Aravalli Hills Controversy: अरावली पर छिड़े विवाद का क्या होगा अंजाम, जानें हर सवाल का जवाब

Aravalli Hills Controversy: अरावली पर छिड़े विवाद का क्या होगा अंजाम, जानें हर सवाल का जवाब

अरावली पहाड़ियों के खराब होने से खेती पर गंभीर नतीजे हो सकते हैं. बारिश का पानी ज़मीन में सोखा नहीं जाएगा, जिससे ग्राउंडवाटर लेवल कम हो जाएगा. इससे खेतों में पानी की कमी होगी और फसलों की पैदावार कम हो जाएगी. मौसम के पैटर्न में गड़बड़ी से सूखा और लू भी बढ़ सकती है, जिससे किसानों की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी.

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Aravalli Hills Controversy: अरावली पर छिड़े विवाद का क्या होगा अंजाम, जानें हर सवाल का जवाबअरावली का विवाद

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से अरावली पहाड़ियों को लेकर चर्चा फिर से शुरू हो गई है. कोर्ट ने कहा है कि 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों को अपने आप जंगल नहीं माना जा सकता. आसान शब्दों में कहें तो अब केवल 100 मीटर से ज्यादा ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली माना जाएगा. इस फैसले के बाद लोगों का ध्यान फिर से अरावली पहाड़ियों पर गया है. कई लोग इस फैसले से नाराज हैं और इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं. आपको बता दें कि अरावली पहाड़ियां दिल्ली से शुरू होकर हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक फैली हुई हैं और उत्तर भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती हैं. ऐसे में आइए जानते हैं अरावली से जुड़े कई जरूरी सवालों के जवाब.

क्या है अरावली विवाद?

अरावली पहाड़ियों की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि अरावली क्षेत्र में 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों को जंगल नहीं माना जाएगा. यानी 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले पहाड़ अरावली के दायरे में नहीं आएंगे. इस फैसले के बाद पर्यावरण विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने विरोध शुरू कर दिया है. सोशल मीडिया पर युवा ‘सेव अरावली’ अभियान चला रहे हैं. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में करीब 10 हजार पहाड़ियों को अरावली का हिस्सा बताया गया था और खनन पर रोक की सिफारिश की गई थी. इसके खिलाफ राजस्थान सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची और कहा कि ऐसा होने पर राज्य की ज्यादातर खनन गतिविधियां बंद हो जाएंगी. दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर नया कानून जरूरी है, तब तक पुरानी व्यवस्था लागू रहेगी.

अरावली में 100 मीटर का विवाद क्या है?

आसान शब्दों में अगर आपको बताएं तो, अब सिर्फ 100 मीटर या उससे ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली माना जाएगा. 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों को न तो अरावली माना जाएगा और न ही जंगल. इसका विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि आरोप है कि कुछ कंपनियां खनन के लिए ऊंची पहाड़ियों की ऊंचाई कागजों में कम दिखा रही हैं, ताकि उन्हें माइनिंग की अनुमति मिल सके.

अरावली पहाड़ क्यों जरूरी हैं?

अरावली पहाड़ियां उत्तर भारत के लिए बहुत अहम हैं. इनका फैलाव गुजरात से शुरू होकर राजस्थान और हरियाणा होते हुए दिल्ली तक जाता है. गुजरात में माउंट आबू, अरावली का प्रसिद्ध हिस्सा है. राजस्थान में अरावली सबसे ज्यादा फैली हुई है और उदयपुर, अजमेर, जयपुर जैसे कई जिलों से होकर गुजरती है. यहीं अरावली की सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर भी है. हरियाणा में ये पहाड़ियां गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे इलाकों तक फैली हैं. कुल मिलाकर, अरावली चार राज्यों में फैली है और इसे बचाने के लिए कई प्रयास किए जाते हैं.

अगर अरावली खतरे में पड़ी तो क्या होगा असर?

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अरावली पहाड़ियों को नुकसान हुआ, तो इसका असर दूर-दूर तक दिखेगा. गर्मी और तापमान बढ़ सकता है, पानी की कमी गहरी हो सकती है और हवा ज्यादा प्रदूषित हो जाएगी. इससे सांस की बीमारियां बढ़ेंगी और लोगों को रहने की जगह छोड़नी पड़ सकती है. खासतौर पर दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण और पानी की समस्या और भी गंभीर हो सकती है.

खेती-किसानी पर क्या असर पड़ेगा?

अगर अरावली पहाड़ियां कमजोर हुईं, तो खेती पर सीधा असर पड़ेगा. बारिश का पानी जमीन में कम जाएगा, जिससे भूजल स्तर नीचे चला जाएगा. खेतों को पानी मिलना मुश्किल होगा और सूखा बढ़ सकता है. मिट्टी की नमी और उपजाऊ ताकत घटेगी, जिससे फसल की पैदावार कम होगी. साथ ही मौसम का असंतुलन बढ़ेगा, जिससे किसानों की परेशानियां और बढ़ सकती हैं.

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