भारत औषधीय पौधों के मामले में बहुत धनी है. यहां औषधीय पौधों की करीब 7000 प्रजातियां पाई जाती हैं. हिमालयी क्षेत्र ऐसे पौधों का बड़ा स्रोत है. इन्हीं पौधों में से एक है भंगजीरा, जिसे स्थानीय भाषा में भोजंग के नाम से भी जाना जाता है. इसके बीजों और पत्तियों का उपयोग औषधि बनाने के लिए किया जाता है. इसके बीजों से निकलने वाला तेल ओमेगा-3 और ओमेगा-6 जैसे बेहद जरूरी फैटी एसिड से भरपूर होता है. इसलिए यह हार्ट के लिए फायदेमंद होता है. भंगजीरा के बीज और पत्तियां कई आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं. कृषि वैज्ञानिक विपिन सती और दुर्गेश पंत ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक रिपोर्ट में लिखा है कि हिमालयी क्षेत्र में मछली तेल की कमी के चलते भंगजीरा तेल एक सस्ते और उपलब्ध विकल्प के रूप में उभरा है. यह हृदय रोगों और गठिया, सूजन जैसी समस्याओं की रोकथाम में मददगार बताया गया है.
भंगजीरा का तेल पूरी तरह शाकाहारी है और इसमें वे सभी तत्व है जो कॉड लीवर ऑयल में पाए जाते हैं. जो लोग मांसाहार नहीं करते वे भंगजीरा के तेल का उपयोग कर सकते हैं. भंगजीरा का प्रयोग कॉड लीवर ऑयल की तुलना में अधिक सुरक्षित है, क्योंकि इसमें तेलों से हानिकारक तत्व जैसे पारा आदि के मानव शरीर में पहुंचने की आशंका नहीं होती. भंगजीरा के पौधों से एक अलग ही खुशबू भी आती है. यह पौधा न केवल स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हो सकता है. बशर्ते सरकार दवा कंपनियों को इस दिशा में पहल करने को निर्देश दे. भंगजीरे की खेती से रोजगार के बेहतर अवसर प्राप्त हो सकते हैं. किसानों को भी फायदा होगा.
सरकार ने भंगजीरा के व्यावसायिक उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं. इसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं. इसलिए सरकार इसे प्रमोट कर रही है. वैज्ञानिकों के रिसर्च से यह संभावना बढ़ी है कि भंगजीरा का कमर्शियल उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जा सकेगा. उत्तराखंड के वैज्ञानिक संस्थान भंगजीरा पर रिसर्च कर रहे हैं. इन्होंनें शोध में पाया कि इन पौधों में ओमेगा-3 फैटी एसिड प्रचुर मात्रा में होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी रहे हैं. वैज्ञानिक रिसर्च के जरिए भंगजीरा का उत्पादन बढ़ाने के नए तरीके खोजे जा रहे हैं, जिससे यह पौधा और भी अधिक लाभकारी हो सकता है.
इस पौधे से अच्छी सुगंध भी आती है. यह उत्तराखंड की पारंपरिक कृषि और खानपान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसका उपयोग पीढ़ियों से पारंपरिक चिकित्सा और आहार में किया जा रहा है. इसके बीजों से बनाई गई चटनी और अन्य व्यंजन स्थानीय पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है. इस पौधे की पत्तियां बड़ी ही कोमल और मुलायम होती हैं. यह पौधा बहुत सुंदर दिखता है और यह सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. यह पौधा न केवल स्थानीय लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण पोषण स्रोत है, बल्कि इसकी खेती और उपयोग के आर्थिक लाभ भी हैं.
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