Agri Quiz: विलुप्त होने की कगार पर हैं 'किसान मित्र', क्या खेती पर पड़ेगा इसका असर  

Agri Quiz: विलुप्त होने की कगार पर हैं 'किसान मित्र', क्या खेती पर पड़ेगा इसका असर  

किसान मित्र प्राकृतिक रूप से किसानों की फसल की रक्षा करने और पैदावार बढ़ाने में योगदान देते हैं, लेकिन समय के साथ किसान मित्रों की कमी होने लगी है जो कि खेती के लिए चिंता की बात है. पर क्या आप जानते हैं किसे किसानों का मित्र कहा जाता है.

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Agri Quiz: विलुप्त होने की कगार पर हैं 'किसान मित्र', क्या खेती पर पड़ेगा इसका असर  विलुप्त होने की कगार पर हैं किसान मित्र, क्या खेती पर पड़ेगा इसका असर

भारत का कृषि क्षेत्र तेजी से विकास कर रहा है. आज दुनियाभर में भारत कृषि और कृषि उत्पादन की पैदावार को लेकर चर्चा में रहता है. भारत में खेती का इतिहास बहुत पुराना रहा है तब से अब तक इस क्षेत्र में कई बदलाव देखे गए हैं. चाहे वो मौसमी बुवाई की बात हो या खेती में उपयोग किए जाने वाले कृषि यंत्र और नई-नई तकनीकों की बात, लेकिन एक चीज आज तक कॉमन रही है, जिसे किसान मित्र कहा जाता है. किसान मित्र प्राकृतिक रूप से किसानों की फसल की रक्षा करने और पैदावार बढ़ाने में योगदान देते हैं. लेकिन समय के साथ किसान मित्रों की कमी होने लगी है जो कि खेती के लिए चिंता की बात है. पर क्या आप जानते हैं किसे किसानों का मित्र कहा जाता है. आइए जानते हैं कौन हैं किसान मित्र.

इसे कहा जाता है किसानों का मित्र

आप लोगों ने खेतों में या जमीन के अंदर कीड़ा नुमा एक अनोखे जीव को जरूर देखा होगा. पर क्या आप इस अनोखे जीव का नाम जानते हैं? इस जीव का इस्तेमाल खेती-किसानी में किसानों की मदद के तौर पर किया जाता है. इस जीव का इस्तेमाल खेतों में खाद के तौर पर भी होता है. ये जीव आज से 25-30 वर्ष पहले जमीनों में बहुत पाए जाते थे, लेकिन आज सिर्फ बागों, तालाबों में ही रह गए हैं. इसका नाम है केंचुआ. दरअसल केंचुए को ही किसान मित्र कहा जाता है.

किसान मित्र की क्या है खासियत

केंचुए को खेती के हिसाब से काफी फायदेमंद माना जाता है. इसे गांव के लोग मछलियों के खाद के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं. केंचुआ प्राचीन काल से ही किसानों का मित्र रहा है. केंचुआ खेत में उपलब्ध सड़े-गले कार्बनिक पदार्थो को खाकर अच्छी क्वालिटी की खाद तैयार करते रहते हैं. केंचुओं की दिन प्रतिदिन घटती जा रही संख्या के कारण ही भूमि उर्वरता में कमी आती जा रही है. शायद यही कारण है कि जैविक और टिकाऊ कृषि में किसानों को फिर से केंचुआ खाद की याद आने लगी है.

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कैसे बनता है वर्मी कंपोस्ट

वर्तमान समय में जैविक खेती में किसानों के बीच केंचुआ खाद यानी वर्मी कंपोस्ट का चलन तेजी से बढ़ रहा है. इसके खेती में अनोखे फायदे हैं. इसके इस्तेमाल से फसलों के उत्पादन में वृद्धि हो रही है. इसलिए किसान इसका खेती में अधिक उपयोग कर रहे हैं. दरअसल केंचुआ खाद बनाने के लिए एक अंधेरे और हवादार वाली जगह की जरूरत होती है. ऐसे स्थान पर दो मीटर लंबे और एक मीटर चौड़े स्थान पर चारों ओर एक मेंड़ बना लें. उस जगह पर केंचुआ और अन्य खाने के छिलके या पदार्थ को इकट्ठा कर लें. इसके बाद इसमें 40 से 60 केंचुए डाल दें. फिर उसे भूसा, सूखे पत्ते, गाय के गोबर से ढक दें. इसके 50 से 60 दिनों के बाद वर्मी कंपोस्ट खाद बन कर तैयार हो जाएगी.

केंचुआ खाद के क्या हैं फायदे

प्राकृतिक रूप से खेत की उर्वरता बढ़ाने में केंचुआ खाद का योगदान काफी तेजी से बढ़ रहा है. केंचुआ का उपयोग करके जैविक खाद बनाई जाती है. इस खाद को वर्मी कंपोस्ट खाद भी कहा जाता है. यह केंचुओं और अन्य कीड़े या फिर खाने के पदार्थों को सड़ा कर तैयार किया जाता है. इस खाद से बदबू नहीं आती और किसी प्रकार का कोई प्रदूषण इससे नहीं फैलता है. वहीं इससे फसलों के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है.

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