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अफ्रीकी फिल्म ‘द बॉय हू हार्नेस्ड द विंड’: एक किशोर द्वारा अपने गांव को सूखे से बचाने के संघर्ष की प्रेरणादायक कहानी

अफ्रीकी फिल्म ‘द बॉय हू हार्नेस्ड द विंड’: एक किशोर द्वारा अपने गांव को सूखे से बचाने के संघर्ष की प्रेरणादायक कहानी

विलियम काम्क्वांबा की आत्मकथा पर आधारित इस फिल्म को निर्देशित किया ब्रिटिश अभिनेता चिवेटेल एजिओफोर ने यह चिवेटेल अजीओफोर द्वारा निर्देशित पहली फीचर फिल्म थी. एजिओफोर एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं और ‘ट्वेल्व ईयर्स अ स्लेव’ के लिए उन्हें ऑस्कर पुरस्कार भी मिल चुका है. लेकिन फिल्म निर्देशित करना एक अलग काम है.

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अफ्रीकी फिल्म इंडस्ट्री के बारे में हम लोग कम ही जानते हैं. नाइजीरिया की फिल्म इंडस्ट्री अफ्रीका की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री है. हॉलीवुड और ब्रिटेन की फिल्म इंडस्ट्री ने नाइजीरियाई फिल्म उद्योग के सहयोग से बहुत अच्छी फिल्में भी बनाई हैं. लेकिन आज हम बात करेंगे ब्रिटिश प्रोड्यूसर द्वारा बनाई गयी ईस्ट अफ्रीका के एक गांव की सच्ची कहानी पर आधारित फिल्म ‘द बॉय हू हार्नेस्ड द विंड’ (वह लड़का जिसने हवा को काबू किया) के बारे में.

दुनिया के किसी भी देश की तरह अफ्रीका के किसान भी मौसम की मार, गलत सरकारी नीतियों और गरीबी से जूझते रहते हैं. मलावी के एक गांव विम्बे में एक किशोर विलियम कम्क्वांबा ऐसे ही किसान परिवार का हिस्सा था. उसके माता-पिता का सपना था कि उनके बच्चे पढे-लिखें, जीवन में कुछ बेहतर करें, लेकिन यह वक्त था उस इलाके में वर्ष 2000 में आए खाद्य संकट का उधर तंबाकू की खेती करने वाली बड़ी कंपनियां गांव के आसपास के पेड़ भी काट रही थीं तो बाढ़ और सूखे दोनों का संकट भी बना हुआ था.

ऐसे में गरीबी और सूखे से लड़ते इस किसान परिवार के बेटे विलियम काम्क्वांबा ने गांव के कबाड़ और पिता की एकमात्र संपत्ति, एक साइकिल को तोड़ कर बनाई एक पवनचक्की. इस पवनचक्की से ना सिर्फ पूरे गांव को पानी के पंप चलाने में मदद मिली बल्कि उस इलाके में बिजली भी आ गयी और विम्बे गांव सूखे की चपेट से बच गया.

युवा वैज्ञानिक की आत्मकथा पर आधारित है फिल्म

विलियम काम्क्वांबा की आत्मकथा पर आधारित इस फिल्म को निर्देशित किया ब्रिटिश अभिनेता चिवेटेल एजिओफोर ने यह चिवेटेल अजीओफोर द्वारा निर्देशित पहली फीचर फिल्म थी. एजिओफोर एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं और ‘ट्वेल्व ईयर्स अ स्लेव’ के लिए उन्हें ऑस्कर पुरस्कार भी मिल चुका है. लेकिन फिल्म निर्देशित करना एक अलग काम है. फिर इस आत्मकथा को पर्दे पर उकेरना कठिन था. एजिओफोर ने निश्चय किया कि वे खुद इस फिल्म का स्क्रीनप्ले लिखेंगे. नाइजीरियाई मूल का होने के कारण एजिओफोर अफ्रीका के विभिन्न इलाकों की सांस्कृतिक और पारंपरिक विभिन्नताओं से बखूबी वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने फिल्म के कुछ हिस्सों में विम्बे गांव की चिचेवा भाषा का प्रयोग भी किया है. संवाद बहुत सहजता से अंग्रेज़ी और चिचेवा के बीच बदलते रहते हैं और सबटाइटल के इस्तेमाल से यह बदलाव कहीं भी अखरता नहीं है.

अफ्रीकी गांव का सटीक चित्रण

दूसरी खास बात है- मलावी के विम्बे गाँव का सटीक चित्रण फिल्म के बहुत से दृश्य लगभग एक पेंटिंग की तरह लगते हैं, जिसके किरदारों के चेहरों पर और उनकी आंखों में विषम परिस्थितियों से निरंतर जूझते रहने की व्यथा द्रवित कर जाती है,
स्कूल ड्रेस मिलना, रेडियो का ठीक हो जाना, बारिश आ जाना, जैसी सरल खुशियां एक वंचित वर्ग के लिए कितना मायने रखती हैं. ये बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है. इस अर्थ में एजिओफोर एक कुशल निर्देशक साबित होते हैं और फिल्म में कहीं भी एक नौसिखिये की छाप नहीं मिलती.

अमूमन, बच्चों पर केन्द्रित फिल्मों में निर्देशक की कोशिशों के बावजूद एक अनचाही सी मधुरता और मेलोड्रामा आ ही जाता है, लेकिन ‘द बॉय हू हार्नेस्ड द विंड’ इस अर्थ में भी उल्लेखनीय है कि यह बगैर किसी अनचाही मधुरता के, एक ऐसे किशोर की ज़िंदगी दर्शाती है, जो खिलंदड़ है, ज़िंदगी में मज़े भी करना चाहता है, खेलना चाहता है और विज्ञान में उसकी खास रुचि है, जो उसे अपने गाँव की मदद करने के लिए प्रेरित करती है.

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निर्देशक कुशलता से तत्कालीन मलावी के राजनीतिक परिदृश्य और व्यवस्था में निहित भ्रष्टाचार को भी दर्शाता है, जिसके कारण किसान अपनी समस्याएं सरकार के सामने रखने में भी असमर्थ है. विलियम काम्क्वांबा के पिता ट्राइवेल के रूप में एजिओफोर ने प्रभावपूर्ण अभिनय किया है. मैक्सवेल सिंबा की बतौर अभिनेता यह पहली फिल्म थी. विलियम काम्क्वांबा के किरदार में वे अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

कथानक का लयात्मक जोड़ हैं मृत्यु के दृश्य

फिल्म की शुरुआत होती है ट्राइवेल के भाई की मृत्यु से और अंतिम संस्कार पर होने वाले पारंपरिक नृत्य से जिसके बगैर यह संस्कार अधूरा है. फिल्म के अंत में भी मृत्यु होती है, गांव के सरपंच और विलियम के दोस्त गिल्बर्ट के पिता की, सभी को आशंका है कि सूखे से ग्रस्त उनके इलाके में वे पारंपरिक नृत्य करने वाले लोग नहीं आएंगे. लेकिन चूंकि विम्बे में अब सूखे जैसे हालात नहीं हैं, यह पवित्र नृत्य करने वाले लोग आ जाते हैं. एक तरह से मृत्यु भी लयात्मक जोड़ है कहानी का एक मृत्यु से निराशा शुरू होती है, लेकिन दूसरी मृत्यु तक किसानों की ज़िंदगी में उम्मीद की किरण जाग उठी है.

यह सरल सी फिल्म हवा को भी एक किरदार के रूप में पेश करती है और इस अर्थ में यह लगभग काव्यात्मक है. हम हवा में उड़ती धूल, सूखी पत्तियों, तैरते बादलों, झूमते वृक्षों की सरसराहट, और सूखते मक्का के पौधों में गरम और शुष्क हवा की भयावहता को महसूस कर सकते हैं.

विलियम के माता-पिता एक टिपिकल आधुनिक किसान दंपति की मिसाल हैं. वे अपने बच्चों को शिक्षा देना चाहते हैं ताकि वे बेहतर जीवन जी सकें, लेकिन खुद पारंपरिक जीवन में रचे-बसे हैं. वे नहीं चाहते कि उन्हें उनकी जड़ों से उखाड़ा जाए. आधुनिकता का अर्थ अपनी ज़मीन से अलग होकर बेहतर जीवन पाना नहीं बल्कि अपने मौजूदा जीवन को बेहतर बनाना है. विलियम का किरदार इस बात को भी अभिव्यक्त करता है.

मुश्किल हालात से निकलने के लिए कोशिश करना ज़रूरी

25 जनवरी 2019 को प्रतिष्ठित सनडांस फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर किया गया और बाद में यह ओटीटी प्लेटफॉर्म नेट्फ़्लिक्स पर रिलीज़ की गई. इसे अनेक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के लिए चयनित किया गया. यह फिल्म कोई पुरस्कार तो नहीं जीत पायी लेकिन मलावी के किसानों की दुर्दशा और उनके अथक प्रयासों को दर्ज़ करने वाली एक अद्भुत फिल्म के तौर पर इसने अपनी एक खास जगह बनाई. विलियम काम्क्वांबा आज एक सफल पर्यावरणविद हैं.

उन्होने आसपास की बेकार पड़ी चीजों और पिता की साइकिल से जो पवनचक्की बनाई, उसके पुरस्कार स्वरूप उन्हें उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप मिली. एक स्वागत समारोह में युवा विलियम ने कहा, “जब मुझे स्कूल से निकाल दिया गया तो मैं स्कूल की लाइब्ररी में जाने लगा जहां मेंने किताब पढ़ी ‘यूजिंग एनेर्जी’ जिसमें लिखा था कि पवनचक्की कैसे बनाई जाए. मैंने कोशिश की और पवन चक्की बना ली कोशिश करना ज़रूरी है.“ फिल्म यही सकारात्मक संदेश देती है कि हालात कितने भी विषम क्यों ना हों, उनका सामना करना, उन्हें हल करने की कोशिश करना ज़रूरी है.