
किसान तक के माधव शर्मा को एक्सीलेंट एग्री-जर्नलिज्म अवार्ड से नवाजा गया है. सोसाइटी ऑफ एक्सटेंशन एजुकेशन,आगरा की ओर से जयपुर स्थित राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान कैंपस में आयोजित कांफ्रेस में यह अवॉर्ड दिया गया. तीन दिवसीय पहली अंतर्राष्ट्रीय एक्टेंशन एजुकेशन में आईसीएआर और अन्य संस्थाएं भी भागीदार हैं. माधव को यह अवॉर्ड पत्रकारिता के जरिए ‘राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में खेती की नई तकनीकियों को पहुंचाने’ में सहयोग के लिए दिया गया है. इस अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में देश-विदेश के कई कृषि वैज्ञानिक, स्टूडेंट्स और प्रोफेसर्स ने हिस्सा लिया है. इस मौके पर श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बलराज सिंह ने कहा कि राजस्थान की पहचान अब सिर्फ रेगिस्तान नहीं रही है. आधुनिक कृषि तकनीक के विकास, प्रसार और किसानों की मेहनत से बालू के धोरे उत्पादक बन चुके हैं.
चाहे बात अनार उत्पादन की हो या फिर जीरा, इसबगोल, अरण्डी, बाजरा उत्पादन की. पश्चिमी राजस्थान के जिले गोल्ड मांइस बन चुके हैं. इसके चलते साल दर साल कृषि निर्यात का आंकड़ा बढ़ रहा है.
कांग्रेस के पहले दिन विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को बेहतरीन काम के लिए अवॉर्ड दिए गए. समारोह में एसकेएनएयू, जोबनेर के कुलपति डॉ. बलराज सिंह, को फेलो अवार्ड से सम्मानित किया गया. वहीं, प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बिजेन्द्र सिंह राजावत को बेस्ट एक्सटेंशन प्रोफेशनल अवार्ड, डॉ. पीएन कल्ला को लाइफटाइम अचींवमेंट अवार्ड, डीआरएमआर, भरतपुर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार शर्मा को ट्रीबल एम्पावरमेंट एक्सीलेंस अवार्ड और पत्रकार पीयूष शर्मा को रूरल जर्नलिज्म अवार्ड से सम्मानित किया गया.
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डॉ. बलराज ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को नए रिसर्च रोडमैप के साथ कार्य करने की जरूरत है. तभी हम वर्ष 2050 की बढ़ती खाद्य जरूरतों की पूर्ति कर पाएंगे. सीमित संसाधन और भूजल के समुचित उपयोग के चलते राजस्थान अपने साथ-साथ दिल्ली, पंजाब, हरियाणा सहित दूसरे राज्यों की सब्जी की जरूरतों भी पूरा कर रहा है. कद्दूवर्गीय फसल, सरसों, बाजरा, दुध, अश्वगंधा, जीरा, ईसबगोल के उत्पादन में राजस्थान देश में अग्रणी है.
कार्यक्रम के अध्यक्ष पंत नगर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एम. एस. चौहान ने कहा कि लैब टू लैण्ड प्रोग्राम के काफी सकारात्मक परिणाम कृषि क्षेत्र में देखने को मिल रहे हैं. लेकिन अब भी कृषि तकनीक और किसान के मध्य काफी अंतर है. इसका बड़ा कारण समय पर किसानों को तकनीक की जानकारी नहीं मिल पाना है. कृषि वैज्ञानिकों को इस दिशा में चिंतन करने की जरूरत है.
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उन्होंने कहा कि तकनीक प्रसार के लिए विभिन्न सोशियल और ऑफिशियन प्लेटफार्म का उपयोग करने पर जोर दिया जाना है. जब तक किसान की जेब में पैसा नहीं आएगा, तब तक किसान नई तकनीक नहीं अपना सकेगा. उन्होंने दावा किया कि कृषि तकनीक को खेतों तक पहुचाने मात्र से ही कृषि उत्पादन में 20-25 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है.
कार्यक्रम में कृषि विश्वविद्यालय बेंगलुरू के डॉ. एस वी सुरेशा, उतरबंगा कृषि विश्वविद्यालय कूचबिहार के पूर्व कुलपति डॉ. देबाव्रत वासु, विधानचंद राय कृषि विश्वविद्यालय नादिया के पूर्व कुलपति डॉ. मानसमोहन अधिकारी शामिल हुए. इसके अलावा बांग्लादेश के डॉ. मोहम्मद बशीर अहमद, डॉ. रूहल अमीन, डॉ. एएस पंवार, डॉ. लोकेश गुप्ता, डॉ. रविन्द्र कौर, धालीवाल सहित देश-विदेश के 400 से ज्यादा कृषि वैज्ञानिक मौजूद रहे.
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