बाजार से लेकर किचन तक, ग्लूटेन आज विलेन बना हुआ है. इसे हानिकारक बताकर मल्टीग्रेन आटे को सेहत का हीरो बताया जा रहा है. लेकिन क्या वाकई इस बात में दम है कि ग्लूटेन स्वास्थ्य के लिए हानिकार है और इसे भोजन में लेने से परहेज करना चाहिए? इस पर बहस को आगे बढ़ाएं उससे पहले जान लेना चाहिए कि ग्लूटेन क्या है और क्या करता है. यह भी जानेंगे कि इसके पीछे क्या भ्रांतियां फैली हैं.
ग्लूटेन एक तरह का प्रोटीन है जो कई तरह के अनाजों जैसे गेहूं, राई, जौ आदि में पाया जाता है. ग्लूटेन की मौजूदगी जानने के लिए आटे को देखें जब उसे गूंदा जाता है. आटा थोड़ा चिपचिपा दिखता है तो उसका कारण यही ग्लूटेन है. यही ग्लूटेन है जो रोटी को फूलने में मदद करता है. जिस आटे की रोटी कम फूल रही है, समझ लें उसमें ग्लूटेन कम है. मल्टीग्रेन आटे का इस्तेमाल करने वाले लोग कम फूली हुई रोटी को अच्छा मान सकते हैं क्योंकि उन्हें इसमें ग्लूटेन की कम मात्रा दिखती है. लेकिन एक्सपर्ट के लिहाज से यह सेहत के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि ग्लूटेन के कई फायदे हैं. जैसे यह मोटापे को कंट्रोल करता है, टाइप 2 डाइबिटीज को रोकता है, मेटाबॉलिज्म में सुधार कर पाचन को बढ़ाता है, पुरानी सूजन को कम करता है. आदि आदि.
ये तो हुई फायदे की बात. मगर ग्लूटेन को लेकर कुछ भ्रांतियां भी हैं जिसे लेकर इसे विलेन बनाया गया है. ग्लूटेन को हानिकारक बताते हुए इसे खाने से मना किया जा रहा है. दरअसल, कुछ लोगों में सीलिएक रोग या ग्लूटेन के प्रति एलर्जी होती है जिनके लिए यह हानिकारक होता है. ऐसे लोग जब ग्लूटेन वाला आटा खाते हैं तो उन्हें पेट फूलने, थकान और सिरदर्द जैसी समस्या होती है. लेकिन यह समस्या इतनी विकराल नहीं होती कि ग्लूटेन को बिल्कुल खाने से ही परहेज कर दिया जाए. इसके बारे में देश के जानेमाने कृषि वैज्ञानिक ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने 'किसान तक' से खास बातचीत में बताया है. आइए उनकी बातें जान लेते हैं.
आम लोग गेहूं का सेवन ही इसीलिए करते हैं क्योंकि उन्हें ग्लूटेन चाहिए होता है. शरीर को उसकी जरूरत होती है. ग्लूटेन एक विशेष प्रोटीन है, लेकिन उसके खिलाफ एक मिथ्या प्रचार किया गया है. एक वेस्टर्न लॉबी है जो भारत के गेहूं के उत्पादन और निर्यात को अस्थिर करना चाहती है. उस लॉबी ने यह बात फैलाई है कि ग्लूटेन से एलर्जी होती है. भारत में 150 करोड़ की आबादी है जिसमें 0.5-0.8 परसेंट लोगों में ऐसी शिकायत हो सकती है जिसे सीलिएक डिजीज भी कहते हैं जिस पर एम्स, दिल्ली रिसर्च भी कर रहा है.
ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने आगे कहा, सीलिएक डिजीज के बारे में बहुत लोगों को पता नहीं है कि किसी किसी व्यक्ति को गेहूं खाने से पेट में जो दर्द होता है, उसके लिए गेहूं ही जिम्मेदार नहीं है. इसके पीछे सीलिएक इनफ्लेमट्री सिंड्रोम हो सकता है जिससे लोगों को दर्द होता है. लेकिन 150 करोड़ लोगों में 0.5 या 0.8 परसेंट हिस्से से अंदाजा लगा सकते हैं कि इस श्रेणी में कितने मामूली लोग हैं. ग्रामीण पृष्ठभूमि में एक बात अक्सर देखी जाती रही है कि जब भी गेहूं पीसने के लिए जाता है तो माताएं और बहनें गेहूं को धो कर रखती हैं. इसके पीछे वजह है गेहूं को भीगोने से ग्लूटेन से होने वाली एलर्जी कम हो जाती है.
ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने कहा, सुपरमार्केट में जाएं तो ग्लूटेन फ्री आटे के नाम से बिक्री की जाती है. लोगों को जान लेना चाहिए कि ग्लूटेन केवल गेहूं में ही पाया जाता है, फिर किस हिसाब से ग्लूटेन फ्री आटा कहा जाता है? शहरी आबादी को पता ही नहीं है कि ग्लूटेन क्या होता है, कहां पाया जाता है और इसके क्या फायदे हैं. ग्लूटेन फ्री के नाम पर दुनिया खींची चली जा रही है. ग्लूटेन एक संवर्धित प्रोटीन है जो शरीर को बनाने में मददगार है, खासकर बच्चों और जवान में. जो लोग शाकाहारी हैं, जो मांस मछली नहीं खाते हैं, उनके लिए प्रोटीन का सोर्स या तो दाल है या गेहूं क्योंकि चावल में इतना प्रोटीन नहीं होता.
चावल में 6 परसेंट प्रोटीन होता है जबकि किसी भी गेहूं में प्रोटीन का बेंचमार्क 13 परसेंट है. इससे प्रोटीन की मात्रा कम होती तो वह वैरायटी खेती के लिए रिलीज नहीं होगी. लोगों को भ्रम है कि दाल से प्रोटीन की जरूरत पूरी होती है जबकि वह गेहूं से पूरी होती है. अगर हम गेहूं नहीं खाएंगे तो शरीर में प्रोटीन की कमी हो जाएगी. अगर हम शाकाहारी हैं तो शरीर कमजोर हो जाएगा. इसलिए कुपोषण से उबरने में गेहूं का सबसे बड़ा योगदान है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today