पशुपालन करने वाले किसानों के लिए पूरे साल हरे चारे का प्रबंध करना सबसे बड़ी चुनौती होती है क्योंकि जानवरों के अच्छे पोषण के लिए हरा चारा खिलाना बेहद जरूरी होता है. हरे चारे के लिए किसानों को बहुत सारी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है. ऐसे में हरे चारे में उपयोग होने वाले मक्के की खेती करके किसान अपने पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था कर सकते हैं. मक्के का हरा चारा खिलाने से मवेशी पहले के मुकाबले ज्यादा दूध देने लगते हैं. ऐसे में अगर आप भी पशुओं को खिलाने के लिए मक्के की खेती करना चाहते हैं तो नीचे दी गई जानकारी की सहायता से मक्के की उन्नत किस्म के बीज ऑनलाइन अपने घर पर मंगवा सकते हैं.
अफ्रीकन टॉल मेज किस्म को अफ्रीकी मक्का के नाम से भी जाना जाता है. ये मक्के की चारा वाली एक खास वैरायटी है. इसकी खेती हरे चारे और मक्के के आटे के लिए की जाती है. इस चारे का उपयोग गाय-भैंसों, बकरियों और भेड़ों के लिए किया जाता है. ये एक पौष्टिक चारा है जो पशुओं के लिए प्रचुर मात्रा में प्रोटीन का बेहतर स्रोत है. साथ ही दूध की क्वालिटी भी सुधारने में कारगर है.
अधिक दूध उत्पादन एवं पशुधन की सेहत के लिए पोषक चारा उगायें| @ONDC_Official प्लेटफॉर्म पर NSC स्टोर से चारा मक्का 'African Tall' के बीज ऑर्डर करें@ https://t.co/WfU0HpARV0
— National Seeds Corp. (@NSCLIMITED) December 11, 2024
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राष्ट्रीय बीज निगम (National Seeds Corporation) पशुपालकों की सुविधा के लिए ऑनलाइन मक्के का पोषक तत्वों से भरपूर अफ्रीकन टॉल मेज़ किस्म के बीज बेच रहा है. इसको आप ऑनलाइन स्टोर से खरीद सकते हैं. यहां किसानों को कई अन्य प्रकार की फसलों के बीज और पौधे भी आसानी से मिल जाएंगे. किसान इसे ऑनलाइन ऑर्डर करके अपने घर पर डिलीवरी करवा सकते हैं.
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अगर आप भी अपने पशुओं के लिए मक्के की खेती करना चाहते हैं और बीज खरीदना चाहते हैं तो 5 किलो का बैग फिलहाल 25 फीसदी की छूट के साथ 385 रुपये में राष्ट्रीय बीज निगम की वेबसाइट पर मिल जाएगा. इसे खरीद कर आप आसानी से अपने पशुओं को संतुलित आहार वाला मक्के का चारा खिला सकते हैं.
अफ्रीकन टॉल मेज़ की खेती करने पर ये बहुत कम समय में तैयार हो जाता है. इस किस्म की फसल बुवाई के करीब 60 से 75 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इतने दिनों में इसमें उगने वाला भुट्टा दुधिया अवस्था में होता है. चारे के तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली इस मक्का फसल को रेशमी अवस्था से लेकर नरम दूध वाली अवस्था तक काटकर पशुओं के आहार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. यह पैदावार के मामले में भी बहुत आगे है. इससे हरे चारे की 12 से 16 टन प्रति एकड़ औसत उपज हासिल की जा सकती है
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