Rice Variety: बीएचयू के रिसर्चर्स ने चावल की बेहद पुरानी किस्‍म ‘आदम चीनी’ को किया फिर से जिंदा 

Rice Variety: बीएचयू के रिसर्चर्स ने चावल की बेहद पुरानी किस्‍म ‘आदम चीनी’ को किया फिर से जिंदा 

आदम चीनी चावल, जो अपने चीनी जैसे दाने, अच्छी खुशबू और पकाने में बढ़िया क्वालिटी के लिए जाना जाता है, लंबे समय से अपने लंबे कद और धीरे पकने की वजह से मुश्किलों का सामना कर रहा है. पहले, इसकी ऊंचाई 165 सेमी तक होती थी. इससे खराब मौसम में यह आसानी से झुक जाता था, जिससे इसका टेक्सचर और पैदावार खराब हो जाती थी.

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Rice Variety: बीएचयू के रिसर्चर्स ने चावल की बेहद पुरानी किस्‍म ‘आदम चीनी’ को किया फिर से जिंदा BHU के वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई

'आदमचीनी' काले चावल की पुरानी किस्‍म जिसे लेकर अब उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों के किसान फिर से उत्‍साहित नजर आ रहे हैं. उन्‍हें अब खुशबूदार काले चावल की इस किस्म के दोबारा आने से अपने सपनों को पंख मिलते हुए नजर आ रहे हैं. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) के कृषि वैज्ञानिकों की अगुवाई में इस पहल ने हाल ही में इस किस्म की सहनशीलता और पैदावार को बेहतर बनाने में बड़ी सफलता हासिल की है. 

क्‍यों मशहूर है यह किस्‍म 

आदम चीनी चावल, जो अपने चीनी जैसे दाने, अच्छी खुशबू और पकाने में बढ़िया क्वालिटी के लिए जाना जाता है, लंबे समय से अपने लंबे कद और धीरे पकने की वजह से मुश्किलों का सामना कर रहा है. पहले, इसकी ऊंचाई 165 सेमी तक होती थी. इससे खराब मौसम में यह आसानी से झुक जाता था, जिससे इसका टेक्सचर और पैदावार खराब हो जाती थी. इसके अलावा, चावल के पकने का लंबा समय (155 दिन) और कम पैदावार (20-23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) ने किसानों को उत्पादन बढ़ाने से रोक दिया. बाजार में इसकी मांग बहुत ज्‍यादा थी, खासतौर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से. 

BHU के रिसर्चर्स की कड़ी मेहनत 

न्‍यू इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, BHU के जेनेटिक्स और प्लांट ब्रीडिंग डिपार्टमेंट के प्रोफेसर श्रवण कुमार सिंह और उनकी टीम ने 14 साल से ज्‍यादा समय तक आदमचीनी की खास क्वालिटी से समझौता किए बिना उसे बेहतर बनाने के तरीकों पर रिसर्च की है. उन्‍हें यह कामयाबी म्यूटेजेनेसिस के इस्तेमाल से मिली. यह एक ऐसी तकनीक है जिसने चावल की ऊंचाई को कम किया, उसके पकने का समय कम किया और साथ ही साथ पैदावार को भी बढ़ाने में कामयाबी दिलाई. साथ ही उसकी खास खुशबू और दाने का टाइप भी बरकरार रखा. 

अब हो सकेगा इसका ज्‍यादा उत्‍पादन 

रिसर्च टीम ने आदम चीनी की 23 नई म्यूटेंट लाइनें बनाई जिनमें कम ऊंचाई वाली किस्में (म्यूटेंट-14 के लिए 105 सेमी), जल्दी पकने वाली किस्में (म्यूटेंट-19 के लिए 120 दिन), और ज्‍यादा पैदावार वाली किस्में (म्यूटेंट 14, 15, 19, और 20 के लिए 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) शामिल हैं. इन सुधारों ने चावल को बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए ज्‍यादा सही बना दिया है. साथ ही इसकी वही पुरानी खुशबू भी कायम है.

इसकी खूशबू को बासमती से भी ज्‍यादा बेहतर बताया जाता है. विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं की पूर्वी तलहटी में रहने वाले किसान अब इस नई 'खोज' से खासे उत्‍साहित हैं. चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र और वाराणसी के कुछ हिस्सों में इस किस्‍म की खेती की जाती है. राज्य सरकार की तरफ से भी आदमचीनी को 'विंध्य ब्लैक राइस' का नाम दिया गया है. 

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