Fortified Food: भरपूर उत्पादन, फिर भी पोषण की कमी, फोर्टिफाइड अनाज में कहां छिपा है भारतीय मिलों के लिए बड़ा मौका?

Fortified Food: भरपूर उत्पादन, फिर भी पोषण की कमी, फोर्टिफाइड अनाज में कहां छिपा है भारतीय मिलों के लिए बड़ा मौका?

भारत के मिलर्स के पास आज पोषण सुधार के साथ-साथ बड़े आर्थिक लाभ का अवसर है. अगर वे गुणवत्ता, ब्रांडिंग और साझेदारी पर सही निवेश करें, तो यह सेक्टर न सिर्फ किसानों और उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद होगा, बल्कि देश की खाद्य प्रणाली को भी भविष्य के लिए मजबूत बनाएगा.

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भरपूर उत्पादन, फिर भी पोषण की कमी, फोर्टिफाइड अनाज में कहां छिपा भारतीय मिलों के लिए सोना?फोर्टिफाइड चावल और आटे की बढ़ती मांग

भारत की खाद्य प्रणाली आज एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है. एक तरफ देश में अनाज का रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है, तो दूसरी तरफ बड़ी आबादी अब भी पोषण की कमी, खासकर सूक्ष्म पोषक तत्वों (माइक्रोन्यूट्रिएंट्स) की कमी से जूझ रही है. यही विरोधाभास एक बड़ा सामाजिक अवसर होने के साथ-साथ एक मजबूत व्यावसायिक संभावना भी पेश करता है. वर्ष 2024-25 में भारत ने चावल और गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन किया. चावल का उत्पादन करीब 150 मिलियन टन और गेहूं का उत्पादन लगभग 118 मिलियन टन रहा. कुल खाद्यान्न उत्पादन 357 मिलियन टन से ज्यादा रहा. इसके बावजूद देश में आयरन, फोलिक एसिड और अन्य जरूरी पोषक तत्वों की कमी एक गंभीर समस्या बनी हई है.

इसका एक बड़ा समाधान फोर्टिफाइड अनाज में छिपा है. चावल और गेहूं रोजमर्रा के भोजन का हिस्सा हैं और इन्हें प्रोसेस करने वाले मिलर्स (चावल व आटा मिलें) उपभोक्ताओं तक पहुंचने की अंतिम कड़ी होते हैं. यही वजह है कि मिलर्स कम लागत में बड़े स्तर पर फोर्टिफिकेशन कर सामाजिक और आर्थिक दोनों तरह का लाभ कमा सकते हैं.

फोर्टिफाइड चावल और आटे की बढ़ती मांग

दरअसल, भारत में लगभग 100 मिलियन टन चावल देश के भीतर खपत होता है. इसमें से 40–50 मिलियन टन सरकारी योजनाओं जैसे पीडीएस, मिड-डे मील और पोषण कार्यक्रमों के तहत वितरित होता है, जहां अब फोर्टिफाइड चावल अनिवार्य हो चुका है. इसके अलावा 50–60 मिलियन टन चावल खुले बाजार में बिकता है. पैकेज्ड चावल का बाजार तेजी से बढ़ रहा है और इसकी वैल्यू करीब 14 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुकी है. वहीं गेहूं के मामले में लगभग पूरा उत्पादन देश में ही खपत होता है. पैकेज्ड आटा बाजार 15–16 मिलियन टन का हो चुका है, जिसकी अनुमानित वैल्यू 82 बिलियन डॉलर है. ऐसे में अगर खुले बाजार के सिर्फ 10–15 फीसदी हिस्से को भी फोर्टिफाइड, वैल्यू-एडेड प्रोडक्ट्स में बदला जाए, तो आने वाले सालों में यह अरबों डॉलर का बाजार बन सकता है.

मिलर्स के लिए सुनहरा मौका

अंग्रेजी अखबार 'बिजनेसलाइन' की एक रिपोर्ट में टेक्नोसर्व इंडिया में सीनियर प्रैक्टिस लीडर और मिलर्स फॉर न्यूट्रिशन एशिया के प्रोग्राम हैड बताते हैं कि फोर्टिफिकेशन मिलर्स के लिए सिर्फ सामाजिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक मजबूत बिजनेस मॉडल भी है. इससे उन्हें बेहतर ब्रांडिंग, प्रीमियम प्रोडक्ट्स और संस्थागत खरीदारों के साथ स्थायी कॉन्ट्रैक्ट्स मिल सकते हैं. यह ESG (पर्यावरण, सामाजिक और गवर्नेंस) लक्ष्यों को पूरा करने का भी एक प्रभावी जरिया है. इस अवसर का पूरा लाभ उठाने के लिए मिलर्स को तीन बातों पर निवेश करना होगा.

  • पहला, आधुनिक तकनीक और क्वालिटी सिस्टम, जिससे पोषक तत्वों की सही मात्रा और फूड सेफ्टी सुनिश्चित हो सके.
  • दूसरा, मजबूत व्यावसायिक रणनीति, जिसमें ब्रांडिंग, पैकेजिंग और संस्थागत टेंडरिंग की क्षमता हो.
  • तीसरा, साझेदारी, जिसमें प्रीमिक्स सप्लायर्स, टेस्टिंग लैब्स और सरकारी एजेंसियों के साथ सहयोग शामिल हो.

सरकारी योजनाओं में फोर्टिफाइड चावल की अनिवार्यता ने इस सेक्टर को मजबूती दी है. इसके अलावा ‘Millers for Nutrition’ जैसे कार्यक्रम मिलर्स को तकनीकी और व्यावसायिक सहयोग देकर बाजार में नए अवसर खोल रहे हैं. भारत में अब तक 30 से ज्यादा फोर्टिफाइड चावल और आटे के ब्रांड लॉन्च हो चुके हैं.

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