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अमेरिकी फिल्म ‘द सदर्नर’: बंटाईदार किसान द्वारा अपनी जमीन पर खेती के सपने की मार्मिक दास्तां

अमेरिकी फिल्म ‘द सदर्नर’: बंटाईदार किसान द्वारा अपनी जमीन पर खेती के सपने की मार्मिक दास्तां

जॉर्ज सेशन्स पेरी के उपन्यास ‘होल्ड औटम इन योर हैंड’ पर आधारित ‘द सदर्नर’ की कहानी अमेरिका मे आए मंदी के दौर की याद दिला जाती है. बहरहाल, किसानों के हालात में समय और अर्थव्यवस्था के बदलाव साथ भी कोई खास फर्क नहीं आया है.

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अमेरिका की हॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री एक ऐसी अद्भुत जगह है, जहां दुनिया भर के फ़िल्मकारों को ना सिर्फ एक उम्दा मंच मिला है, बल्कि इस वजह से यह फिल्म उद्योग तमाम देशों के सांस्कृतिक संस्कार को भी आत्मसात कर लेता है. ऐसे ही एक फिल्म निर्देशक थे फ्रांस के ज्यां रेनुआ. रेनुआ ने भारत में भी फिल्म बनाई थी जिसका नाम था ‘द रिवर’. 1941 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब फ्रांस पर हिटलर का कब्जा हो गया तो रेनुआ को अमेरिका में शरण लेनी पड़ी.

अमेरिका का नागरिक बनने के बाद रेनुआ ने वहां फिल्में बनाना शुरू किया. जो पांच फिल्में रेनुआ ने हॉलीवुड में बनाई उनमें से एक थी ‘द सदर्नर’, यानी दक्षिण वासी.फिल्म की पृष्ठभूमि में है, अमेरिका के दक्षिण में स्थित टेक्सास का एक गांव और कहानी है उसी गांव के एक गरीब किसान सैम टकर की.

उपन्यास पर आधारित है फिल्म ‘द सदर्नर’

जॉर्ज सेशन्स पेरी के उपन्यास ‘होल्ड औटम इन योर हैंड’ पर आधारित ‘द सदर्नर’ की कहानी अमेरिका मे आए मंदी के दौर की याद दिला जाती है. बहरहाल, किसानों के हालात में समय और अर्थव्यवस्था के बदलाव साथ भी कोई खास फर्क नहीं आया है. फिल्म की शुरुआत में ही बंटाई पर मेहनत करते किसानों में से एक, सैम टकर के चाचा की मृत्यु हो जाती है और वह अंतिम वक्त में सैम से कहता है कि किसी और के खेत में मेहनत करने की बजाय बेहतर हो कि वह अपने खेत में, अपनी फसल पर मेहनत करे. सैम इस बात को गांठ बांध लेता है.

कपास के किसान का संघर्ष दिखलाती फिल्म

अपनी पत्नी नोना, दादी और दो छोटे बच्चों के साथ वह पट्टे पर ज़मीन लेता है और परिवार सहित उस ज़मीन की तरफ चल निकलता है. यह ज़मीन उजाड़ है, मकान ढह रहा है और पड़ोसी डेवेर्स का रुख दोस्ताना नहीं है. फिर भी यह परिवार मेहनत करता है, उजाड़ मकान को घर का रूप देता है और उजाड़ ज़मीन को खेत का. उधार लेकर खरीदे गए कपास के बीजों को बो कर खेती शुरू की जाती है.

लेकिन गरीबी इतनी है कि रोजाना भोजन जुटाना भी मुश्किल है. यह किसान परिवार खेत के चूहों को मार कर अपनी भूख मिटाता है. फिर बच्चे बीमार पड़ने लगते हैं तो कुछ और पड़ोसी मदद के लिए आगे आते हैं और सैम के बेटे जोट को मौत के मुंह से वापिस खींच लाते हैं. जब खेत में फसल खड़ी होने लगती है तो असमय बारिश फसल बर्बाद कर जाती है. हताश सैम किसानी छोड़ कर पास की ही एक फैक्टरी में नौकरी करने को राज़ी हो जाता है. लेकिन उसकी पत्नी नोना हिम्मत बंधाती है और एक बार फिर सैम अपने खेत की तरफ लौटता है. नोना और सैम अपने खेत को एक बार फिर उम्मीद के साथ जोतते हैं और बीज बोते हैं.

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‘अमेरीकन ड्रीम’ के जज़्बे का भावपूर्ण चित्रण

एक फ्रांसीसी निर्देशक होने के बावजूद रेनुआ ने ‘अमेरीकन ड्रीम’ को सैम के किरदार में प्रभावपूर्ण रूप से दर्शाया कि कैसे एक अकेला व्यक्ति, चाहें कुछ भी हो जाये अपने सपने को साकार करने के अथक प्रयास में जुट जाता है. समाज और राजनीति से इतर एक व्यक्ति का अपने विपरीत हालात और प्रकृति से संघर्ष ही उस समाज की सांस्कृतिक धरोहर को संजोता और संवर्धित करता है. इस अर्थ में यह फिल्म समय और स्थान से परे मनुष्य के निरंतर और अथक प्रयास को भी चित्रित करती है.

रेनुआ अपनी टीम के साथ रचनात्मक मतभेदों के लिए बदनाम थे. इसीलिए मुख्य किरदारों की भूमिका के लिए चुने गए अभिनेताओं ने इस फिल्म से किनारा कर लिया तो आनन-फानन में जेचरी स्कॉट, बैटी फील्ड और बुआलाह बोंडी को चुना गया. चूंकि जेचरी खुद टेक्सस मूल के ही थे इसलिए सैम की भूमिका में वे बिलकुल फिट हो गए. यहां यह बताना ज़रूरी है कि दक्षिण अमेरिका में अंग्रेज़ी बोलने का लहजा आम अमरीकियों से बिलकुल अलग और खास होता है. जेचरी ने इसे सहजता से आत्मसात कर लिया.

फिल्म प्रोड्यूसर को लगा था कि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कारोबार नहीं कर पाएगी इसलिए प्रोड्यूसर की तरफ से भी दखलंदाज़ी कम ही रही. कैलिफोर्निया के कुछ फार्म्स पर फिल्म की शूटिंग की गई और कुल बजट रहा साढ़े सात लाख डॉलर.

बैन के बावजूद हिट साबित हुई

30 अप्रैल 1945 को रिलीज़ हुई इस फिल्म को समीक्षकों की सराहना तो मिली लेकिन टेक्सस में लोगों को किसानों की दुर्दशा और गरीबी दर्शाती यह फिल्म पसंद नहीं आई. टेक्सस के लोगों का मानना था कि उनके इलाके के किसानों की हालत इतनी भी खराब नहीं है. विरोध झेलने पर इस फिल्म को टेक्सस में बैन कर दिया गया. लेकिन कहानी में निहित उम्मीद और किसान के अथक प्रयासों को दिखाने वाली इस फिल्म को अन्य जगहों पर पसंद किया जा रहा था तो इसका सकारात्मक प्रमोशन किया गया. इसलिए बाद में यह बैन हटा दिया गया.

नतीजतन ‘द सदर्नर’ ना सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई बल्कि इसे अनेक श्रेणियों में प्रतिष्ठित ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामित भी किया गया. हालांकि यह कोई भी ऑस्कर पुरस्कार नहीं जीत पायी लेकिन रेनुआ को बेहतरीन निर्देशन के लिए अन्य कई पुरस्कार मिले. अपनी आत्मकथा में रेनुआ ने ‘द सदर्नर’ को अपनी ऐसी फिल्म माना जिससे वे रचनात्मक तौर पर सबसे ज़्यादा संतुष्ट थे. एक किसान के जरिये रेनुआ बहुत कुशलता से उसके परिवेश, आसपास के लोग, और संस्कृति को भी दर्शाते हैं. यहां कोई नायक या विलेन नहीं है, सभी किसान हैं, प्रकृति के साथ बंधे हुए, उससे संघर्ष करते हुए.

आपस में झगड़ते हैं, सस्ते मनोरंजन का मज़ा लेते हैं- लेकिन इस सबके बीच एक अच्छी फसल की उम्मीद कभी नहीं छोडते. यही ‘अमेरीकन ड्रीम’ का सार-तत्व भी है कि चाहे जो हो, मनुष्य को अपने निश्चय को हासिल करने की उम्मीद और कोशिश कभी नहीं छोडनी चाहिए. इसलिए यह फिल्म विशुद्ध अमेरिकी फिल्म होते हुए भी समय और स्थान से परे एक वैश्विक अपील रखती है और हॉलीवुड में किसानों को लेकर बनी कुछ अविस्मरणीय फिल्मों में से एक है.