केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है. इस वीडियो में कृषि मंत्री धान के एक खेत में खड़े दिखाई दे रहे हैं. उनके साथ आईसीएआर के डीजी एमएल जाट भी खड़े हैं. वीडियो में देखा और सुना जा सकता है कि एमएल जाट कृषि मंत्री को उस खेत के बारे में बता रहे हैं जिसका मुआयना करने खुद कृषि मंत्री गए हैं. वीडियो में सुना जा सकता है कि जाट बता रहे हैं कि यह ऐसा खेत है जिसमें 20 साल से बिना जुताई खेती की जा रही है. उस खेत का पुआल भी नहीं जलाया जाता और उसे खेत में ही इस्तेमाल किया जाता है. यहां तक कि खेत में लगने वाली मजदूरी का समाधान भी अपने स्तर पर निकाला जाता है. खुद कृषि मंत्री ने भी इस किसान की खेती और उसकी तकनीक के बारे में जानकारी दी है.
कृषि मंत्री ने इस नई खेती के बारे में बताया, मैं इस समय डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा (बिहार) के उस खेत में खड़ा हूं जहां पिछले 20 वर्षों से बिना जुताई खेती हो रही है.
यहां सीधे मशीन से बुआई होती है, और मिट्टी में जीवित केंचुए मिलते हैं जो इसे उपजाऊ और ज़िंदा बनाए रखते हैं. इस रीजनरेटिव एग्रीकल्चर से खेत की सेहत सुधरी, लागत घटी और उत्पादन बढ़ा. जहां औसतन 60–62 क्विंटल उपज होती है, वहीं यहां 120 क्विंटल तक फसल मिली है. यह खेती का भविष्य है — कम लागत, ज़्यादा लाभ और मिट्टी का संरक्षण.
वीडियो में देखा जा सकता है कि कृषि मंत्री अपने दोनों हाथ में दो तरह की मिट्टी लिए खड़े हैं. एक हाथ में वैसी मिट्टी है जिसके खेत की जुताई होती है और दूसरे हाथ में उस खेत की मिट्टी है जिसमें 20 साल से कोई जुताई नहीं हुई. कृषि मंत्री बताते हैं कि जिस खेत में जुताई के बाद खेती होती है उसकी मिट्टी चिकनी हो गई है, उसमें कोई भुरभुरापन नहीं है, उस मिट्टी में कोई संरचना नहीं है. दूसरी मिट्टी ऐसी है जिसकी 20 साल से कोई जुताई नहीं हुई, खेत में ट्रैक्टर से बखर नहीं (पाटा चलाना) किया गया. उसका नतीजा है कि मिट्टी की संरचना बिल्कुल बनी हुई है. उस मिट्टी में किसी तरह के रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं हुआ.
खेत की मेड़ पर खड़े होकर शिवराज सिंह चौहान ने मिट्टी में केंचुए को दिखाया और बताया कि केंचुए और अन्य जीवों की मौजूदगी से ही मिट्टी की एक खास संरचना बनी है. मिट्टी में केंचुआ जब नीचे जाता है, ऊपर आता है तो उसके साथ हवा भी ऊपर और नीचे जाती है. इससे मिट्टी भुरभुरी बनती है. मिट्टी उपजाऊ बनती है और उसमें आर्गेनिक कार्बन बढ़ जाता है.
कृषि मंत्री बताते हैं कि जुताई वाली खेती में जहां धान और गेहूं की औसत ऊपज 60-62 क्विंटल मिलती है, वहीं बिना जुताई वाली खेती में 120 क्विंटल तक उपज मिली है. जुताई नहीं करने से मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है जिससे मिट्टी उपजाऊ बन जाती है. जुताई और बुआई नहीं होने से मजदूरी का खर्च बचता है. डीजल की बचत होती है, लागत कम हो जाती है. दूसरी ओर उत्पादन बढ़ जाता है. इस मिट्टी की संरचना भी वैसी ही होती है जैसी प्राकृतिक खेती या जैविक खेती में होती है.
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