लौकी एक कद्दू वर्गीय फसल है, जिसकी खेती साल भर में तीन बार की जा सकती है. लौकी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद और पोषक तत्वों से भरपूर होती है. इसमें 90 फीसदी से अधिक पानी होता है, जो इसे हाइड्रेटिंग भोजन का विकल्प बनाता है. लौकी का वानस्पतिक नाम लेजनारिया सिसरेरिया है. लौकी को लउका, कद्दू या घीया भी कहा जाता है. वहीं लौकी का इस्तेमाल सब्जी बनाने के अलावा मिठाई, रायता, आचार, कोफ्ता, खीर आदि बनाने में किया जाता है.
इसकी खेती जायद, खरीफ और रबी तीनों सीजन में की जाती है. इसको विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में आसानी से उगाया जा सकता है. साथ ही आकार के अनुसार लौकी की गोल और लंबी दो प्रमुख किस्में होती हैं. लेकिन इन सभी जानकारी के अलावा आपको ये भी जानना चाहिए कि आखिर लौकी का कनेक्शन अफ्रीका से कैसे है और इसे अंग्रेजी में बॉटल गार्ड क्यों कहते हैं.
बात करें लौकी के अफ्रीका कनेक्शन की तो लौकी का उत्पत्ति स्थान अफ्रीका को माना जाता है. लौकी से मानव भोजन का नाता बहुत पुराना है. मेक्सिको की गुफाओं (ईसा से 7000 से 5500 वर्ष पूर्व) और मिस्र के पुराने पिरामिडों (ईसा से 3500 से 3300 वर्ष पूर्व) में पाए जाने के साक्ष्य मिलते हैं. साथ ही लोकी को अंग्रेजी मैं बॉटल गार्ड इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका आकार बोतल के जैसा होता है. यही वजह है कि इसे अंग्रेजी में बॉटल गार्ड कहा जाता है.
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लंबी लौकी:- लंबी लौकी हरे रंग की होती है. इसका आकार बोतल की तरह होने के कारण इसे अंग्रेज़ी में बोटल गार्ड कहते हैं. लौकी के अंदर एंटी बैक्टीरियल गुण पाया जाता है जो त्वचा को बैक्टीरिया से बचाने का काम करता है. इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण भी मौजूद होता है जो चेहरे को चमकदार बनाने का काम करता है
गोल लौकी:- गोल लौकी हरे और पीले रंग की होती है. इस लौकी के फूल सफेद और पत्ते बड़े-बड़े होते हैं. देसी और परंपरागत गोल लौकी पौष्टिक होने के साथ अधिक उत्पादन देती है. टिकाऊ होने के कारण इसका वजन अधिक होता है. साथ ही देसी बीज होने के कारण इसमें रासायनिक खाद नहीं दिया जाता है.
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