Wrestlers Protest: रेसलर्स के साथ क‍िसान संगठन, समर्थन या मुद्दों से भटकाव...

Wrestlers Protest: रेसलर्स के साथ क‍िसान संगठन, समर्थन या मुद्दों से भटकाव...

पहलवानों के समर्थन में आए क‍िसान संगठन क्या खेती-क‍िसानी के मुद्दों से भटक रहे हैं? इस सवाल के मायनों को समझना जरूरी है. क्योंंक‍ि क‍िसान नेताओं की सफल मोर्चा बंद ही क‍िसानों के संघर्ष को आसान बना सकती है.

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Wrestlers Protest: रेसलर्स के साथ क‍िसान संगठन, समर्थन या मुद्दों से भटकाव...जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे पहलवानों को कि‍सान नेताओं का समर्थन म‍िला है- फोटो क‍िसान तक

जंतर-मंतर पर इन द‍िनों पहलवानों और भारतीय कुश्ती संघ के बीच दंगल जारी है. मह‍िला पहलवानों ने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण स‍िंंह पर यौन शोषण का आरोप लगाया है, ज‍िसके तहत बृजभूषण स‍िंह के ख‍िलाफ कार्रवाई को लेकर साक्षी मलि‍क, व‍िनेश फोगाट, बजरंग पून‍िया समेत कई पहलवान बीते 17 दि‍नों से जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं. पहलवानों के इस प्रदर्शन को क‍िसान संगठनों का समर्थन भी म‍िला है. मसलन, क‍िसान संगठनों के बैनर तले कई क‍िसानों ने जंतर-मंतर पर पहुंचकर पहलवानों का समर्थन क‍िया है. तो वहीं कई क‍िसान नेता प्रदर्शन की रणनीत‍ि बनाने में भी जुट गए हैं, क‍िसान नेताओं के ये प्रयास कई सवाल खड़ा करते हैं.

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये ही है क‍ि क्या क‍िसान संगठन, प्रदर्शनों का ह‍िस्सा बनकर खेती-क‍िसानी से जुड़े मुद्दों से ही भटक रहे हैं. कुल म‍िलाकर क‍िसान संगठनों के ये प्रयास क‍िसान नेताओं को आंदोलन का ह‍िस्सा तो बना रहे हैं, लेक‍िन देश का एक आम क‍िसान उस दोराहे पर खड़ा है, ज‍िसकी एक राह क‍िसानों को गुमराह करने वाली भूलभूलैया की तरफ ले जाती है. 

क‍िसानों का 'अधूरा' आंदोलन और क‍िसान नेता   

पहलवानों के समर्थन में आए क‍िसान संगठन क्या खेती-क‍िसानी के मुद्दों से भटक रहे हैं?... इस सवाल के मायने समझने से पहले द‍िल्ली बॉर्डर पर हुए क‍िसान आंदोलन की प‍िक्चर के फ्लैश बैक में जाना होगा. असल में केंद्र सरकार की तरफ से लागू क‍िए गए तीन कृषि कानूनों के ख‍िलाफ द‍िसंबर 2020 में द‍िल्ली बॉर्डरों पर क‍िसानों का जुटान शुरू हुआ है. समय की चाल के साथ ही क‍िसानों के इस जुटान ने आंदोलन का रूप ले ल‍िया. मसलन, स‍िंघु बॉर्डर के साथ ही यूपी गेट हाइवे पर क‍िसानों ने कब्जा कर ल‍िया. तो वहीं सरकारों ने क‍िसानों को रोकने के ल‍िए सड़कें तक खुदवा दी. कुल म‍िलाकर इस संघर्ष, मतभेद और बातचीत के माहौल के बीच क‍िसानों का ये आंदोलन पूरा एक साल चला. क‍िसानों ने ये आंदोलन, तब वापस ल‍िया, जब केंद्र सरकार ने तीनों कृष‍ि कानूनों को वाप‍िस लेने की घोषणा की, लेक‍िन केंद्र सरकार की कानूनी वापसी की घोषणा और क‍िसानों के आंदोलन खत्म करने के ऐलान के बाद भी ये आंदोलन कई मायनों में अधूरा रहा.

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एक तरफ क‍िसान आंदोलन से कई क‍िसान नेताओं के चेहरों को राष्ट्रीय उभार म‍िला. तो वहीं दूसरी तरफ इस आंदोलन की पर‍िण‍ि‍त‍ि ने क‍िसानों को अपनी आवाज बुलंद करने का साहस भी द‍िया. मसलन, ज‍िसे देखते हुए MSP गारंटी कानून समेत क‍िसानों के कई मुद्दों की दोबारा मजबूत पैकेज‍िंग की आवश्यक द‍िखाई देने पड़ी. मसलन, क‍िसान के मुद्दे राष्ट्रीय राजनीत‍ि का ह‍िस्सा बने.  

क‍िसान आंदोलन की इस फ‍िल्म के फ्लैश बैक से वाप‍िस जंतर-मंतर पर आते हैं. जहां प्रदर्शनकारी पहलवान इंसाफ के ल‍िए प्रदर्शन कर रहे हैं, ज‍िसमें उन्हें क‍िसान नेताओं का समर्थन म‍िला है. मसलन, क‍िसान नेताओं का ये समर्थन, पहलवानों के प्रदर्शन का ह‍िस्सा बनता हुए द‍िखाई दे रहा है, ज‍िसे देखकर फ‍िर ये सवाल उठ रहा है क‍ि पहलवानों के समर्थन में आए क‍िसान संगठन क्या खेती-क‍िसानी के मुद्दों से भटक रहे हैं?...                     

नैत‍िक समर्थन से भी चल सकता था काम 

जंतर-मंतर पर प्रदर्शनकारी पहलवानों के समर्थन में बीते द‍िनों बड़ी संख्या में क‍िसान नेता पहुंचे. ज‍िसमें भारतीय क‍िसान यून‍ियन के राकेश ट‍िकैत, नरेश ट‍िकैत के साथ ही संयुक्त क‍िसान मोर्चे के भी कई पदाध‍िकार‍ियों ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शनकारी पहलवानों का समर्थन क‍िया.देश की बेट‍ियों के सम्मान के ल‍िए क‍िसान नेताओं की ये संजीदगी काब‍िले-ए-तारीफ रही, लेक‍िन इस पूरी कवायद पर जंतर-मंतर से सामने आने ये जानकारी सवाल उठाती है, जब कहा जाता है क‍ि अब क‍िसान संगठन, खाप पंचायतों के प्रत‍िन‍िधि‍ म‍िलकर पहलवानों के आंदोलन का रोड मैप तय करेंगे. यहां ये सवाल है क‍ि क्या क‍िसान नेता नैति‍क समर्थन से प्रदर्शनकारी पहलवानों का साथ नहीं दे सकते थे. प्रदर्शन का ह‍ि‍स्सा बनने के मायने क्या हैं.         

आंदोलन से क‍िसान स्वतंत्र इकाई बना, अब पर‍िवार का सहारा क्यों  

पहलवानों के प्रदर्शन का ह‍िस्सा बनने के प्रयास को क‍िसान संगठन जायज ठहरा रहे हैं. एक तरफ क‍िसान नेता इसे बेट‍ियों के इंसाफ की लड़ाई बता रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ पहलवानों को क‍िसानों का बच्चा बता कर, पहलवानों के प्रदर्शन को क‍िसान पर‍िवारों का प्रदर्शन बताया जा रहा है. बेशक बेटि‍यों के सम्मान और उन्हें इंसाफ द‍िलाने के ल‍िए क‍िसी भी तरह की लड़ाई जायज है, लेक‍िन, जब एक तरफ न‍िजी स्तर पर इस आंदोलन का ह‍िस्सा बन कर भी ये लड़ाई लड़ी जा सकती है तो उस वक्त क‍िसान संगठनों के बैनर तले क‍िसान नेताओं का प्रदर्शन में शाम‍िल होना समझ से परे हैं. 

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इस मामले को व‍िस्तार से समझने की जरूरत है. असल में क‍िसान नेता खुद स्वीकारते हैं क‍ि क‍िसानों की पर‍ेशान‍ियों पर आजादी के बाद से अब तक इस वजह से काम नहीं हो पाया है क्योंक‍ि क‍िसान राजनीत‍िक तौर पर अब तक एक स्वतंत्र इकाई नहीं बन सका. क‍िसान नेता खुद ये तर्क देते हैं क‍ि चुनाव के दौरान क‍िसान की अपनी पहचान नहीं होती है बल्क‍ि वह जात‍ि, पर‍िवार और धर्म की पहचान से जाना जाता है. ये बात सच है, लेक‍िन बीते क‍िसान आंदोलन ने देश की राजनीत‍ि में क‍िसानों को एक स्वतंत्र इकाई के तौर पर स्थाप‍ित क‍िया है. नतीजतन, उसके बाद से होने वाले चुनावों के घोषणा पत्र में क‍िसान और क‍िसान से जुड़े मुद्दों ने अपनी वाज‍िब जगह बनाई है. ऐसे समय में फ‍िर पर‍िवार का छतरी के नीचे क‍िसान को लाने का प्रयास समझ से परे नजर आता है.    

इन बातों पर चर्चा क्यों नहीं कर रहे हैं क‍िसान नेता 

जंतर- मंतर पर प्रदर्शन कर रहे पहलवानों के समर्थन में कई क‍िसान नेता खुलकर आए हैं, जो क‍िसी भी ल‍िहाज से गलत नहीं है, लेक‍िन इसी समय क‍िसान नेताओं को दूसरे फ्रंट पर भी आगे द‍िखाई देना चाह‍िए, लेक‍िन वह इस फ्रंट पर सामने आने में असफल रहे हैं. कई राज्यों में फसल बीमा कंपन‍ियों की मनमानी के मामले बीते द‍िनों सामने आए हैं. इसको लेकर कुछ राज्यों में क‍िसान संगठनों ने मोर्चे बंदी की, लेक‍िन क‍िसानों की आवाज बुलंद नहीं हो सकी. दूसरी तरफ सरसों के दाम MSP से नीचे चले रहे हैं तो वहीं राजस्थान जैसे राज्य में सरसों की सरकारी खरीद बेहद धीमी है, लेक‍िन खांटी क‍िसानों की परेशानी से जुड़े इन मुद्दों पर कोई बड़ा क‍िसान नेता अभी तक देशभर में मोर्चा बंदी करने में असफल रहा है. इसी तरह बेमौसम बार‍िश से फसल खराब होने पर क‍िसानों को बोनस द‍िए जाने को लेकर देशभर में एक राय कायम करने में भी क‍िसान नेता असफल साब‍ित हुए हैं. 

हालांक‍ि संयुक्त क‍िसान मोर्चा ने खेती-क‍िसानी से जुड़े मुद्दों को लेकर आंदोलन की रूपरेखा तय की है, लेक‍िन आंदोलन की उस रणनीत‍ि में सफलता का रास्ता राजनीत‍िक व‍िरोध के रास्ते न‍िकालने की कोश‍िश की गई है.

क‍िसान संगठनों के बीच हों एकता के प्रयास

जलवायु पर‍िवर्तन के इस दौर में क‍िसानों पर मौसम की मार तो पड़ी ही है. तो वहीं दूसरी तरफ क‍िसानों को फसल का दाम सहीं म‍िले, इसको लेकर भी क‍िसान संगठनों के प्रयास जारी हैं. कि‍सान संगठनों के ये प्रयास अलग-अलग हैं. एक तरफ सरदार वीएम स‍िंह के बैनर तले MSP गारंटी क‍िसान मोर्चा गांव-गांव जाकर मोर्चाबंद करने का प्रयास कर रहा है तो वहीं दूसरी तरफ संयुक्त क‍िसान मोर्चा ने अलग से आंदोलन का कार्यक्रम जारी क‍िया है. इस तरह दोनों की संयुक्त क‍िसान मोर्चा से अलग हुए कई गुट अपनी जमीन वापि‍स तलाश रहे हैं. इस पूरी कवायद में अगर कुछ पीछे छुट रहा है तो वह क‍िसान ह‍ित में क‍िसान संगठनों की एकता के प्रयास... 

आंदोलन में थके हुए नेता और गुमराह क‍िसान  

पहलवानों के समर्थन में कि‍सान नेताओं का समर्थन समझ आता है, लेक‍िन सवाल ये ही है क्या ऐसे समर्थन एक साधारण क‍िसान को भावानात्मक तौर पर गुमराह तो नहीं कर रहे हैं. इस मामले को लेकर राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के पदाध‍िकारी अद‍ित चौधरी कहते हैं क‍ि द‍िल्ली बॉर्डर पर हुए क‍िसान आंदोलन के बाद से कई क‍िसान नेता अपना अस्त‍ित्व तलाश रहे हैं. उन्होंने आगे कहा क‍ि क‍िसान आंदोलन ने कई क‍िसान नेताओं को पहचान दी है. इसके बाद से वह अपनी पहचान को बड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं, लेक‍िन द‍िल्ली बॉर्डर से लौटने के बाद आम क‍िसानों का उन पर व‍िश्वास नहीं है. ऐसे में कई क‍िसान नेता कई प्रदर्शनों में शाम‍िल होकर अपना अस्त‍िव तलाश रहे हैं. ख‍िलाड़ि‍यों और क‍िसान मुद्दों से क‍िसी को मतलब नहीं है.अद‍ित‍ आगे कहते हैं क‍ि सरकार को चाह‍िए क‍ि वह पहलवानों की बात को ठीक से सुने और उनके मुद्दे को सुलझाए.      

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