खेती पर आधारित अमेरिकी की एक रिपोर्ट में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और क्लाइमेट चेंज को लेकर गहरी चिंता जताई गई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि खेती में कार्बन क्रेडिट और कार्बन फुटप्रिंट का सही ढंग से प्रयोग करें तो ग्रीनहाउस गैसों के रिसाव को कम कर सकते हैं. इससे पर्यावरण और जलवायु की सेहत सुधारने में बड़ी मदद मिल सकती है. इसके लिए खेती से जुड़े 5 उपाय बताए गए हैं जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को बेहद कम कर सकते हैं. आइए इन 5 उपायों के बारे में जान लेते हैं.
इन उपायों को जानने से पहले एक नजर रिपोर्ट पर डाल लेते हैं. इस रिपोर्ट को काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी यानी कि CAST ने जारी किया है जिसमें अमेरिकी में ग्रीनहाउस के खतरे और उससे निपटने में खेती के रोल को बताया गया है. इस रिपोर्ट को 26 नामी रिसर्चर ने तैयार किया है. रिपोर्ट की सबसे खास बात ये है कि इसमें खेती को महत्व सबसे अधिक दिया गया है और कहा गया है कि खेती ही क्लाइमेट चेंज की समस्या को सुधार सकती है. रिपोर्ट कहती है कि उत्पादन बढ़ाने के साथ किसानों की कमाई भी बढ़ सकती है.
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जिन 5 उपायों का जिक्र किया गया है उनमें शामिल हैं- सॉइल कार्बन मैनेजमेंट, नाइट्रोजन फर्टिलाइजर ऑप्टिमाइजेशन, सस्टेनेबल एनिमल प्रोडक्शन, नैरोइंग क्रॉप यील्ड गैप्स और एफिशियंट एनर्जी यूज. हिंदी में कहें तो मिट्टी में कार्बन का सही सही प्रबंधन, नाइट्रोजन खादों का समझदारी से इस्तेमाल, पशुओं का सही उत्पादन, फसल पैदावार के अंतर को घटाना और ऊर्जा का सही प्रयोग. ये 5 बातें ऐसी हैं जिनका खेती में सही-सही उपयोग कर क्लाइमेट चेंज की समस्या से निपटा जा सकता है और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है. 5 उपायों के बारे में विस्तार से जान लेते हैं.
इसमें ऐसे उपाय अपनाए जाते हैं जिसमें मिट्टी में कार्बन की मात्रा बढ़ती है. इससे मिट्टी की सेहत सुधरती है और क्लाइमेट चेंज का असर कम होता है. इसके लिए मिट्टी में कंपोस्ट, कार्बनिक खाद और बायोचार का इस्तेमाल बढ़ाने पर जोर देने की बात की जाती है. बिना जुताई खेती करने को बढ़ावा दिया जाता है.
इसमें नाइट्रोजन खादों का इस्तेमाल समझदारी के साथ करने की सलाह दी जाती है. बिना केमिकल खादों को डाले भी नाइट्रोजन की मात्रा पूरी की जा सकती है. नाइट्रोजन खादों से पर्यावरण सहित फूड चेन में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है जिससे कई समस्याएं पनपती हैं. इसे कम करने के लिए ऐसी फसलों की खेती को बढ़ावा देने की बात है जो खुद ही मिट्टी में नाइट्रोजन को फिक्स करती हैं. जैसे दलहन फसलें.
जलवायु परिवर्तन में पशुओं का भी बड़ा रोल है, तभी मीथेन गैस को बड़ा खलनायक बताया जा रहा है जिसे पशु छोड़ते हैं. इसलिए ऐसे पशुओं को पालने या विकसित करने पर जोर दिया जा रहा है जो पर्यावरण को कम से कम नुकसान किए बिना इंसानों की मदद कर सकें. इसके लिए पशुओं को ऐसे दाने या चारे देने की सलाह दी जा रही है जिससे कम से कम मीथेन गैस का उत्सर्जन हो.
फसलों की पैदावार के अंतर को कम करने पर जोर दिया जा रहा है. किसान उस फसल की खेती अधिक करते हैं जिसकी पैदावार अधिक होती है. वैसी फसलें अधिक उगाते हैं जिससे पैदावार और कमाई अधिक होती है. इसी का नतीजा है कि धान की खेती अधिक की जा रही है जिसमें पानी सबसे अधिक लगता है. गन्ना और कपास भी इसी में शामिल हैं क्योंकि इसकी पैदावार अधिक होती है. अगर बाकी फसलों की पैदावार भी बढ़ जाए तो किसान उस ओर आकर्षित होंगे.
खेती में सोच-समझ कर ऊर्जा का इस्तेमाल होना चाहिए. कम से कम डीजल और थर्मल एनर्जी का प्रयोग हो. इसमें सोलर एनर्जी बड़ा रोल निभा सकती है. ग्रीनहाउस खेती में ऊर्जा के लिए जियोथर्मल एनर्जी का इस्तेमाल बढ़ा सकते हैं जिससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होगा.
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