
किसानों के लिए ऐसी फसल खोजना हमेशा मुश्किल होता है जो कम खर्च में तैयार हो, हर मौसम में दिक्कत न दे और सालों-साल कमाई देती रहे. लेकिन आंवला उन चुनिंदा फसलों में से एक है जिसे सच में किसानों का एटीएम कहा जा सकता है. इसका कारण बिल्कुल साफ है, एक बार पौधा लगाने के बाद कई साल तक लगातार कमाई होती रहती है और खर्च बेहद कम आता है.आंवला खेती कम लागत में ज्यादा मुनाफा देती है. पौधे की देखभाल पर ज्यादा खर्च नहीं आता. पानी की जरूरत भी कम होती है और खाद-खरपतवार पर भी बहुत खर्च नहीं उठाना पड़ता. जैसे-जैसे पौधा मजबूत होता है, उसकी देखभाल और आसान हो जाती है. बस साल में दो बार हल्की-फुलकी देखभाल कर दी जाए तो पेड़ शानदार फल देता है.
आंवले की सबसे खास बात यह है कि यह लंबे समय तक कमाई देता है. आंवला का पेड़ 40 से 50 साल तक लगातार फल देता है. यानी एक बार लगाया और दशकों तक बिना ज्यादा झंझट के आय मिलती रहती है. यह बात इसे किसानों के लिए और भी आकर्षक बना देती है. मौसम के लिहाज़ से भी आंवला बेहद मजबूत फसल है. यह गर्मी, सर्दी और सूखा—तीनों परिस्थितियों में भी अच्छी तरह टिक जाता है. इसलिए इसे सबसे सुरक्षित फसलों में गिना जाता है.
बाजार में आंवले की मांग साल भर बनी रहती है. आंवला चाहे कच्चा हो या प्रोसेस्ड, हर रूप में बिकता है. जूस, मुरब्बा, पाउडर, कैंडी, अचार और आयुर्वेदिक दवाओं में इसका भारी उपयोग होता है. देश ही नहीं, विदेशों में भी इसकी अच्छी खपत है, जिस वजह से किसानों को हमेशा अच्छा दाम मिलता है. खेती शुरू करने के लिए सही किस्म चुनना जरूरी है. खेती करने वाले आम तौर पर NA-7, NA-6 और चकैया जैसी किस्मों को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि ये किस्में ज्यादा उपज देती हैं और रोग भी कम पकड़ती हैं. आंवला लगभग हर तरह की मिट्टी में उग जाता है, हालांकि हल्की दोमट या काली मिट्टी इसके लिए खासतौर पर अच्छी मानी जाती है.
पानी की जरूरत भी बहुत कम होती है, जिससे यह सूखा प्रभावित इलाकों में भी सफल खेती के लिए बढ़िया विकल्प है. आंवला के पौधे आमतौर पर सितंबर से नवंबर के बीच में लगाए जाते हैं. पौधों के बीच लगभग 8×8 मीटर की दूरी रखी जानी चाहिए ताकि पेड़ ठीक से फैल सकें. शुरुआती दो साल हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है. गोबर की खाद या नीम की खली देने से पेड़ अच्छी तरह बढ़ता है. रासायनिक खाद की बहुत जरूरत नहीं पड़ती. पौधे तीसरे या चौथे साल से फल देना शुरू कर देते हैं और करीब आठ से दस साल में उनकी उत्पादन क्षमता चरम पर पहुंच जाती है.
कमाई की बात करें तो एक एकड़ में लगभग 65 से 70 पौधे लगाए जा सकते हैं. एक पेड़ सालाना 40 से 70 किलो तक फल देता है. बाजार में कच्चा आंवला 25 से 60 रुपए किलो तक आसानी से बिक जाता है. इस हिसाब से एक एकड़ में सालाना 1.5 से 2 लाख रुपए तक की कमाई आराम से हो जाती है. अगर किसान प्रोसेसिंग करना शुरू कर दें, जैसे कि आंवला कैंडी, जूस या पाउडर बनाना, तो मुनाफा कई गुना बढ़ जाता है.
आंवला खेती किसानों के लिए इसलिए भी गेम-चेंजर साबित होती है क्योंकि यह कम जोखिम वाली फसल है. इसकी औषधीय और पोषक गुणों के कारण बाजार में मांग हमेशा बनी रहती है. कई राज्यों में सरकारी योजनाओं के तहत पौधों और प्रोसेसिंग यूनिट पर सब्सिडी भी उपलब्ध है. गर्मी और सूखा सहने की क्षमता इसे और अधिक सुरक्षित विकल्प बनाती है. जो किसान स्थिर और लंबी अवधि वाली कमाई का तरीका ढूंढ रहे हैं, उनके लिए आंवला खेती सच में ATM से कम नहीं है. कम खर्च में शुरू होकर यह कई सालों तक लगातार पैसा देती रहती है और बाजार में इसकी डिमांड कभी कम नहीं पड़ती.
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