ठंड के दिनों पशुओं में बीमारी का खतरा बढ़ जाता है और उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है. ठंड/शीतलहर के कारण दुधारू पशुओं को निमोनिया का खतरा रहता है. ऐसे में आइए जानते हैं कैसे करें बचाव.
फेफड़ों के संक्रमण के कारण होने वाला निमोनिया रोग किसी भी जानवर में हो सकता है. इस बीमारी का कारण हवा में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस होते है, जो सांस के जरिए फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं. वहीं, कई बार फफूंद के कारण भी फेफड़ों में संक्रमण फैल जाता है.
अगर कोई पशु पहले से ही फेफड़ों के रोग, हृदय रोग जैसी किसी बीमारी से ग्रस्त है उन पशुओं को निमोनिया का गंभीर संक्रमण होने का खतरा रहता है.
निमोनिया में एक या दोनों फेफड़े कफ (बलगम) से भर जाते हैं. जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है. बैक्टीरिया से होने वाला निमोनिया दो से चार हफ्ते में ठीक हो सकता है. वहीं, वायरस से होने वाला निमोनिया ठीक होने में ज्यादा समय लग सकता है.
सर्दी, तेज बुखार, खांसी, कंपकंपी, शरीर में दर्द, मांसपेशियों में दर्द, सांस लेने में दिक्कत ये सभी निमोनिया के मुख्य लक्षण हैं. छोटे पशुओं में निमोनिया का कोई खास लक्षण देखने को नहीं मिलता है. ऐसे में छोटे जानवर अगर बीमार दिखें तो हो सकता है कि उन्हें निमोनिया हुआ हो.
पशुओं को निमोनिया से बचाने के लिए उन्हें साफ-सुथरी जगहर रखें, जहां से सूर्य की रोशनी आती हो और वेंटिलेशन की व्यवस्था हो. पशुगृह का तापमान इतना रहे कि उन्हें सर्दी का एहसास न हो. उन्हें कंबल और जूट आदि के बोरे ओढ़ाएं. ज्यादातर पशुओं में निमोनिया डॉक्टर की देखरेख में ठीक किया सकता है. उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ती.
टेट्रासाइक्लिन जैसी एंटीबायोटिक्स, पशुओं को वजन के आधार पर स्ट्रोटोपेनिसिलिन एम्पीसिलीन एवं क्लोक्सासिलिन, डेक्सामेथासिन जैसे स्टेरॉयड, एंटीहिस्टामाइन और एनाल्जेसिक जैसी दवाओं और ड्रग्स के इस्तेमाल से पशुओं का इलाज किया जाता है. इन दवाओं का इस्तेमाल खुद से न करें, डॉक्टर की मदद लें. ब्रोन्कोडिलेटर और कफ निस्सारक आयुर्वेदिक औषधियां भी पशुओं को दी जा सकती है. ब्रुकोप्राइटिर- 30-40 ग्राम दो बार, कैसलोन- 50-60 ग्राम दो बार, कोफलेक्स- 40-50 ग्राम दो बार.
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