासन के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए गांधी जी ने चंपारण सत्याग्रह जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि स्वतंत्रता संग्राम में किसानों की भूमिका बेहद अहम थी.उनकी विचारधारा में आत्मनिर्भरता और आत्म-सम्मान का विशेष महत्व था, और उनका मानना था कि अगर किसान सशक्त होंगे, तो देश सशक्त होगा.
लाल बहादुर शास्त्री ने स्वतंत्र भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए किसानों की शक्ति पर भरोसा किया. उनके कार्यकाल के दौरान, देश को कई कृषि संकटों का सामना करना पड़ा, जिसमें खाद्य सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती थी.साल 1965 में, जब शास्त्रीजी भारत के प्रधानमंत्री थे, तब भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरानअमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने भारत से गेहूं की आपूर्ति रोकने की धमकी दी. अमेरिका ने कहा कि यदि भारत युद्ध समाप्त नहीं करता, तो वह खाद्य संकट के समय गेहूं की आपूर्ति बंद कर देगा. इस पर शास्त्रीजी ने साहसिकता से जवाब दिया, "अगर गेहूं बंद करना है, तो बंद कर दें; मुझे इसकी परवाह नहीं है," और उन्होंने स्वयं अमेरिका से गेहूं की आपूर्ति रोक दी.
अक्टूबर 1965 में, दशहरे के दिन, "मिट्टी के लाल" के नाम से मशहूर शास्त्री जी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में अनाज उत्पादन बढ़ाने और भारतीय सेना और किसानों का मनोबल बढ़ाने के उद्देश्य से पहली बार "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया. खाद्यान्न की तीव्र कमी को दूर करने के लिए, उन्होंने विशेषज्ञों से दीर्घकालिक रणनीति तैयार करने का आह्वान किया,जिससे हरित क्रांति" की शुरुआत हुई. इसके साथ ही,उन्होंने श्वेत क्रांति को बढ़ावा देने में भी अहम भूमिका निभाई.शास्त्रीजी के प्रधानमंत्री रहते हुए, 1965 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की स्थापना की गई. जय जवान, जय किसान" का नारा देकर उन्होंने यह संदेश दिया कि देश की सुरक्षा और समृद्धि के लिए जवान और किसान दोनों समान रूप से अहम हैं.
1965 के खाद्यान्न संकट के दौरान, शास्त्रीजी ने किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रेरित किया ताकि भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बन सके. उन्होंने हरित क्रांति की नींव रखी, जिसके तहत किसानों को नई तकनीक, उन्नत बीज, और बेहतर सिंचाई साधन उपलब्ध कराए गए, जिससे फसलों की उत्पादकता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई. इस क्रांति ने भारत को कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अग्रसर किया और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की, जिससे भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बना और एक कृषि प्रधान देश के रूप में उभरा.
शास्त्रीजी ने किसानों को यह विश्वास दिलाया कि उनका काम केवल खेतों में फसल उगाना नहीं है, बल्कि वे देश की रीढ़ हैं, जिन पर पूरे राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा निर्भर करती है. उनके कार्यकाल में किसानों के हित में कई नीतियों और योजनाओं को लागू किया गया. उन्नत कृषि तकनीकों को बढ़ावा देना, कृषि के लिए आसान ऋण उपलब्ध कराना,और किसानों को उनकी फसल के उचित मूल्य दिलाने के लिए जरूरी कदम उठाना,उनके नेतृत्व की प्रमुख उपलब्धियों में से हैं.
गांधी जी और शास्त्री जी, दोनों ने अपने-अपने तरीकों से किसानों को आत्मनिर्भर भारत का आधार माना. गांधी जी के लिए स्वतंत्रता का अर्थ ग्रामीण पुनर्निर्माण था, जबकि शास्त्री जी ने कृषि को राष्ट्रीय समृद्धि का आधार बनाया. दोनों नेताओं की दृष्टि में किसान न केवल अन्नदाता थे,बल्कि राष्ट्र निर्माण के मुख्य कर्णधार भी थे.गांधी जी ने जहां स्वतंत्रता संग्राम में किसानों को अग्रणी भूमिका दी, वहीं शास्त्री जी ने किसानों की मेहनत और समर्पण के जरिए देश को आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया. दोनों नेताओं की सोच और योगदान आज भी प्रासंगिक हैं और भारतीय समाज के विकास में गांव और किसानों की अहम भूमिका को रेखांकित करते हैं.गांव और किसान भारत की आत्मा हैं. भारत की अधिकांश जनसंख्या गांवों में निवास करती है,और उनकी आजीविका का मुख्य साधन कृषि है.अगर हम देश की समृद्धि की बात करें, तो यह सीधा-सीधा गांव और किसानों के विकास पर निर्भर करती है. जैसे एक मजबूत नींव के बिना कोई इमारत नहीं टिक सकती है.
किसान और गांवों के विकास के बिना राष्ट्र की समृद्धि की कल्पना अधूरी है. अगर गांव और किसान समृद्ध होंगे, तो देश की अर्थव्यवस्था में मजबूती आएगी. लेकिन इसके लिए केवल नीतियां बनाना पर्याप्त नहीं है, उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करना भी जरूरी है. यह सुनिश्चित करना होगा कि इन नीतियों का लाभ हर किसान और ग्रामीण तक पहुंचे.भारत में कई योजनाएं बनाई गई हैं, लेकिन उनका वास्तविक प्रभाव तभी दिखाई देता है जब स्थानीय स्तर पर सही नेतृत्व और जागरूकता हो. किसानों को नई तकनीकों, उन्नत फसल उत्पादन के तरीकों और विपणन के नए अवसरों से जोड़ना बहुत जरूरी है. सही योजनाओं और नेतृत्व के माध्यम से ही गांवों को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है. इसके लिए किसानों को उन्नत बीज, बेहतर सिंचाई व्यवस्था, उर्वरकों के सही उपयोग और फसल सुरक्षा के बारे में जानकारी देना जरूरी है.
ये भी पढ़ें: 4000 करोड़ की यूपी एग्री परियोजना को योगी कैबिनेट से मिली मंजूरी, 28 जिले शामिल
इसके अलावा, फसल के उचित मूल्य और विपणन की व्यवस्था भी होनी चाहिए ताकि किसान अपने उत्पाद का सही लाभ उठा सकें. कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर उत्पन्न किए जा सकते हैं. जब देश का हर व्यक्ति पेट भर भोजन प्राप्त कर सकेगा, तब बाकी समस्याओं का समाधान करना भी आसान हो जाएगा.अगर किसान खुशहाल होंगे, तो वे अधिक उत्पादन करेंगे,जिससे देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी. इससे न केवल गरीबी और भुखमरी का समाधान होगा, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में स्थिरता भी आएगी.
किसानों की समृद्धि से शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य क्षेत्रों में भी सकारात्मक बदलाव आएंगे,जिससे राष्ट्र की समृद्धि और विकास की राह आसान हो जाएगी. गांव और किसान भारत के विकास के स्तंभ हैं. उनकी समृद्धि में ही राष्ट्र की समृद्धि निहित है. जरूरी है कि उन्हें सही दिशा और समर्थन दिया जाए, ताकि वे अपने और देश के विकास में पूरी तरह से योगदान दे सकें.
Copyright©2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today